श्रद्धेय सुब्बाराव भाईजी की यादें दिलों से नहीं जाएंगी

श्रद्धेय सुब्बाराव भाईजी की यादें

नरेंद्र सिंह तोमर

महान व्यक्तित्व के धनी श्रद्धेय सुब्बाराव भाईजी की यादें हमारे दिलों से कभी नहीं जाएंगी. बहुत याद आएंगे श्रद्धेय सुब्बाराव भाईजी. श्रद्धेय सुब्बाराव भाईजी की यादें ही आज हमारे पास शेष रह गई हैं. जीवन में ऐसे व्यक्तित्व वाले लोग कम ही मिल पाते हैं, जिनके जाने के बाद उनके सिखाए रास्ते हमारे लिए पर्थ प्रदर्शक बन जाते हैं. कुछ ऐसा ही व्यक्तित्व था उनका, कि श्रद्धेय सुब्बाराव भाईजी की यादें आज भी हमारे लिए पथ प्रदर्शक बने हुए हैं.

श्रद्धेय सुब्बाराव भाईजी की यादें : महात्मा गांधी जी के विचारों को आत्मसात करके जीने और उससे समाज को सतत, समृद्ध-सम्पन्न करते रहने वाली पीढ़ी के एक अप्रतिम व्यक्ति- भाईजी यानी श्रद्धेय श्री एस.एन. सुब्बाराव (93 वर्ष) हमसे बिछुड़ गए. निश्चिय ही मेरे सहित उनके लाखों अनुयायी इस समय शोक में हैं, लेकिन सुब्बाराव जी का जो व्यक्तित्व-कृतित्व रहा, उसके आधार पर उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम उनके बताए रास्तों पर चलते रहने का संकल्प और मजबूत करें. गांव-गरीब-किसानों के साथ देशहित में प्राण-प्रण से सदैव जुटे रहे.

सुब्बाराव भाईजी की यादें : श्री सलेम नानजुंदैया (एस.एन.) सुब्बाराव या हमारे देश में लोकप्रिय सुब्बारावजी उनके अपनों के बीच सिर्फ भाईजी के नाम से ही विख्यात रहे. वे ऐसे कर्मठ सिपाही थे कि अंत समय तक भी काम ही करते रहे. उनके लिए आजादी का मतलब समयानुरूप बदलता रहा. कभी अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति का संघर्ष, तो कभी अंग्रेजियत की मानसिक गुलामी से आजादी की कवायद. श्रद्धेय श्री विनोबा भावे जी और श्री जयप्रकाश नारायण जी ने विचारों की जंग छेड़ी तो सुब्बारावजी उनके साथ भी मजबूती से डटे रहे.

मात्र 13 बरस की उम्र में, जब बच्चों के खेलने के दिन होते हैं, भाईजी सब-कुछ भूलकर स्वतंत्रता के संघर्ष में कूद पड़े थे. कर्नाटक के बैंगलुरू में अपने स्कूल व शहर की दीवारों पर ही वे लिखने लगे थे- ‘क्विट इंडिया!’ और नतीजा वही हुआ, जो होना था- सुब्बाराव जी को जेल जाना पड़ा। इसके बाद भी उनके कदम थमे नहीं, बल्कि यह लड़ाई दिनों-दिन तेज होती गई और देश की आजादी में उनका योगदान अमर हो गया.

वर्ष 1969 में गांधी-शताब्दी वर्ष के दौरान सुब्बारावजी ने अपनी अनूठी कल्पना से गांधी जी के विचार और इतिहास को रेल के माध्यम से देश के कोने-कोने तक पहुंचाया. इस महाभियान में उनका युवाओं से जीवंत संपर्क हुआ और एक के बाद एक रचनात्मक कार्य करते हुए वे युवाओं के प्रिय बन गए. भाईजी का संपूर्ण जीवन सामाजिक सक्रियता का पर्याय था. जीवन में थकना और रूकना तो उन्होंने जैसे सीखा ही नहीं था.

चंबल के इलाकों में भ्रमण करते हुए सुब्बारावजी ने युवाओं की रचनात्मक प्रवृत्ति को और उभारने का काम किया. देशभर के युवाओं को संयोजित कर शिविरों का आयोजन उन्होंने किया और श्रम के गीत गाते हुए खेत, बांध, सड़क, छोटे-घर, बंजर भूमि को आबाद करने, युवाओं को जोड़ने का उनका सिलसिला अंतहीन रहा. न केवल चंबल बल्कि कई अशांत क्षेत्रों में चुनौतीपूर्ण स्थितियों में उन्होंने शिविरों का आयोजन बखूबी किया. कश्मीर, कोहिमा, असम, लक्षद्वीप, केरल, मिजोरम, गुजरात सहित देश के अनेक राज्यों में शिविरों के माध्यम से भाईजी ने युवाओं को जोड़ने का जो काम किया, वह देशवासियों की स्मृति में सदा-सदा के लिए अंकित रहेगा.

तब चंबल में बागियों का आतंक था. यहां के बीहड़ों में बागियों का बसेरा हुआ करता था और उनके आतंक से जनता त्रस्त थी. ऐसे में भाईजी ने इनके समर्पण के लिए विनोबा जी व जयप्रकाशजी की प्रेरणा से अद्भुत काम किया और सैकड़ों बागियों के हथियार डलवाए व उन्हें सामाजिक जीवन से जोड़ा तथा नागरिकों को राहत दिलवाई. चंबल में जौरा (मुरैना) में सुब्बारावजी का आश्रम इस बागी-समर्पण का एक प्रमुख केंद्र था.

यूं कहें कि वे चंबल घाटी में शांति मिशन के संस्थापक थे, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी क्योंकि उन्होंने कई कुख्यात बागियों का भी आत्मसमर्पण कराया था. भाई जी ने समर्पण के बाद की परिस्थितियों में 600 से अधिक बागियों के पुनर्वास और चंबल के युवाओं में नवजागरण का अद्भुत कार्य किया. यही वजह थी कि बागियों को तब न सरकार पर भरोसा था, न ही संस्थाओं पर. उनका विश्वास केवल और केवल भाईजी सुब्बाराव पर था.

वर्तमान में महात्मा गांधी सेवा आश्रम अपने कार्यों व गतिविधियों के माध्यम से समाज के अंतिम व्यक्ति के उत्थान के लिए समर्पित है. खादी ग्रामोद्योग, वंचित समुदाय के बच्चों, विशेषकर बालिकाओं की शिक्षा, शोषित व वंचित समुदाय के बीच जनजागृति व प्राकृतिक संसाधनों पर वंचितों के अधिकार, कृषि आधारित अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण, युवाओं के विकास में सहभागिता के लिए नेतृत्व विकास, महिला सशक्तिकरण, गरीबों की ताकत से गरीबोन्मुखी नियमों के निर्माण की पहल आदि के माध्यम से समाज में शांति स्थापना करने के लिए कृत संकल्पित हैं.

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15 से अधिक भाषाओं के जानकार भाईजी बहुआयामी व्यक्तित्व और विविधता में एकता के हिमायती रहे. उन्हें लोग ‘सिंगिंग गांधी’ भी कहते हैं. वहीं बच्चों के बीच वे ‘फुग्गा भाई’ के रूप में लोकप्रिय थे. हाफ पैंट और खादी की शर्ट, उनकी विशिष्ट पहचान थी. अटल विश्वास, व्यवहार कुशल, अत्यंत विनम्र, सादगी की प्रतिमूर्ति सुब्बारावजी की जीवनशैली हम सबके लिए सदैव अनुकरणीय रहेगी. उन्हें मेरी विनम्र श्रद्धांजलि.


लेखक भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री हैं.

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