स तीर्थराजो जयति प्रयागः –दो

गतांक से आगे –

डा चंद्र्विजय चतुर्वेदी

chandravijay chaturvedi
चंद्रविजय चतुर्वेदी

श्रुतिः प्रमाणं स्मृतयः प्रमाणं पुराण मप्यत्र परम प्रमाणं
यत्रास्ति गंगा यमुना प्रमाणं  स तीर्थराजो जयति प्रयागः |
अर्थात ,जिनकी महत्ता के विषय में वेद प्रमाण हैं ,स्मृतियाँ प्रमाण हैं और पुराण तो सबसे बढ़कर प्रमाण हैं |गंगा  यमुना जिसकी  महत्ता के स्वयं प्रमाण है ,उस तीर्थराज प्रयाग की जय हो |
प्रयाग वैष्णव क्षेत्र है –भगवान विष्णु ने सनकादिक कुमारों से कहा -प्रयागम वैष्णवं क्षेत्रे वैकुंठाद धिकम मम /वृक्षोक्ष्य्य वटस्तत्र मदाधारो विराजते –अर्थात प्रयाग वैष्णव क्षेत्र है जहां अक्षयवट वृक्ष है जो मेरा आश्रय है |यही वटवृक्ष संसार के जलमग्न होने पर माधव के सोने के लिए पलंग बनता है –ऐकावरने महाकल्पे सुषुप्तो माधव प्रभो |
प्रयाग शैव क्षेत्र है –पुरानो  ने अक्षयवट को शिव का प्रतीक माना है –माहेश्वरो वटो भूत्वा तिष्ठते परमेश्वरः –कुर्म पुराण –मत्स्य पुराण में वर्णित है कि बारह आदित्यों के प्रकृष्ट  ताप जब सम्पूर्ण जगत विनष्ट हो जाता  है ,तो इस प्रलय काल में तीनो भुवनो को एकत्रित करके आदिपुरुष इसी वटवृक्ष पर सोते हैं और पैर का अंगूठा हाथ में पकड़ कर पीते रहते हैं |
प्रयाग शाक्त क्षेत्र है –तंत्र चूडामणि में बावन शक्तिपीठों में प्रयाग को एक शक्तिपीठ बताया गया है ,जहाँ सती की हस्तान्गुली गिरी थी –अन्गुल्य्शचैव हस्तस्य प्रयागों ललिता भवः |महाकाली ,महालक्ष्मी ,महा सरस्वती के रूप में त्रिपुरसुन्दरी राज राजेश्वरी माँ ललिता के रूप में -मीरापुर स्थित ललिता धाम ,कल्याणी की कल्याणी देवी तथा अलोप्शंकारी के त्रिकोण क्षेत्र में विराजमान हैं |माँ ललिता सम्पूर्ण प्रयाग क्षेत्र में कही शांतादेवी -श्रृंगवेरपुर ,कहीं शीतला देवी –कड़ा,ऐन्द्रीदेवी–दुर्वासा आश्रम , माण्डवी देवी –मांडा में विराजमान हैं |
प्रयाग नाग क्षेत्र है –गंगा के किनारे दशाश्वमेध तीर्थ के समीप नाग वासुकी का स्थान और यमुना के किनारे तक्षक तीर्थ इसका प्रमाण है |
प्रयाग बौद्ध क्षेत्र है –महात्मा गौतम बुद्ध ने अनेक बार प्रयागक्षेत्र  में आकर धर्म का उपदेश दिया  |घोषितराम ,,कुक्कुटराम, पावारिक वन ,बद्रिकाराम जैसे बिहार ई पू पांचवी और चौथी सदी में बौद्ध शिक्षा के महान केंद्र रहे हैं |सत्य शास्त्र और पुलियम जैसे बौद्ध ग्रंथों के रचयिता देव बोधिसत्व दक्षिण से आकर प्रयाग क्षेत्र के संघाराम में बस गए थे |
प्रयाग जैन क्षेत्र है –जैन सम्प्रदाय के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव जी ने प्रयाग में अक्षयवट के नीचे ही दीक्षा ली ,तप  धारण कर ,कैवल्य ज्ञान प्राप्त किया था |जैनाचार्य प्रयाग की व्युत्पत्ति –प्रकृषटो यागः पूजा अमेति प्रयाग इत्य्न्दर्भः-से है | –जैन ग्रंथों के अनुसार प्रकृष्ट याग पूजा के उपरांत ही इसका नाम प्रयाग पड़ा |इसके पूर्व प्रयाग का नाम पुष्पभद्रपुर    था |प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के पश्चात् अनेक मुमुक्षओं ने प्रयाग में ज्ञान की आराधना करके मुक्ति प्राप्त किया जिससे प्रयाग जैनियों के लिए सिद्ध क्षेत्र है |
प्रयाग ऋषि क्षेत्र है |भरद्वाज मुनि बसई प्रयागा –महर्षि भरद्वाज वेदों के मन्त्रदृष्टा बहुश्रुती विद्वान दस हजार शिष्यों के आचार्य कुलपति की तपस्थली प्रयाग ही रही |ऋषि श्रिंग –श्रृंगीऋषि का आश्रम श्रृंगवेरपुर में है |प्रयाग क्षेत्र में ही भरद्वाज ऋषि के गुरु रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का आश्रम है |दुर्वासा ऋषि का आश्रम सैदावाद तथा मांडव्य ऋषि का आश्रम मांडाके समीप है |युगों से ऋषि परम्परा की अव्याहत धारा गंगा यमुना की धारा की भांति  सतत प्रवाहमान है
प्रयाग कुम्भ क्षेत्र है –कुम्भ पर्व भारतीय वैज्ञानिक संस्कृति का एक ऐसा सांस्कृतिक पर्व है जो खगोल शस्त्र से जुडा हुआ है |ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य 360दिन में 12राशिचक्र में प्रवेश करते हैं |सूर्य वर्ष में एक ही बार मकर रेखा में अवस्थान करते हैं ,इस दिन को मकर संक्रांति कहते हैं |,जब सूर्य उत्तरायण होता है ,|माघ अमावस्या के दिन सूर्य और चन्द्रमा दोनों एक ही अंश पर मकर राशि पर होते हैं |कुम्भ के अवसर पर 12 वर्ष के पश्चात् विशिष्टता होती है जब वृहस्पति की स्थिति वृष राशि पर होती है |–मकरे च दिवानाथे वृषये च वृहस्पतौ /कुम्भयोगो भवेत्तत्र प्रयागे ह्यती दुर्लभः |–अर्थात मकर राशि में सूर्य तथा वृष राशि में वृहस्पति के आने पर माघ मास में प्रयाग कुम्भ का योग बनता है |माघ मेष गते जीवे मकरे चन्द्र भास्करौ –अर्थात मेष में गुरु तथा मकर राशि में सूर्य तथा चन्द्रमा के प्रवेश पर भी ,कुम्भ का योग शास्त्र सम्मत है |
इस प्रकार कुम्भ पर्व एक खगोलीय विशिष्ट गतिविधि है ,जिसके उत्तरदायी हैं चन्द्रमा ,सूर्य और वृहस्पति |चन्द्रमा पृथ्वी का उपग्रह मात्र ही नहीं है |पुरुष सूक्त के अनुसार यह विराट पुरुष के मन से उपन्न हुआ है –चन्द्रमा मनसो जाताश्य –इस प्रकार चन्द्रमा पृथ्वी के समस्त प्राणियों के मन का देवता है |चन्द्रमा की गतिविधियाँ प्राणियों के मन को प्रभावित कराती हैं |ब्रिटेन के लीड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के एक अध्ययन के अनुसार पूर्णिमा के दिन प्राणियों में मानसिक तनाव ,बेचैनी और पागलपन में वृद्धि होती है |पूर्णिमा की रात्रि आत्महत्या के लिए भी प्रेरित करती है |कुम्भ का दूसरा उत्तरदायी सूर्य है जो परम पुरुष के चक्षु से उत्पन्न हुआ ,समस्त प्राणियों के प्राण का देवता ,बुद्धि के देवता हैं |
मन -प्राण -बुद्धि की त्रिवेणी का यह सुर्येंदु गुरु संयोग बारह वर्ष के अंतराल पर प्रयाग में उपलब्ध होना कुम्भपर्व की एक विशिष्ट स्थिति है |जीवन में मन -प्राण -बुद्धि का समन्वय और संतुलन ही वह अमृतत्व है जिसे प्राप्त करने की लालसा से युगों से समाज के पहले व्यक्ति से लेकर आखिरी व्यक्ति प्रयाग में उपस्थित होते रहे हैं |–
न यत्र योगा चरण प्रतीक्षा न यत्र याग्येष्टि विशिष्ट दीक्षा ,
न तारका ज्ञान गुरोर्पेक्षा  स तिर्थराजो जयति प्रयागः .|
अर्थात ,जहाँ पर चरण की प्रतीक्षा नहीं है न विविध प्रकार के यज्ञों और इष्टियों की विशेष दीक्षा की अपेक्षा है ,न तारक मन्त्र तथा गुरु की अपेक्षा है ऐसे तीर्थराज प्रयाग की जय हो |
क्रमशः –

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