राम की बहन शान्ता को भुला दिया…

राम जी की एक बहन भी थीं, नाम शान्ता था . कुछ लोगों ने सुना होगा, किन्हीं सुधीजनों को कथा-कहानियों से ज्ञात होगा, कतिपय सज्जनों ने पढ़ा भी होगा! तथापि बहुत कम लोगों को पता है कि- रामायण में श्रीराम जी की एक बहन भी थीं, नाम शान्ता था। उनका जन्म कौशल्या के गर्भ से हुआ था। हालाँकि अयोध्या नरेश दशरथ ने राम आदि के जन्म से बहुत पहले ही शान्ता को अपने मित्र अङ्गदेश के राजा रोमपाद को गोद दे दिया था। इसका उल्लेख अनेक पौराणिक ग्रन्थों में मिलता है।

= श्रीराम जी की एक बहन भी थीं, नाम शान्ता था
श्रीराम जी की एक बहन भी थीं, नाम शान्ता था

‘रामायणम्’ में लिखा है:

“इक्ष्वाकूणाम् कुले जातो भविष्यति सुधार्मिकः।
नाम्ना दशरथो राजा श्रीमान् सत्य प्रतिश्रवः।।

अङ्ग राजेन सख्यम् च तस्य
राज्ञो भविष्यति।
कन्या च अस्य महाभागा शान्ता नाम भविष्यति।
।”
(काण्ड 1, सर्ग 11, श्लोक 2-3)

= महर्षि वाल्मीकिकृत
महर्षि वाल्मीकिकृत

महर्षि वाल्मीकिकृत ‘रामायणम्’ को आधुनिककाल में भी श्रीराम के जीवन-चरित् के सर्वाधिक प्रामाणिक ग्रन्थ के रूप में माना जाता है। पुराणों में वर्णन है कि शान्ता अत्यन्त मेधावी
और होनहार कन्या थीं। प्रत्येक क्षेत्र में अनूठे ज्ञान के चलते वे परिपूर्ण साध्वी थीं। ‘रामायणम्’ में ऐसे अनेक प्रसगङ् हैं- जिनसे देश-दुनिया के साधारण लोग अपरिचित हैं। आजकल देश के विभिन्न भागों में होने वाली रामकथाओं और टीवी पर प्रचलित कथा—प्रवचनों में राम तथा रामायण-काल के विभिन्न पात्रों की चर्चा-कथानक बढ़-चढ़ कर गाये-सुनाये जाते हैं तथापि आधुनिक ‘बाबा’ ब्राण्ड कथाकार, उपदेशक, प्रवचक एवं सन्त अपनी कथाओं में प्राय: राम की बहन शान्ता के जन्म एवं जीवन-सन्दर्भ तक की चर्चा नहीं करते।

एक प्रकाण्ड सन्त तथा सनातन परम्परा के मनीषी कहते हैं-

इसका सीधा कारण बहुतायत लोगों की संस्कृत साहित्य में लगभग समाप्त हो चुकी रुचि और इससे बढ़ती अज्ञानता है।” जब भाषा विशेष के प्रति अरुचि हो तो उसकी साहित्यिक समृद्धि यथा- कथाओं अथवा, व्याकरण आदि को लेकर किसी के बारे में सोचना समय नष्ट करना ही होगा। देव-भाषा संस्कृत की यह स्थिति इस कारण भी है क्योंकि पिछले हज़ार सालों में देश के ‘राजाओं/नायकों की दुनियादारी’ ने संस्कृत को अप्रासंगिक व गौण बना दिया। जो लोग संस्कृत की दयनीयता को ‘अंग्रेजी की प्रभुता’ का परिणाम मानते हैं वे ग़लत हैं क्योंकि इसी अवधि में चीनी (मण्डारिन), रसियन, जापानी आदि.

रामायण दुनियाभर में…

अनेक भाषाओँ का न केवल अस्तित्तव बना रहा, बल्कि विकास भी हुआ। खैर, इस पर चर्चा करना सद्य: विचारणीय विषय से भटकना होगा। ‘रामायणम्’ में हैं शान्ता के सुबूत दुनियाभर में 300 से अधिक रामायण प्रचलित हैं।

= शान्ता राम
शान्ता राम

श्रीराम के जीवन-चरित की कथाएँ विभिन्न रामायणों में है। इनमें वाल्मीकि रामायण जिसे (रामायणम्) कहा जाता है, के अलावा ‘दक्षिण की रामायण’ के रूप में प्रसिद्ध ‘कम्बन रामायण’, ‘अद्भुत रामायण’, ‘अध्यात्म रामायण’ तथा ‘आनन्द रामायण’ की चर्चा ज्यादा होती है। श्रीराम की बहन देवी शान्ता के बारे में विशद् जानकारी वाल्मीकिकृत ‘रामायणम्’ में है। इसके बालकाण्ड और उत्तर काण्ड में शान्ता देवी का सारगर्भित उल्लेख है। यों, कुछ विद्वानों के अनुसार देवी शान्ता के बारे में अज्ञानता का एक महत्त्वपूर्ण कारण तुलसीदासकृत लोकप्रिय ‘श्रीरामचरितमानस’ है।

=‘श्रीरामचरितमानस’
श्रीरामचरितमानस’

दशरथ ने दे दिया था गोद… वाल्मीकि लिखते हैं कि- ” अपने चारों भाइयों श्री राम, लक्ष्मण,
भरत एवं शत्रुघ्न से काफी पहले उत्पन्न हुईं देवी शान्ता का विवाह कालान्तर में ऋषि कश्यप के पौत्र और ऋषि विभाण्डक के पुत्र शृंग ऋषि से हुआ था।

एक बार दशरथ के मित्र और अङ्गदेश के राजा रोमपाद और उनकी रानी वर्षिणी अयोध्या आये। कोई सन्तान न होने से वे बहुत दु:खी रहते थे। अतिथि दम्पति से वार्तालाप के दौरान राजा दशरथ को जब यह बात पता चली तो उन्होंने कहा- “मैं अपनी बेटी शान्ता आपको पुत्री के रूप में समर्पित
कर सकता हूँ। रोमपाद और वर्षिणी बहुत खुश हुए। उन्हें शान्ता के रूप में वाञ्छित सन्तान मिल गयी। उन्होंने बहुत स्नेह से उसका पालन-पोषण किया और माता-पिता के सभी कर्त्तव्य निभाये।
ब्रह्म-देव का महात्म्य….

…पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार एक दिन राजा रोमपाद अपनी पुत्री से बातें कर रहे थे तभी द्वार पर एक ब्राह्मण आया। उसने राजा से प्रार्थना की कि वर्षा के दिनों में वे खेतों की जुताई में शासन
की ओर से मदद प्रदान करें। राजा को यह सुनाई नहीं दिया और वे पुत्री के साथ बातचीत करते रहे। द्वार पर पधारे नागरिक (द्विज-देवता) की याचना राजा के द्वारा न सुने जाने से उनको मानसिक पीड़ा पहुँची। वे राजा रोमपाद का राज्य छोड़कर चले गये। ब्राह्मण-देव इन्द्र के भक्त थे। अपने भक्त की ऐसी अनदेखी पर इन्द्र देव राजा रोमपाद पर क्रुद्ध हुए और उन्होंने पर्याप्त वर्षा नहीं की। अङ्गदेश में नाम-मात्र की वर्षा हुई। इससे खेतों में खड़ी फसल मुरझाने लगी।

शृंग ऋषि को ब्याही शान्ता…

अवर्षा से सङ्कट की घड़ी में राजा रोमपाद शृंग ऋषि के पास गये और उनसे उपाय पूछा। उनकी माँ अप्सरा उर्वशी थीं। शृंग ऋषि ने रोमपाद को बताया कि वे इन्द्र को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ करें। राजा के अनुरोध पर ऋषि ने यज्ञ किया। इससे खेत-खलिहान पानी से भर गये। बाद में रोमपाद ने शान्ता का विवाह शृंग ऋषि के साथ कर दिया और वे सुखपूर्वक रहने लगे। शृंग ऋषि की तपस्थली शृंगवेरपुर में गंगा तट पर थी, इसी से वहाँ उनकी पत्नी माता शान्ता और शृंग ऋषि का मन्दिर है।
विभाण्डक के पुत्र थे शृंग…

=शान्ता और शृंग ऋषि का मन्दिर
शान्ता और शृंग ऋषि का मन्दिर

धर्मग्रन्थों में उल्लेख है कि ऋषि शृंग के पिता विभाण्डक ने इतना कठोर तप किया
कि देवतागण भयभीत हो गये और उनके तप को भङ्ग करने के लिए अप्सरा उर्वशी को भेजा। उर्वशी ने उन्हें मोहित कर उनके साथ संसर्ग किया। इसके फलस्वरूप शृंग का जन्म हुआ। ऋषि शृंग के माथे पर एक सींग (शृंग) था, अतः उनका नाम शृंग पड़ा।

शृंग ने कराया था दशरथ का यज्ञ…

… पौराणिक मान्यता है कि दशरथ के द्वारा शान्ता को गोद दिये जाने
से राजा रोमपाद से उनके सम्बन्ध और प्रगाढ़ हुए और एक-दूसरे के हितों के प्रति अधिक रुचि लेने लगे। ऋषि शृंग के यज्ञ के फलस्वरूप ही राम
ने जन्म लिया था। लिखा है,
“अनपत्योस्मि धर्मात्मन् शांता भर्ता मम क्रतुम्।
आहरेत त्वया आज्ञप्तः संतानार्थम् कुलस्य च।” (काण्ड 1, सर्ग 11, श्लोक 5))

अर्थात्, तब राजा (दशरथ) ने अङ्गदेश के राजा से कहा कि “मैं पुत्रहीन हूँ, आप शान्ता और उसके पति शृंग ऋषि को बुलवाइए। मैं उनसे पुत्र प्राप्ति के लिए वैदिक अनुष्ठान कराना चाहता हूँ।”
“श्रुत्वा राज्ञोथ तत् वाक्यम् मनसा स विचिंत्य च। प्रदास्यते पुत्रवन्तम् शान्ता भर्तारम् आत्मवान्।।” (काण्ड 1, सर्ग 11, श्लोक 6) अर्थात्, दशरथ की बात सुन कर रोमपाद ने हृदय से इस बात को स्वीकार किया और दूत भेज कर शृंग ऋषि को पुत्रेष्टि यज्ञ करने के लिए बुलाया।

सीमांत गांधी बादशाह खान अस्पताल की जगह अटल बिहारी वाजपेयी का नाम(Opens in a new browser tab)

“आनाय्य च महीपाल ऋश्यशृङ्गं सुसत्कृतम्।
प्रयच्छ कन्यां शान्तां वै विधिना सुसमाहित।।”
(काण्ड 1, सर्ग 9, श्लोक 12)

अर्थात्, शृंग ऋषि के आने पर राजा ने उनका यथायोग्य सत्कार किया और पुत्री शान्ता से
कुशलक्षेम पूछ कर रीति के अनुसार सम्मान किया।
“अन्त:पुरं प्रविश्यास्मै कन्यां दत्त्वा यथाविधि।
शान्तां शान्तेन मनसा राजा हर्षमवाप स:।।”
(काण्ड 1, सर्ग 10, श्लोक 31)

अर्थात्, (यज्ञ समाप्ति के बाद) राजा ने शान्ता को अन्त:पुर में बुलाया और रीति के अनुसार उपहार दिये।

इससे शान्ता का मन हर्षित हो गया। यह यज्ञ शृंग ऋषि ने महाराज दशरथ की पुत्र कामना की सुफलता के लिए करवाया था। जिस स्थान पर उन्होंने यह यज्ञ कराया था वह अयोध्या से क़रीब 39 किलोमीटर पूर्व में था। वहाँ पर आज भी उनका आश्रम है। वहीं पर उनकी और उनकी पत्नी की समाधियाँ भी हैं। हालाँकि देवी शान्ता का मुख्य मन्दिर शृंगवेरपुर (प्रयागराज) में गङ्गा तट पर है। (इसकी अलग कथा है।)

शृंग ऋषि मन्दिर

उसमें शृंग ऋषि की भी मूर्ति है। कुल्लू में है शृंग ऋषि मन्दिर
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में शृंग ऋषि का भी मन्दिर है।
कुल्लू शहर से इसकी दूरी करीब 50 किलोमीटर है। इस मन्दिर में शृंगी के साथ देवी शान्ता की प्रतिमा विराजमान है। यहाँ दोनों की पूजा होती है और दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। देवी शान्ता के बारे में जन-अनभिज्ञता का
वास्तविक कारण तुलसीदास रचित श्रीरामचरितमानस है। उसे तमाम कथावाचक लोगों को सुनाते रहते हैं। लोग इसी को राम का इतिहास समझ लेते हैं।

शृंग ऋषि मन्दिर
शृंग ऋषि मन्दिर

वे महर्षि वाल्मीकिकृत ‘रामायणम्’ नहीं पढ़ना चाहते क्यों कि वह संस्कृत में है। ‘रामायणम्’ अधिक प्रामाणिक है। वज़ह यह कि महर्षि वाल्मीकि राम के समकालीन थे। उन्हीं के आश्रम में राम के पुत्र लव एवं कुश का जन्म हुआ था। उल्लेख मिलता है कि श्रीराम के बारे में जो भी जानकारी उनको मिलती थी, वह रामायण में लिख लेते थे। ‘रामायणम्’ के उत्तर काण्ड के सर्ग 94 के श्लोक 1 से 32 के अनुसार राम के दोनों पुत्र लव और कुश ने राम के दरबार में जाकर सबके सामने रामायण सुनायी थी। उसे राम सहित दरबार में मौजूद सभी लोगों ने सुना था।

इदं कल्पवृक्ष डॉ० मत्स्येन्द्र प्रभाकर

इदं कल्पवृक्ष
डॉ० मत्स्येन्द्र प्रभाकर

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