संत तुलसीदास को महामारी से कैसे मुक्ति मिली
कहा जाता है की मुगलकाल में सन 1612 -1614 के बीच काशी और उसके आसपास के क्षेत्रों में अकाल और महाभारी की भीषण दुर्दशा जनता को झेलनी पड़ी थी। बाबा तुलसीदास जो अकबर और जहांगीर के काल में थे इसका बहुत ही कारुणिक वर्णन कवितावली में किया है —
खेती न किसान को भिखारी को न भीख ,बलि ,बनिक को बनिज ,न चाकर को चाकरी
जीविका विहीन लोग सीद्यमान सोच बस ,कहैं एक एकन सों कहाँ जाई का करी
वेदहुँ पुरान कही लोकहुँ बिलोकियत साँकरे सबै पर राम रावरे कृपा करी
दारिद दसानन दबाई दूनी दीनबंधु दुरित दहन देखि तुलसी हहा करि
कवितावली का यह पद ऐसा लगता है जैसे आज.. की स्थिति –कहाँ जाई का करी के अनुभूति की अभिव्यक्ति बाबा तुलसी कर रहे हैं। उन्होंने समाज को उदबोधित करते हुए कहा –परहित सरिस धर्म नहि भाई ,पर पीड़ा सम नहि अधमाई। विद्वतजनों का आवाहन करते हुए कहा –कीरति भनिति भूति भल सोइ सुरसरि सम सब कर हित होई –तात्पर्य यह की कीर्ति और ज्ञान की कसौटी सर्वजन के हित की चिंता है। राजाओं को भी बाबा तुलसी ने उपदेश दिया –जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी ,सो नृप अवसि नरक अधिकारी।
हनुमानबाहुक के अध्ययन से विदित होता है की यह महामारी कुछ ऐसी थी जिसमे मुँह और बाहुओं में अपार पीड़ा होती थी। हनुमानबाहुक तुलसी बाबा का अंतिम ग्रन्थ है। बाबा ने दीर्घ आयु प्राप्त की थी और 126 वर्ष तक जीवन जीने के उपरांत ब्रह्मलीन हुए थे। हनुमानबाहुक से पता चलता है की तुलसी भी इस महामारी से ग्रस्त हुए थे जिससे त्रास पाने के लिए ही उन्होंने हनुमानबाहुक की रचना की।
बाहुक -सुबाहु नीच लीचर -मारीचि मिलि ,मुहं -पीर -केतुजा कुरोग जातुधान हैं
रामनाम जपाजाग कियो चाहौं सानुराग ,काल कैसे दूत भूत कहा मेरे मान है
सुमिरे सहाय रामलखन आखर दोउ जिनके समूह साके जागत जहान है
तुलसी सँभारि ताड़ुका सँहारी भारी भट बेधे बरगद ने बनाई बानबान है
तुलसी की बाहु पीड़ा सुबाहु और मारीच के समान है ,ताड़का मुख की पीड़ा केसदृश्यहै और तमाम बुरे रोग इनकी राक्षसी सेना है , जोरामनाम के यज्ञ के बाधक हो रहे हैं। राम नाम के दोनों अक्षर मेरे सहायक हुए और मेरी रक्षा की। एक पद में तुलसी ने कहा है की महामारी में रोग के साथ साथ दुर्जन –जो दवाओं की कालाबाजारी करने लगते है ,मिलावटी इंजेक्शन बनाने लगते हैं तथा ग्रह नक्षत्र भी त्रासदी के कारण होते हैं जिसके लिए तुलसी हनुमान जी का आवाहन करते हैं —
घेरि लियो रोगनि कुजोगिनी कुलोगनि ज्यों .बासर जलद घन घटा धुकि धाई है
बरसत बारि पीर जारिए जवासे जस रोष बिनु दोष धूम मूल मालिनाई है
करुनानिधान हनुमान महाबलवान हेरि हँसि हाँकि फूँकि फौजें तैं उड़ाई है
खाये हुतो तुलसी कुरोग राढ़ राकसानि केशरीकिशोर राखे बीर बरियाई है
हनुमानबाहुक की रचना कर राम नाम का जप करते हुए बाबा तुलसी ने हनुमान जी की कृपा से उस युग की महामारी से मुक्ति पाई।
- डा चन्द्रविजय चतुर्वेदी ,प्रयागराज