आखिरकार साकार हुआ राम मंदिर का सपना
मीरा सिन्हा
सपना साकार हुआ। अनेकानेक संघर्षों और विवादों के बाद अन्ततः राम मन्दिर बनाने का मुहूर्त निकल ही आया। राम किसी व्यक्ति का नाम नहीं, एक संस्कृति का नाम है, जो जाति पांति- ऊंच-नीच कुछ नही मानती। जहाँ प्रत्येक व्यक्ति को समानाधिकार है। जहाँ राजा अपनी प्रजा के एक व्यक्ति के कहने पर अपनी पत्नी सीता को निर्वासित कर सकता है। तभी तो आज राम की गाथा विश्व के कण-कण में व्याप्त है। उनका जीवन चरित विश्व को प्रेरणा देता है। गाँधी जी ने भारत में राम राज्य का सपना देखा था। यदि हम राम को ईश्वर न मान कर लोक नायक मानें तो निश्चित है कि उनके गुण आनुवंशिक थे, जो उन्हे अपने पूर्वजों से मिले थे और सबके सम्मिलित रूप ने उनके व्यक्तित्व को अलौकिक बना दिया था।
उनके बाबा अज ने ही अयोध्या नगरी बसाई थी जो सुनते हैं कि त्रेता युग मे इन्द्र की नगरी को भी अपनी भव्यता से लज्जित करती थी। उनके पुत्र दशरथ की वीरता पर तो किसी को सन्देह नहीं है। वे राम के पिता थे। राम के पर बाबा रघु तो अपने वचन के इतने पक्के थे कि यह लोकोक्ति इतनी प्रसिद्ध हो गई ‘रघुकुल रीति सदा चली आई प्राण जाये पर वचन न जाई “तो सभी के गुणो का रुप थे राम। जिन्होने निर्विवाद रुप से सरयू के तट पर अयोध्या में जन्म लिया और विमाता के वनवास देने ने उन्हे लोकनायक के रूप मे प्रतिष्ठित कर दिया।
उनके आदर्श किसी विशेष वर्ग के नहीं, सम्पूर्ण मानव जाति के हैं। भारत देश के दो महानायक राम और कृष्ण जिन्हे ईश्वर का दर्जा प्राप्त है, उनके जीवन मूल्यों में बहुत अन्तर है। जहाँ कृष्ण का लोक रंजक रुप जन मानस को लुभाता है, उनकी बालस्वरुप नटखट लीलाओं मे भक्त अपने को आकन्ठ डूबा पाता है। वही राम के बालपन के चान्चलय का अधिक वर्णन है न ही उनके बाल रुप की अधिक मूर्तियाँ हैं। मध्य प्रदेश के छोटे से शहर ओरछा मे राम के बाल रुप की मूर्ति है जो किवदंती है किओरछा की महारानी जो राम भक्त थी और महाराज कृष्ण भक्त थे ने रानी को ताना दिया कि तुम अपने राम को अयोध्या से ला कर दिखाओ तो जानू।रानी अयोध्या गई जहाँ सरयू मे उन्हे राम के बाल रुप की मूर्ति मिली जिसे लेकर वह ओरछा आई।
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हालाँकि राजा ने राजा राम का मन्दिर बनवाया था क्योंकि कहा जाता है कि वह दशरथ के अवतार थे और राम के राज तिलक की इच्छा लेकर स्वर्ग सिधार गये थे। वहाँ आज भी राम की पूजा एक राजा की ही भाँति होती हैं। विदेशी पर्यटक भी आते है पर सुनते है वहाँ जो राम के बाल रुप का मन्दिर है वहाँ वह अपनी नटखट लीलाओं से पुजारी को आन्नद देते है। पर राम के ऐसे मन्दिर विरले ही है और वह भी खास मान्यता प्राप्त नही है। ऐसे में इस राम मन्दिर मे राम के बाल रुप की स्थापना रोमांच से भर देती है और उस युग मे लाकर खड़ा कर देती है जब राम ने इस धरती पर जन्म लिया था और जिसका व्यक्तित्व विश्व व्यापी हो गया है। आशा है त्रेता युग के उस अयोध्या का वैभव आधुनिक शैली के साथ अवश्य लौटेगा साथ ही राम के जीवन मूल्य और आदर्श भी।
(मीरा सिन्हा प्रख्यात लेखिका हैं)