रेल भर्ती: बिहार बंद आज , छात्र आंदोलन और तेज हुआ

रेलवे प्रशासन ने आज जांच कमेटी बनाने और ग्रुप डी की परीक्षा को स्थगित करने का आश्वासन दिया

छात्रों ने कल यानी 28 जनवरी को रेल भर्ती को लेकर बिहार बंद का आह्वान किया है. देश के दो बड़े राज्यों, बिहार और उत्तर प्रदेश में बीते तीन दिनों से छात्रों के जो उग्र प्रदर्शन हो रहे हैं, सकी सुगबुगाहट ​बीते 14 दिनों से ही नजर आने लगी थी, लेकिन तब तक सरकार इसे अनदेखा करती रही. मामला बढ़ा तो उसने केंद्र सरकार पर एक बार फिर सवाल खड़ा कर दिया. हालांकि, सरकार अब भी कोशिश कर रही है कि इसे दबा दिया जाये और इसके लिये कुछ ऐसे कंधे भी तलाश लिये जायें, जिन पर इसका पूरा दोष डालकर उन्हें सलाखों के पीछे भेज दिया जाय. ताकि छात्र भयभीत होकर शांत बैठ जायें, लेकिन छात्रों का बिहार बंद के आह्वान को लेकर ऐसा प्रतीत नहीं होता कि वे इतनी आसानी से घर लौटने वाले हैं.

मीडिया स्वराज डेस्क

बिहार में रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड (RRB) की नॉन टेक्निकल पॉपुलर कैटेगरी (NTPC) की परीक्षा के रिजल्ट को लेकर छात्रों की नाराजगी खत्म होने का नाम नही ले रही. वे बिहार के कई जिलों में आंदोलन कर रहे हैं. आरआरबी एनटीपीसी (RRB NTPC Exam) की परीक्षा के रिजल्ट में धांधली और ग्रुप डी की परीक्षा में एक की बजाय दो परीक्षाएं आयोजित करने के फरमान के खिलाफ लगातार बढ़ रहे छात्र-युवा आंदोलन के दबाव में रेलवे प्रशासन ने आज पहले मामले में जांच कमेटी बनाने और ग्रुप डी की परीक्षा को स्थगित करने का आश्वासन दिया है, जिसे छात्रों ने सरकार का झांसा बताते हुए 28 जनवरी को ‘बिहार बंद’ जारी रखने का आह्वान किया है.

RJD नेता ने कहा, रेलवे बहाली बोर्ड पर हो मुकदमा दर्ज

बिहार में आरजेडी के नेता शिवानंद तिवारी ने कहा कि ‘पुलिस को रेलवे बहाली बोर्ड पर मुकदमा दर्ज करना चाहिए. इनके अध्यक्ष सहित तमाम सदस्यों को अभियुक्त बनाया जाना चाहिए. खुद रेलमंत्री ने भी ये कबूल किया है कि लड़कों की शिकायत जायज है. इस मामले में बहाली बोर्ड ने आपराधिक लापरवाही बरती है. इसी की वजह से लड़कों में उत्तेजना फैली. बता दें कि बहाली बोर्ड के पदाधिकारियों से मिलकर कोचिंग वालों ने गलती की ओर ध्यान दिला दिया था. बोर्ड से अनुरोध किया गया था कि गलती को सुधारें अन्यथा लड़के रेल की पटरियों पर उतर सकते हैं, लेकिन अफसरी अहंकार में बोर्ड वालों ने अपनी गलती नहीं सुधारी. फलस्वरूप परिणाम सबके सामने है. इसलिए पुलिस द्वारा कोचिंग चलाने वालों पर केस दर्ज करना बिलकुल गलत है. मैं मांग करता हूं कि कोचिंग वालों पर से मुकदमा हटाया जाए और बहाली बोर्ड के अध्यक्ष सहित सभी सदस्यों और पदाधिकारियों पर मुक़दमा दर्ज किया जाए.’

कई पार्टियों ने संयुक्त बयान जारी कर ‘बिहार बंद’ को दिया समर्थन

गौरतलब है कि इनौस के राष्ट्रीय अध्यक्ष व विधायक मनोज मंजिल, आइसा के महासचिव व विधायक संदीप सौरभ, इनौस के मानद राज्य अध्यक्ष व विधायक अजीत कुशवाहा, इनौस के राज्य अध्यक्ष आफताब आलम, आइसा के राज्य अध्यक्ष विकास यादव, इनौस के राज्य सचिव शिवप्रकाश रंजन व आइसा के राज्य सचिव सब्बीर कुमार ने आज संयुक्त बयान जारी करके कहा कि ‘अभ्यर्थियों द्वारा उठाए जा रहे सवालों पर किसी भी प्रकार का संदेह नहीं है. चरम बेरोजगारी की मार झेल रहे छात्र-युवाओं का यह व्यापक आंदोलन ऐसे वक्त में खड़ा हुआ है, जब यूपी में चुनाव है. इसी के दबाव में सरकार व रेलवे का यह प्रस्ताव आया है और चुनाव तक इस मामले को टालने की साजिश रची जा रही है. लेकिन विगत 7 वर्षों से देश के युवा मोदी सरकार के छलावे को ही देखते आए हैं. यही वजह है कि उनका गुस्सा इस स्तर पर विस्फोटक हुआ है. आइसा-इनौस नेताओं की मांग है कि रेल मंत्रालय 7 लाख संशोधित रिजल्ट फिर से प्रकाशित करे. आइसा-इनौस नेताओं ने तमाम अभ्यर्थियों से सरकार की असली मंशा को बेनकाब करने तथा 28 जनवरी के बिहार बंद को जोरदार ढंग से सफल बनाने का आह्वान किया है.’

प्रियंका गांधी कर रही हैं छात्रों से सीधी बातचीत

उधर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव और यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा इस मुद्दे पर छात्रों से लगातार सीधी बात कर रही हैं, उनकी समस्यायें सुन रही हैं.

सुप्रिया श्रीनेत ने कहा शांतिपूर्ण छात्र आंदोलन को कांग्रेस का समर्थन

इस पूरे मामले पर कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा है कि भाजपा सरकार युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ कर रही है. सरकार भर्तियां ख़त्म कर रही है, आज युवा रेलवे ट्रैक पर बैठा है. उन्होंने युवाओं के शांतिपूर्ण आंदोलन को कांग्रेस का समर्थन दिया है.

सुप्रिया ने आगे कहा कि हमने बीते 48 घंटों में छात्रों पर लाठियां बरसते हुए देखी हैं, छात्रों को खून से लथपथ देखा है, जो शर्मनाक है. यह सभ्य समाज, लोकतंत्र पर धब्बा सा है और युवा पीढ़ी के खिलाफ बहुत बड़ी साजिश है. 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले जब बेरोजगारी सिर चढ़कर बोल रही थी, जो आज भी व्याप्त है, तब आनन-फानन में रेलवे ने एक नोटिफिकेशन जारी किया कि ग्रुप डी की नौकरियां भरी जाएंगी. इस देश के सवा करोड़ युवाओं ने उस फॉर्म को भरा, फीस दी, लेकिन तीन साल बाद भी भर्तियां नहीं हो पाई हैं. कहीं न कहीं सरकार की मंशा युवाओं को नौकरी देने की है ही नहीं. सरकार भर्तियों में पद ख़त्म करती जा रही है, परिणामस्वरूप आज युवा रेलवे ट्रैक पर बैठा है.

परीक्षाएं लटकाने का परिणाम भुगत रही युवा पीढ़ी

उन्होंने कहा, फ़रवरी 2019 में आए इस नोटिफिकेशन के आधार पर सवा करोड़ युवाओं ने फॉर्म भरा, लेकिन फ़रवरी 2021 में तत्कालीन रेल मंत्री पीयूष गोयल कहते हैं कि अभी एजेंसी नियुक्त की जा रही है और अब जाकर पता चलता है कि परीक्षा के नियम बदलने की बात चल रही है. परीक्षाओं को लटकाने का परिणाम युवा पीढ़ी भुगत रही है. यह सिर्फ बिहार और उत्तर प्रदेश का नहीं, पूरे देश का मामला है. भाजपा ने सिर्फ रोजगार को ख़त्म करने का काम किया है. नोटिफिकेशन आते हैं, परीक्षा होती है और धांधली के चक्कर में परीक्षा रद्द कर दी जाती है. इसके बाद न्यायालय में मामला लटक जाता है. एक ज़माने में रेलवे इस देश का सबसे बड़ा एम्प्लॉयर होता था, लेकिन आज वो परीक्षा कराने तक में असमर्थ है.

उन्होंने आगे कहा कि छात्रों के मुद्दों से जुड़े हर एक शांतिपूर्ण आंदोलन को कांग्रेस का समर्थन है. मैं बच्चों का रोष समझती हूं, यह युवा पीढ़ी है, इन लोगों ने पैसा दिया, युवाओं ने अपनी जिंदगी के तीन साल इस परीक्षा की तैयारी में इस विश्वास के साथ दिए कि नौकरी मिल जाएगी और अब इनको बोला जा रहा है कि शायद परीक्षा रद्द हो जाएगी.

छात्रों के शांतिपूर्ण रेल रोको आंदोलन को हमारा समर्थन

उन्होंने कहा, 28 जनवरी को छात्रों का रेल रोको आंदोलन है, इसको कांग्रेस पार्टी का समर्थन है, इसको शांतिपूर्ण ढंग से करें क्योंकि गांधी के देश में हिंसा की लेशमात्र भी जगह नहीं है. भाजपा सरकार से मैं कहना चाहती हूँ कि जब आप बड़े-बड़े वादे करते हैं, जुमले करते हैं और उन वादों को पूरा नहीं करते हैं, तो आप वादा खिलाफी सिर्फ देश के खिलाफ नहीं बल्कि देश के युवाओं के साथ करते हैं. देश के युवा को सिर्फ और सिर्फ रोजगार चाहिए और भाजपा सरकार युवाओं के रोजगार की बात छोड़कर हर बात करती है. इस हांड़ कंपाने वाली ठंड में बिहार, उत्तर प्रदेश के युवा दिल्ली, उत्तर प्रदेश और बिहार की सो रही सरकारों को जगाने के लिए रेलवे ट्रैक पर बैठे हैं. सरकार का काम लाठियां बरसाना, धमकाना, लहूलूहान करना नहीं, बल्कि संवाद स्थापित करना है.

उन्होंने कहा कि युवाओं को अपना आंदोलन शांतिपूर्ण ढंग से करना चाहिए. यह देश के युवाओं के भविष्य का मामला है, भाजपा सरकार खिलवाड़ मत करे, इनके साथ हठ, अभिमान मत करे.

जो तस्वीरें सामने आ रही हैं वे चिंताजनक: कुमार भवेश चंद्र, वरिष्ठ पत्रकार

‘द इंडियन पोस्ट’ के संपादक कुमार भवेश चंद्र कहते हैं कि बीते तीन दिनों से जिस तरह की तस्वीरें सामने आ रही हैं, वे बेहद चिंताजनक हैं. तस्वीर चाहे बिहार के गया की हो या फिर यूपी के प्रयागराज की, ये सभी हमें बहुत कुछ सोचने के लिये मजबूर करती हैं. छात्रों के साथ जितनी निर्ममता से पुलिस व्यवहार कर रही है, बावजूद इसके कि अब तक इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि इन्हीं छात्रों ने ट्रेनों में आग लगायी है या इन्हीं छात्रों ने सड़कों पर हिंसा फैलायी है. यकीनन हिंसा को कोई भी वाजिब नहीं ठहरा रहा, लेकिन इसके बावजूद इन छात्रों या अभ्यर्थियों की मांग को भी कोई गलत नहीं कह सकता. दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि उस मांग का समर्थन कर रहे लोगों को सताया जा रहा है. पटना में प्रतियोगी परीक्षाओं के लिये छात्रों को तैयार करने या कहें कि कोचिंग क्लास चलाने वाले बेहद चर्चित खान सर के खिलाफ की गयी एफआईआर भी इसी का प्रमाण है.

कौन हैं यूट्यूबर खान सर

बता दें कि खान सर के यूट्यूब वीडियो खासे चर्चित हैं. यूट्यूब पर उनके मीलियंस सब्सक्राइबर्स हैं. कोरोना काल में तो छात्रों के लिये प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने के लिये खान सर का वीडियो देश के हर घर में खूब देखे गये हैं. कहा गया कि खान सर ने ही एक वीडियो जारी करके छात्रों को उकसाया था कि वे सरकार से अपनी बात मनवाने के लिये सड़कों पर उतर जायें. हालांकि, फिलहाल यह आरोप भी पूरी तरह से साबित नहीं हो पायी है. पर सवाल ये उठता है कि अगर उन्होंने ऐसा किया भी हो तो इसमें गलत क्या है? सरकार तक अपनी बात पहुंचाने के लिये आम जनता के पास दूसरा और कौन सा माध्यम है? हां, जहां तक हिंसा की बात है, तो उसे न तो खान सर ने करने के लिये कहा, ऐसा उस वीडियो में है और न ही हम उसे सही ठहराते हैं. लेकिन अपनी बात पहुंचाने के लिये सड़कों पर उतरने के अलावा हम देशवासियों के पास दूसरा कौन सा माध्यम है, सरकार ये ही बता दे. सड़क पर न उतरकर अगर हम अपनी बात सोशल मीडिया पर रखते हैं, तब भी तो सरकार हमारे खिलाफ कार्रवाई करने से खुद को रोक नहीं पाती.

छलका यूपी में ‘का बा’ से चर्चित हुईं नेहा राठौड़ का दर्द

ताजा उदाहरण यूपी में ‘का बा’ पार्ट वन गाकर चर्चा में आयीं बिहार की लोक गायिका नेहा सिंह राठौड़ की ही ले लें. बीते दिनों नेहा ने जब अपने चर्चित गाने यूपी में ‘का बा’ का पार्ट टू गाकर उसे यूट्यूब पर डाला तो यूपी चुनाव को लेकर पहले से ही परेशान बीजेपी को यह भी रास नहीं आया. एक ओर तो नेहा को बुरी तरह से ट्रोल किया जाने लगा तो दूसरी ओर यूपी बीजेपी ने नेहा के गाने के जवाब में एक गाना बनाकर अपने ट्वीटर हैंडल से शेयर कर दिया. हालांकि, इतने पर भी बात खत्म हो जाती तो ठीक था, लेकिन नेहा को गालियां देने और सोशल मीडिया पर उन्हें बुरी तरह से ट्रोल करने का सिलसिला बदस्तूर जारी रहा. हालत ये हो गयी कि नेहा ने फेसबुक लाइव पर आकर न केवल अपना दर्द बयां किया, बल्कि ट्रोल करने वालों को यह भी साफ शब्दों में कह दिया कि यूपी में का बा पार्ट थ्री तो मैं गाऊंगी ही, लेकिन उससे भी पहले बिहार और यूपी के इन बेरोजगार नौजवानों के लिये गाना गाऊंगी, जिन्हें पुलिस इतनी बर्बरता से मार रही है और जेल में डाल रही है.

पूरे मामले पर क्या कहते हैं वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी

यूपी की राजनीति पर गहन पकड़ रखने वाले बीबीसी के पूर्व वरिष्ठ संवाददाता रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि नेहा राठौड़ जिस तरह से अपना दर्द बयां कर रही हैं, वो बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है. आजादी की जो लड़ाई हमने लड़ी, उसका नेतृत्व महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह जैसे कितने ही महान लोगों ने किया. उनके जीवन मूल्यों को यदि याद किया जाये तो कहना होगा कि उससे ये बात सामने आती थी कि आजादी के बाद हम सभी नागरिकों को खुशहाली मिलेगी. आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से सभी नागरिक समान होंगे. हर किसी को अपनी बात रखने का अधिकार होगा, आजादी होगी, कोई सेंसरशिप नहीं होगी, लेकिन देश में एक ऐसी ‘ट्रोल आर्मी’ बन गयी है कि वो कहते हैं कि ‘जबरा मारे रोवे न दे’. मतलब एक तरफ तो लोग पीड़ित हैं, नौकरियां नहीं मिल रही हैं. रोजगार धंधे खत्म हो रहे हैं. परीक्षायें होती हैं तो कुछ न कुछ गड़बड़ होता रहता है. चाहे पर्चा लीक हो जाता है या फिर परीक्षा कैंसिल हो जाती है. उस पर अगर कोई अपनी बात कहना चाहता है तो उसे ट्रोल किया जाने लगता है, रोकने की कोशिश की जाती है.

लोग ये भूल रहे हैं कि अभिव्यक्ति की आजादी समाज के लिये सेफ्टी वॉल की तरह है. लोगों को अपनी बात रखने का अवसर न दिया जाये तो समाज में बगावत होने की गुजांइश बढ़ जाती है. शामिल थे. लोगों ने उन्हें सोशल मीडिया पर बुरी तरह से ट्रोल किया. बीजेपी के सांसद ने जब ये बयान दिया कि यूपी में सबकुछ है तो उसके जवाब में नेहा ने गाना गाकर अपनी बात रखी कि उनकी नजर में यूपी में क्या है. इसे सुनकर टाल देना चाहिये था, लेकिन आज समाज में असहिष्णुता बढ़ गयी है. खासकर सोशल मीडिया में हालात ऐसे हो चुके हैं कि जो तुमको हो पसंद वही बात कहेंगे… करिये तब तो ठीक है वरना फिर लोग आपको ट्रोल करने लगेंगे या फिर आपके लिये अनर्गल बातें करेंगे या आपको ग्रुप से बाहर कर देंगे या फिर आपको सीधे ब्लॉक ही कर देंगे.

चरित्र हनन को लगी है ‘ट्रोल आर्मी’

त्रिपाठी जी कहते हैं, ये तो व्यक्ति विशेष की बात हो गयी लेकिन इससे इतर आज राजनीतिक दलों ने अपनी ‘ट्रोल आर्मी’ बना ली है. इसमें बीजेपी के पास तो पेड ‘ट्रोल आर्मी’ मौजूद है, जिन्हें इसी बात के पैसे दिये जाते हैं कि वे किसी को भी बदनाम करें, परेशान करें या फिर उसका चरित्र हनन करें.

रेलवे बोर्ड परीक्षा के नियम व शर्तों में बाद में हुआ बदलाव

जहां तक रेलवे की बात है तो 2019 में एक वैकेंसी निकली थी, जिसमें लगभग डेढ़ करोड़ लोगों ने अप्लाय किया था. इसी से ये अनुमान लगाया जा सकता है कि देश में बेरोजगारी का स्तर कितना ज्यादा है. जब वैकेंसी निकाली गयी तब परीक्षा के जो नियम व शर्तें बतायी गयी थीं, उसमें बाद में बदलाव कर दिये गये जबकि नियमत: आप ऐसा नहीं कर सकते. लेकिन बिल्कुल लोअर लेवल के एग्जाम को सरकार ने आईएएस और पीसीएस जैसा बना दिया कि हम इसे दो बार में करेंगे. एक बार प्री और दूसरी बार मेन्स की तरह. इंटरमीडिएट के छात्रों के लिये जो परीक्षा थी, उसमें ग्रेजुएट्स ने भी अप्लाय किया, हालांकि रेलमंत्री जी के मुताबिक, उसके लिये किसी को रोका नहीं जा सकता था. पर उसमें मार्किंग में भी गलती की गयी. फिलहाल इसे तकनीकी समस्या बताकर इसमें सुधार के लिये अब अमेरिकी कंपनी की मदद ली जा रही है, ऐसा सरकार ने बताया है.

इसे भी पढ़ें:

LIVE देखें, रेल मंत्री का प्रेस कांफ्रेंस, यूपी-बिहार में छात्रों का प्रदर्शन, गया में फूंकी ट्रेन

इस सरकार में नहीं है किसी की भी सुनवाई

समस्या ये है कि इस सरकार में किसी की सुनवाई नहीं है. छात्र जो भी कह रहे थे, अगर समय पर उनकी बात सुन ली जाती तो शायद कि ये सब न होता. क्योंकि ये बात मान्य नहीं है कि अचानक से हजारों की संख्या में गया, छपरा, आरा और प्रयागराज में छात्र सड़कों पर आ गये और ट्रेनें जला दीं. इससे पहले सुगबुगाहट तो हुई ही होगी. सोशल मीडिया पर लोगों ने पहले अपना दुख बयां भी किया होगा. सरकार कहती है कि वो सोशल मीडिया की मॉनिटरिंग करती है. फिर, समय पर इन छात्रों की बात क्यों नहीं सुन ली गयी. असल में, देखा जाय तो इस सरकार में किसी की सुनवाई नहीं है. अब चाहे वो किसान हो, छात्र हो, शिक्षक हो, पत्रकार हो या ​कोई भी क्यों न हो. आखिर क्यों लोगों को बोलने से रोका जा रहा है, क्यों लोग अपनी बात नहीं रख सकते? और फिर जब वे सड़क पर उतर जाते हैं तो आप उन पर लाठी चार्ज, आंसू गैस और गोलियां चलाने लगते हैं. ये सही है कि आंदोलन का तरीका हिंसक नहीं होना चाहिये लेकिन सरकार को भी ये समझना चाहिये कि संबंधित अधिकारियों को भेजकर मामले को समझने और समझाने की कोशिश करनी चाहिये, उनका हल निकालने की कोशिश करनी चाहिये न कि इस तरह की बर्बरतापूर्ण कार्रवाई की जानी चाहिये.

कोचिंग चलाने वाले खान सर पर एफआईआर अजीब

यही नहीं, इन सबके लिये पटना में कोचिंग चलाने वाले खान सर पर एफआईआर दर्ज किया जाना भी अजीब लगता है, खासकर तब जबकि कल से ही तमाम टेलीविजन चैनलों पर उन्हें छात्रों को समझाने की कोशिश करते हुये दिखाया जा रहा है ताकि छात्र हिंसा न करें. हां, इतना जरूर है कि वे साथ ही साथ वे छात्रों के असंतोष का कारण भी सरकार तक पहुंचाने की कोशिश करते हुये देखे गये.

कृपया इस भी सुनें

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Related Articles

Back to top button