समाज निर्माण में वेदांत, विज्ञान और विश्वास की भूमिका महत्पवूर्ण:सुश्री उर्मिला बहन

विनोबा विचार प्रवाह अंतर्राष्ट्रीय संगीति

शाहजहांपुर 24 अगस्त। । वेदांत का आशय स्वयं को पहचानने से है। विज्ञान से जीवन सरल होना चाहिए और परस्पर विश्वास से अशांति का शमन होता है। विज्ञान को दिशा देने का काम अध्यात्म के सिवा और कोई नहीं कर सकता।इसलिए व्यक्ति और समाज जीवन को बनाने में वेदांत, विज्ञान और विश्वास की महत्वपूर्ण भूमिका है.यह बात सत्य सत्र में सर्वोदय आश्रम हरदोई (उत्तरप्रदेश) की सुश्रीउर्मिला बहन ने विनोबा विचार प्रवाह द्वारा विनोबा जी की 125जयंती परफेसबुक माध्यम पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय संगीति में कही।

सुश्री उर्मिला बहन ने कहा कि निश्छल प्रेम से किसी के भी हृदय को जीता जा सकता है। विनोबा जी ने भूदान आंदोलन में यह पराक्रम कर दिखाया। उनके इस आंदोलन से सरकार को सीलिंग एक्ट लाने में सहायता मिली। आज सामाजिक विषमता मिटाने के
लिए अनेक उपाय किए जा रहे हैं। विनोबा जी ने मालकियत को विषमता का मूल कारण माना। इसलिए उन्होंने मालकियत विसर्जन का मौलिक विचार समाज के सामने रखा। उन्होंने अपनी पदयात्रा के दौरान जिन मूल्यों का बीजारोपण किया, वह वर्तमान वैज्ञानिक युग के बिलकुल अनुरूप है।

चित्त में शांति

सुश्री उर्मिला बहन ने कहा कि जो स्थान श्वास का जीवन में है वही स्थान विश्वास का समाज जीवन में है। आज समाज में चारों ओर अविश्वास का वातावरण निर्मित हुआ है। चित्त में शांति रहने से विश्वास बढ़ाया जा सकता है। विश्वास को प्रयोजनमूलक व्यवहार में लाने पर सामूहिक शक्ति का निर्माण होगा, जिससे समस्याओं के समाधान में मदद मिलेगी।

उन्होंने कहा कि विकेंद्रित जीवन शैली को हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग बनाने की आवश्यकता है। सेवा कार्य में अहंकार सबसे बड़ी बाधा है। इसे दूर करने के लिए विनोबा जी ने स्वच्छता को कसौटी बताया। यह अहंकार को कम करने में सहायक है।

सत्ससाहित्य प्रचार

सुश्री उर्मिला बहन ने कहा कि किसी भी समाज के उत्थान के लिए सत्ससाहित्य प्रचार महत्वपूर्ण है। आज तनावपूर्ण जीवन में लोगों में इसे जानने और समझने की इच्छा जाग्रत हुई है। व्यक्ति को श्रद्धाभाव अपने मन में रखकर समाज जीवन में प्रवेश करना चाहिए। विनोबा जी ने अपने हर कृतित्व से जीवन को उन्नत बनाने का संदेश दिया है। जीवन का ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं है, जिस पर विनोबा जी ने अपने चिंतन की छाप न छोड़ी हो।

ग्रामोपयोगी विज्ञान

प्रेम सत्र के द्वितीय वक्ता ग्रामोपयोगी विज्ञान केंद्र के कार्यकारी निदेशक श्री सोहम पंड्या ने कहा कि तकनीक मनुष्य के साथ प्राणी मात्र की पोषक होनी चाहिए। ग्रामोपयोगी विज्ञान की आधारशिला महात्मा गांधी और जे.सी.कुमारप्पा ने सन् 1936 में रखी थी।

गांव में परिपुष्ट विश्व के दर्शन के लिए केंद्र द्वारा मूलभूत आवश्यकताएं अन्न, वस्त्र, आवास, नयी तालीम, स्वास्थ्य, काम के औजार और रोजगार के क्षेत्र में अनेक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। अभी तक एक लाख ग्रामीण युवाओं को स्वरोजगार का प्रशिक्षण दिया जा चुका है। भोजन सुधार के लिए केंद्र सौ प्रकार की वनस्पतियों पर काम कर रहा है, जिससे एक हजार प्रकार के उत्पाद बनाए जा सकते हैं। इससे भोजन में पोषण की मात्र बढ़ जाएगी।

पच्चीस हजार किसानों के बीच जैविक कपास का प्रयोग किया जा रहा है। अच्छे आवास के लिए केंद्र द्वारा कच्ची मिट्टी के मकान बनाए जाते हैं। गांव की ही मिट्टी से बने मकान पर्यावरण हितैषी होते हैं।

वनौषधि 

स्वास्थ्य के लिए वनौषधि से अनेक प्रकार के आसव तैयार किए जाते हैं। गांव की जरूरतें दस किलोमीटर क्षेत्र में मिलने वाली वस्तुओं से पूरी होने की योजना पर केंद्र काम करता है।

करुणा सत्र के वक्ता कर्नाटक के नीलप्पा गोरा ने विनोबा साहित्य के प्रचार की जानकारी दी। प्रारंभ में श्री रमेश भैया ने अतिथि वक्ताओं का परिचय दिया। संचालन श्री संजय राय ने किया। आभार डाॅ.पुष्पेंद्र दुबे ने माना।

डाॅ.पुष्पेंद्र दुबे

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