पुण्यतिथि पर महीयसी महादेवी वर्मा को याद करते हुए…

गौरव अवस्थी। महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य का एक ऐसा नाम है जिन्होंने गद्य और पद्य दोनों विधाओं में कालजई साहित्य की रचना की। सरस्वती की विशेष कृपा महादेवी जी के साहित्य से प्रकट होती है।

वर्ष 1933 से लेकर 1936 के बीच में लिखे निबंधों में उन्होंने संसार की स्त्रियों की स्थितियों का विशद विवेचन किया है।

इन निबंधों को आप पढ़ें तो पौराणिक काल से लेकर वर्तमान तक की भारतीय स्त्रियों की समस्याओं का शब्द चित्र आपके सामने आता चला जाएगा।

महादेवी का निबंधों का संकलन

उनके इन निबंधों का प्रथम संस्करण कब निकला, यह हमारी जानकारी में नहीं है लेकिन पंचम संस्करण “श्रृंखला की कड़ियां” नाम से 1949 में “जगतनारायण लाल हिंदी साहित्य प्रेस इलाहाबाद” ने निकला था।

महिलाओं की समस्याओं पर केंद्रित इस संकलन का मूल्य ढाई रुपये था और इसकी 1000 प्रतियां निकली थीं।

इसमें महादेवी के अट्ठारह निबंध 11 उप शीर्षकों- हमारी श्रृंखला की कड़ियां, युद्ध और नारी, नारीत्व का अभिशाप, आधुनिक नारी, घर और बाहर, हिंदू स्त्री का पत्नीतव, जीवन का व्यवसाय, स्त्री के अर्थ स्वातंत्रय का प्रश्न, हमारी समस्याएं, समाज और व्यक्ति, जीने की कला-के साथ समाहित हैं।

महादेवी ने अपने यह निबंध संकलन “श्रृंखला की कड़ियां” किस भारतीय नारी को समर्पित की हैं, आप उस वाक्य को देखिए-” जन्म से अभिशप्त जीवन से संतप्त किंतु अक्षय वात्सल्य-वरदानमयी भारतीय नारी को”

अपने निबंधों के इस संकलन के प्रारंभ में “अपनी बात” में महादेवी ने लिखा है-” अन्याय के प्रति में स्वभाव से असहिष्णु हूं अतः इन निबंधों में उग्रता की गंध स्वाभाविक है परंतु ध्वंस के लिए ध्वंस के सिद्धांत में मेरा कभी विश्वास नहीं रहा मैं तो सजन के उन प्रकाश तत्वों के प्रति निष्ठावान हूं जिनकी उपस्थिति में विकृति अंधकार के समान विलीन हो जाती है।

वास्तव में अंधकार स्वयं कुछ ना होकर आलोक का अभाव है।

इसी से तो छोटा से छोटा दीपक भी उसकी सघनता नष्ट कर देने में समर्थ है।

भारतीय नारी जिस दिन अपने संपूर्ण प्राण वेग से जाग सके, उस दिन उसकी गति रोकना किसी के लिए संभव नहीं।

समस्या का समाधान समस्या के ज्ञान पर निर्भर है और यह ज्ञान ज्ञाता की अपेक्षा रखता है।

अतः अधिकार के इच्छुक व्यक्ति को अधिकारी भी होना चाहिए। सामान्यतः भारतीय नारी में इसी विशेषता का अभाव मिलेगा।

कहीं उसमें साधारण दयनीयता तो कहीं असाधारण विद्रोह है परंतु संतुलन से उसका जीवन परिचित नहीं।”

उदाहरण

200 पेज वाले संकलन के निबंधों के कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं-

“नारी का मानसिक विकास पुरुषों के मानसिक विकास से भिन्न परंतु अधिक द्रुत स्वभाव अधिक कोमल और प्रेम-घृणादि भाव अधिक तीव्र तथा स्थाई होते हैं।

उन्हीं विशेषताओं के अनुसार उसका व्यक्तित्व विकास पाकर समाज के उन अभावों की पूर्ति करता रहता है जिनकी पूर्ति पुरुष स्वभाव द्वारा संभव नहीं”

“याज्ञवलक्य अपनी विदुषी पत्नी को सब कुछ देकर बन जाने को प्रस्तुत होते हैं परंतु पत्नी वैभव का उपवास करती हुई पूछती है यदि ऐश्वर्य से भरी सारी पृथ्वी मुझे मिल जाए तो क्या मैं अमर हो सकूंगी”

“त्यागी बुद्ध की करुण कहानी की आधार सती गोपा भी केवल उनकी छाया नहीं जान पड़ती वरन उसका व्यक्तित्व बुद्ध से भिन्न और उज्जवल है निराशा में ग्लानि में और उपेक्षा में वह ना आत्महत्या करती है ना वन वन पति का अनुसरण अपूर्व साहस द्वारा अपना कर्तव्य पथ खोज कर स्नेह से पुत्र को परिवर्धित करती है और अंत में सिद्धार्थ के प्रबुद्ध होकर लौटने पर धूल के समान उनके चरणों से निपटने न दौड़ कर कर्तव्य की गरिमा से गुरु बनकर अपने ही मंदिर में उनकी प्रतीक्षा करती है।

महापुरुषों की छाया में रहने वाले कितने ही सुंदर व्यक्तित्व कांति हीन होकर अस्तित्व खो चुके हैं परंतु उपेक्षिता यशोधरा आज भी स्वयं जीकर बुध के विराग में शुष्क जीवन को सरस बनाती रहती है”

स्त्रियों के स्वभाव पर महादेवी का कथन

स्त्रियों के स्वभाव का विवेचन करते हुए महादेवी जी अपने एक निबंध में लिखती है-” पुरुष समाज का न्याय है, स्त्री दया; पुरुष प्रतिशोधमय क्रोध है, स्त्री क्षमा; पुरुष शुष्क कर्तव्य है स्त्री सरस सहानुभूति और पुरुष बल है, स्त्री हृदय की प्रेरणा”

“आधुनिक भौतिकवाद प्रधान युग की नारी को यही दुख है कि वह पुरुष के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता पाकर भी संसार के अनेक आश्चर्य में एक बन गई है;

उसके हृदय की एकांत श्रद्धा की पात्र बनने का सौभाग्य उसे प्राप्त ना हो सका।

संसार उसे देख विस्मय से अभिभूत होकर चकित सा ताकता रहा जाता है परंतु नतमस्तक नहीं होता”

“संसार की प्रगति से अनभिज्ञ, अनुभव शून्य, पिंजर बद्ध पक्षी के समान अधिकार-विहीन, रुग्ण, अज्ञान नारी से फिर शक्ति संपन्न राष्ट्र की आशा की जाती है, जो मृगतृष्णा से तृप्ति के प्रयास के समान ही निष्फल सिद्ध होगी”

स्त्री का जीवन आत्मसमर्पण से प्रारंभ होता है

“पुरुष का जीवन संघर्ष से आरंभ होता है और स्त्री का आत्मसमर्पण से।

जीवन के कठोर संघर्ष में जो पुरुष विजई प्रमाणित हुआ उसे स्त्री ने कोमल हाथों से जय माल देकर स्निग्ध चितवन से अभिनंदन करके और स्नेह है प्रवण आत्म निवेदन से अपने निकट पराजित बना डाला”

“अग्नि में बैठकर अपने आप को पति प्राणा प्रमाणित करने वाली स्फटिक सी स्वच्छ सीता में नारी की अनंत युगों की वेदना साकार हो गई है कौन कह सकता है उस भागते हुए युग ने अपनी उस अलौकिक कृति अपने मनुष्यत्व की छुद्र सीमा में बंधे विशाल देवत्व की ओर एक बार मुड़ कर देखने का भी कष्ट सहा!

मनुष्य की साधारण दुर्बलता से युक्त दीन माता का वध करते हुए ना पराक्रमी परशुराम का हृदय पिघला ना मनुष्यता की असाधारण गरिमा से गुरु सीता को पृथ्वी में समाहित करते हुए राम का हृदय विदीर्ण हुआ”

ऐसी महीयसी महादेवी जी को पुण्य तिथि पर याद करते हुए सिर्फ एक ही बात कही जा सकती है कि अगर भारतीय नारी की समस्याओं की विवेचना पर महादेवी वर्मा जी द्वारा लिखे गए निबंधों को आज की पीढ़ी (पुरुष और महिला दोनों) ध्यान से पढ़ ले तो आधी आबादी की तमाम समस्याओं का समाधान आसान बन सकता है।

पुण्यतिथि पर महाप्राण निराला की मुंहबोली बहन महादेवी वर्मा जी को शत शत नमन!

 

 

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