संजय उवाच : लीला और माया के बीच

दीपक गौतम,
स्वतंत्र पत्रकार सतना, मध्य प्रदेश से
प्रश्न : हे संजय तुम इस कोरोना काल में क्या देख रहे हो ?
उत्तर : महाराज,  मुझे तो ये दिव्य दृष्टि भी आपकी कृपा से ही प्राप्त हुई है. मैं तो चहुंओर आपकी लीला का ही प्रसार देख रहा हूँ, जो आप दिखाना-समझाना और जताना-बताना चाह रहे हैं. मुझे तो बस वही दिखाई दे रहा है. अब कोरोना के प्रसार का भय नहीं अपितु अर्थव्यवस्था के 20 लाख करोड़ी बूस्टर पैकेज का सम्पूर्ण विश्लेषण और आत्मनिर्भर बनने का दिव्य ज्ञान ही चारों तरफ व्याप्त है. हे राजन, भारतवर्ष आपके बताए मार्ग पर प्रशस्त है.
प्रश्न : हे संजय क्या तुम्हें मृत्यु दिखाई नहीं दे रही है ?
उत्तर : भगवन, यत्र-तत्र सर्वत्र बस आपके कुशल नेतृत्व और कोरोना पर नियंत्रण की ही चर्चा है. मृत्यु तो अंतिम सत्य है, जिसे इसका ज्ञान हो गया है. वो संसार की मोहमाया और भय के बंधनों से निकलकर लॉकडाउन को और विस्तार दे रहा है. कालांतर में राष्ट्र के नागरिक ने  तो प्राणों का मोह छोड़कर राष्ट्र के नाम अपने मद्यपान के दायित्व को भी कुशलता से निभाया है.
प्रश्न : हे संजय, तुम तनिक भविष्य में झांककर मुझे बताओ कि आने वाला समय कैसा दिख रहा है ?
उत्तर : हे राजन, आपकी दूरदृष्टि की छाप आने वाले युगों-युगों तक दिखाई दे रही है. मैं देख रहा हूँ कि हम विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसर हैं. कोरोना से प्रभावितों देशों की श्रेणी में विश्व में प्रथम आने के पश्चात भी आप मृत्यु के आंकड़ों में पूरी बाजीगिरी कर ले जाएंगे प्रभु. इस तरह 130 करोड़ देशवासियों में से सिर्फ कुछ लाख ही काल के गाल में समायेंगे. कोरोना काल में आपके द्वारा किये गये निर्णयों का विश्लेषण सदैव राष्ट्र प्रेम और कुशल नेतृत्वकर्ता के रूप में देखा जाएगा. इतिहासकार भी यही लिखेंगे कि अचानक आई इस नई महामारी का कोई पूर्वानुभव न होने के बीच जो भी उपाय हुए वे भरपूर और प्रशंसापूर्ण थे. इस लेखन के समय इतिहासकार और बुद्धिजीवी आपके निर्णयों का आंकलन आपकी विवशताओं और विशेषताओं को ध्यान में रखकर ही करेंगे. आप नाहक ही चिंतित हो रहे हैं राजन.
प्रश्न : हे संजय क्या तुम हमारे शासन और प्रबंधन पर व्यंग्य कर रहे हो ?
उत्तर : हे राजन, मैं तो आपकी लीला के वश में हूँ. कदाचित मुझे वही दिखाई दे रहा है, जो आप दिखाना चाह रहे हैं. मेरी अपनी दृष्टि तो शून्य हो गई है. संचार के इस युग में आपके चारण और भाट भी आपकी विरदावली में यही बखान करेंगे. मैं तो अपनी विवशता के हाथ बंधा हूँ राजन. आपके निर्णयों को देखकर तो यही कह सकता हूँ कि कदाचित आपने शुरुआत में सृष्टि बचाने के लिए लॉकडाउन का ब्रम्हास्त्र चलाया था. लेकिन अब इसे वापस लेने की विद्या का पूर्णज्ञान न होने से यह विनाशकारी सिद्ध हो गया है. आपको इसी दिशा के परिवर्तन का ही ज्ञान था, जिसे आपने प्रयोग किया. लेकिन इसे आपने जिस दिशा की ओर बढ़ाया है, वहां तो विनाश होना तय है. मैं तो मर्यादापूर्ण भाषा में यही कह सकता हूँ भगवन.
प्रश्न : संजय, ये मत भूलो कि ये दिव्य दृष्टि भी हमारे अनुरोध पर तुम्हें मिली है. तुम हमेशा विदुर की तरह कड़वी बातें क्यों करते हो ?
उत्तर : महाराज, मुझे क्षमा करें. मैं तो बस असहाय श्रमिक, गिरती अर्थव्यवस्था, और बढ़ती बेरोज़गारी जैसी अनेक समस्याओं पर अपका ध्यान आकृष्ट कराना चाह रहा था. इसमें कड़वाहट का तो प्रश्न ही नहीं है। मैं तो पहले ही कह चुका हूं कि भविष्य में आपके चारण और भाट इस समय को कैसे लिखेंगे. इसलिए आप निश्चिंत रहें. आप सदैव अपने समय के महानायक कर रूप इन याद किये जायेंगे. आपका राष्ट्रवाद और देशप्रेम युगों-युगों तक वंदनीय रहेगा, जिनके लिए इसमें तनिक भी संदेह हो. समझिए वे तो आपकी लीला को समझ ही नहीं पाए हैं।
प्रश्न : तुम अभी भी मेरा उपहास उड़ाते हुए व्यंग्य की शैली में मेरे प्रश्नों के उत्तर दे रहे हो संजय ?
उत्तर : मुझे क्षमा करें राजन, लेकिन कम्युनिटी स्प्रेड को रोकने के लिए आपने जिस लॉकडाउन के ब्रम्हास्र का उपयोग किया था. शायद वो अब विफल हो गया है. कदाचित इसके साथ ही प्रयोग किया गया आपका सोशल डिस्टेंसिंग जैसा दिव्यास्त्र भी कोरोना ने तोड़ दिया है. इसलिए मेरी शैली पर प्रश्न न उठाइये महाराज . वो तो कभी-कभी आपकी माया के वश में होकर मैं बहक जाता हूँ.
प्रश्न : मुझे खुद भी तो पता नहीं कि ऐसे समय में क्या करना चाहिए ? ऐसे में मैं जनता को अपनी सम्पूर्ण सुरक्षा करने और आत्मनिर्भर बनने का मार्ग तो सुझा ही रहा हूँ न. इस विषय में तुम क्या कहते हो ?
उत्तर : हे राजन, मैं कोई आलोचक नहीं हूं. मुझे तो बस दिव्य दृष्टि मिली है. इसलिए आपकी लीला और माया के बीच जो कुछ भी देखना सम्भव हो पा रहा है. यथासम्भव कहने का प्रयास कर रहा हूँ. अब मुझसे इस कोरोना के विषय में और प्रश्न न करें राजन. मैं महाभारत के बाद पहली बार ऐसे विनाश को देख रहा हूँ, जिसका वर्णन न चाहते हुए भी मुझे करना पड़ रहा है। इसलिए मुझे क्षमा करें राजन.
 © दीपक गौतम, सतना
     – स्वतंत्र पत्रकार
 सम्पर्क -9923800013
मेल आईडी – deepakgautam.mj@gmail.com

Leave a Reply

Your email address will not be published.

4 × 1 =

Related Articles

Back to top button