जीवनपर्यंत अनाथ बच्चों की मसीहा बनी रहीं ओडिशा की पद्मश्री शांति देवी

इस दुनिया में बहुत कम लोग होते हैं, जो अपना संपूर्ण जीवन दूसरों की सेवा करने के लिए समर्पित कर दें।

डा. विवेक बिंद्रा

अनाथ बच्चों की मां कहलाने वाली शांति देवी जी को बीते वर्ष सरकार ने पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया, इसके कुछ ही महीनों बाद इनके निधन की दुखद खबर आयी. इस दुनिया में बहुत कम लोग होते हैं, जो अपना संपूर्ण जीवन दूसरों की सेवा करने के लिए समर्पित कर दें। ऐसी ही शख्सियत थीं ओडिशा के रायगड़ा जिले की रहने वाली समाजसेवी शांति देवी जी का। पिछले साठ वर्षों से शांति देवी एक महिला नेता के तौर पर समाज सेवा को अपने जीवन का मुख्य उद्देश्य बनाए हुए थीं। समाज सेवा के क्षेत्र में अपने उल्लेखनीय योगदान की वजह से इन्होंने पूरे देश में अपनी एक विशेष पहचान बनाई। शांति जी जीवनपर्यंत सैंकड़ों आदिवासी महिलाओं और गरीब अनाथ बच्चों का भरण-पोषण करती रहीं। उनके अद्भुत कार्यों के लिए ही उन्हें बीते वर्ष पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। शांति देवी जी की मृत्यु हम सभी के लिए दुखद और क्षतिपूर्ण है। आइए शांति देवी जी के जीवन पर एक नजर डालें और जानने की कोशिश करें कैसे अपने संघर्ष के जरिये वे जीवनपर्यंत लोगों के लिये प्रेरणास्रोत बनी रहीं।

60 सालों से कर रही थीं समाज सेवा

शांति देवी जी पिछले 60 साल से समाज सेवा का उत्कृष्ट कार्य कर रही थीं। सामाजिक कार्यों में उनका योगदान केवल रायगडा जिले तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि उनकी ख्याति ओडिशा राज्य के बाहर भी फैली हुई है। वो अनाथ बच्चों के लिए कार्य करती रहीं। शांति देवी जी मूल रूप से भूदान आंदोलन और ‘सत्याग्रह’ आंदोलन से जुड़ी थीं, बाद में एक सौ इकतीस (131) अनाथ बच्चों को एक मां की तरह आश्रय देकर उनकी देखभाल करती रहीं।

पद्मश्री शांति देवी से बातचीत करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

बचपन से ही अन्याय के खिलाफ उठाती थीं आवाज

18 अप्रैल, 1934 को ओड़िशा के बालासोर के एक जमींदार परिवार में जन्मीं शांति देवी जी का विवाह 1951 में सामाजिक कार्यकर्ता डॉ रतन दास के साथ हुआ था। बचपन से ही उन्हें समाज में देखे जाने वाले अन्याय, अत्याचारों और उत्पीड़न के कृत्यों का विरोध करने की आदत हो गई थी। अपने बाद के जीवन में, वह गांधीवादी दर्शन से प्रभावित थीं और गोपबंधु चौधरी द्वारा स्थापित और प्रबंधित ‘गांधी आश्रम’ में शामिल हो गईं। शादी के मुश्किल से चार महीने बाद वह गुनुपुर शहर आई थी। वह वर्ष 1951 में अविभाजित कोरापुट जिले में व्याप्त भीषण सूखे की स्थिति से प्रभावित लोगों को राहत सामग्री वितरित करने के लिए वहां आई थीं।

पति की मृत्यु के बाद भी नहीं बदला समाज सेवा का रास्ता

शांति देवी जी के पति स्वर्गीय डॉ रतन दास भूदान आंदोलन के प्रणेता थे। शांति देवी जी ने अपने पति की तरह समाज सेवा करने का निर्णय लिया। यहां तक कि उनकी मृत्यु के बाद भी शांति देवी जी टूटीं नहीं बल्कि समाज सेवा करती रहीं। समाज सेवा करना ही उन्होंने अपना एकमात्र रास्ता बना लिया था।

पद्मश्री सम्मान लेतीं शांति देवी

अनाथ बच्चों के रहने के लिए बनाए आश्रम

अनाथ बच्चों की मां कही जाने वाली शांति देवी जी ने अनाथ बच्चों को आश्रय प्रदान करने के लिए रायगडा जिले के गुनुपुर, पद्मपुर ब्लॉक के जबरगुडा और नुआपाड़ा में ‘आश्रम’ (अनाथालय) स्थापित किए थे। वह अनाथ बच्चों को लातीं, उन्हें आश्रय देतीं, उनकी देखभाल करतीं और उनका पालन-पोषण करतीं। उनकी औपचारिक शिक्षा की व्यवस्था करने के अलावा वह उन्हें नैतिक शिक्षा भी सिखातीं ताकि वे बड़े होकर समाज में सम्मान के साथ रह सकें। इतना ही नहीं वे कई अनाथ लड़कियों की शादी में भी योगदान दे चुकी थीं। उनकी नैतिक शिक्षा के कारण, कई बच्चे बड़े हुए और आज विभिन्न संगठनों में अच्छी तरह से स्थापित हैं। वे संत विनोवा भावे से प्रभावित थीं।

संत विनोभा भावे से मुलाकात के बाद बदली जिंदगी

शांति देवी जी के जीवन में विशेष मोड़ तब आया, जब वो संत विनोभा भावे से मिलीं। उसके बाद उनके जीवन ने एक अलग मोड़ लिया। आदिवासी बहुल यह इलाका उनका कार्यक्षेत्र बन गया। शांति देवी जी ने 1952 में अविभाजित कोरापुट जिले में जारी भूमि सत्याग्रह आंदोलन से खुद को जोड़ा। फिर उन्होंने आदिवासियों की भूमि को मुक्त करने के लिए खुद को व्यस्त कर लिया, जिसे जमींदारों ने जबरन हड़प लिया था। बाद में वे बोलांगीर, कालाहांडी और संबलपुर जिलों में भूदान आंदोलन में शामिल हो गईं। उन्होंने गोपालबाड़ी में आश्रम में भूदान कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण दिया, जिसे मालती देवी जी (ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री नबा कृष्ण चौधरी की पत्नी) द्वारा स्थापित किया गया था। उस अवधि के दौरान उन्होंने आजीवन कारावास की सजा काट रहे लगभग 40 आदिवासियों की रिहाई के लिए भी काम किया।

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पद्मश्री सहित कई सम्मान से हुई हैं सम्मानित

शांति देवी जी ने पिछले साठ वर्षों से खुद को पूरी तरह से समाज सेवा की गतिविधियों में लगा रखा था। शांति देवी जी को उनके महान कार्यों के लिए कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगठनों से पुरस्कृत किया जा चुका था। वे कहती थीं कि किसी भी पुरस्कार से ज्यादा, गरीब बच्चों के चेहरे पर खुशी उन्हें अधिक आत्म-संतुष्टि देती है। उनके इन्हीं महान कार्यों के लिए भारत सरकार ने पिछले साल उन्हें पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया था।

86 वर्षीया शांति देवी ने आदिवासी महिलाओं और बच्चों के लिए काम करने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। शांति देवी जी ने जिस तरह से अनाथ बच्चों को मां का प्यार दिया, समाज सेवा का जो कार्य किया, वो वाकई तारीफ के काबिल है। मृत्युपरंत भी शांति देवी जी लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत (Inspiration) बनी रहेंगी। उनकी सफलता की कहानी (Success Story) हर किसी को प्रेरित करने वाली है।

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