रक्षाबंधन की पौराणिक कहानी, जब विष्णु राजा बलि के द्वारपाल बन गए
अपने यजमान के हाथ मे रक्षासूत्र बांधते समय पुरोहित मंत्र पढ़ते हैं ,
येन बद्धो बलिराजा
दानवेंद्रो महाबलः।
तेन त्वाम प्रतिबद्धनामि
रक्षे माचल माचलः।।
जिस रक्षासूत्र के द्वारा दानवों के राजा महाबली बलि को बांधा गया था, उसी से मैं तुम्हें बांधता हूं, जो तुम्हारी रक्षा करेगा। हे रक्षे तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो।
इसका एक आशय यह भी बताया गया है कि जिस रक्षासूत्र के द्वारा महाराजा बलि धर्म के बंधन में बांधे गए थे ,धर्म की ओर प्रयुक्त किए गए थे, उसी रक्षा सूत्र से बांधकर मैं तुम्हें धर्म में प्रयुक्त करता हूं।
दानवेन्द्र बलि भगवान के परमभक्त प्रहलाद के पौत्र थे ।उन्होंने इंद्र को अपदस्थ कर स्वर्ग पर अधिकार स्थापित कर लिया था। उनके पराक्रम से भयभीत होकर देवता स्वर्गलोक छोड़कर भाग गए थे।अपने पुत्रों की यह दुर्दशा देखकर देवताओं की मां अदिति ने कश्यप ऋषि की सलाह पर 'पयोव्रत' नामक व्रत का पालन किया जिसके प्रभाव से भगवान विष्णु स्वयं प्रकट हुए और उन्होंने देखते ही देखते वामन ब्रह्मचारी का रूप धारण कर लिया।
उसी समय दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य ने राजा बलि के लिए एक महान यज्ञ का आयोजन कर रखा था। वामन भगवान ब्रह्मचारी के रूप में सीधे यज्ञमंडप में पहुंचे ।महाराज बलि ने उनका यथोचित आदर सत्कार कर आने का कारण पूछा।
वामन भगवान ने उनसे तीन पग धरती अपने प्रयोग के लिए मांगा जिस पर बलि ने कहा कि स्वर्ग पर शासन करने वाले राजा से मात्र तीन पग धरती मांगना उनका उपहास है। वामन भगवान ने राजा बलि से कहा कि उन्हें तीन पग धरती ही चाहिए जिसके दान के लिए राजा बलि जल लेकर संकल्प करें। शुक्राचार्य को समझने मे देर न लगी कि वामन ब्रह्मचारी रूप में कोई साधारण व्यक्ति न होकर साक्षात विष्णु छलपूर्वक पर पधारे हैं और तीन पग धरती के बहाने बलि का सर्वस्व लेने आए हैं।
शुक्राचार्य ने यह बात अपने शिष्य राजा बलि को बताते हुये दान हेतु संकल्प लेने से मना किया लेकिन राजा बलि ने यह कह कर कि अगर भगवान स्वयं उनके दरवाजे भिक्षुक बनकर मांगने आए हैं,तो यह उनके लिए गर्व की बात होगी और जो भी परिणाम हो वे वामन ब्रह्मचारी द्वारा जो भी माँगा जायेगा, देंगे ।
इस पर नाराज होकर शुक्राचार्य जी ने राजा बलि को श्राप दिया कि उसका राज्य पाट सर्वस्व छिन जाएगा। राजा बलि ने इस श्राप को शांतिपूर्वक स्वीकार किया और वामन ब्रह्मचारी को तीन पग धरती देने का विधिवत संकल्प लिया।
भगवान ने दो पग में राजा बलि का समस्त साम्राज्य स्वर्ग सहित नाप लिया तीसरे पग के लिए राजा बलि ने भगवान के चरणों में अपना सिर रख दिया।
इस घटनाक्रम के समय ही बलि के बाबा प्रह्लाद जी भी वहीं आ गये थे।उनहोंने भगवान की विधिवत स्तुति की।
अपने गुरु तक की अवहेलना करने वाली महाराज बलि की सत्यनिष्ठा व धर्मपरायणता से प्रसन्न होकर भगवान ने कहा ,
एष मे प्रापितः स्थानं
दुष्प्रापममरैरपि।
सावर्णोरन्तरस्यायं
भवितेन्द्रो मदाश्रयः।।
मै इसे (बलि को)वह स्थान देता हूँ जो बडे बडे देवताओं को भी कठिनाई से प्राप्त होता है ।सावर्णि मन्वंतर मे यह मेरा परम भक्त इन्द्र होगा।
इसी के साथ भगवान ने राजा बलि को इंद्र का राज्य छोड़कर सुतल लोक मे जाने को कहा और यह भी कहा कि वहां तुम मुझे नित्य ही गदा हाथ में लिए खड़ा देखोगे।
मेरे दर्शन के परमानंद मे मग्न रहने के कारण समस्त कर्म बन्धन नष्ट हो जायेगे।
नित्यं द्रष्टासि मां तत्र
गदापाणिवस्थितम्।
मद्दर्शनमहाह्लाद
ध्वस्त कर्मनिबन्धनः।।
पौराणिक आख्यान के अनुसार भगवान विष्णु राजा बलि द्वारा शासित सुतल लोक में उनके द्वारपाल बन गए। बैकुंठ लोक से विष्णु भगवान के गायब होने पर लक्ष्मी जी अत्यंत चिंतित हो उठीं। तब नारद जी ने उन्हें बताया कि भगवान विष्णु महाराज बलि राज्य में द्वारपाल बन कर बस गये हैं।
नारद की ही सलाह पर लक्ष्मी जी राजा बलि के पास गयीं और उन्हें रक्षासूत्र बांधकर अपना भाई बना लिया। राजा बलि द्वारा यह पूछने पर कि वे उनकी क्या सहायता कर सकते हैं ,लक्ष्मी जी ने कहा कि वे उनके पति को द्वारपाल के दायित्व से मुक्त कर दें।
इस पर राजा बलि ने भगवान विष्णु से अपने बैकुंठ लोक वापस जाने का अनुरोध किया और फलतः भगवान विष्णु लक्ष्मी जी के साथ वापस अपने वैकुण्ठ लोक गये।
सभी इष्ट मित्रों को रक्षाबंधन के पावन पर्व की हार्दिक बधाई।
ओमप्रकाश त्रिपाठी , IPS (Rtd) की फ़ेसबुक वाल से साभार