राजस्थान : सचिन पायलट न घर के न घाट के

Pradeep Mathur
Pradeep Mathur

—प्रदीप माथुर

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत फिलहाल अपनी कुर्सी बचाने में सफल हो गए हैं। इस तरह लगता है कि कांग्रेस पार्टी ने राजस्थान के संघर्ष का पहला राउंड जीत लिया है। आगे आने वाले दिनों में क्या होगा इस समय कहना कठिन है। पर जिस तरह से सचिन पायलट को बैकफुट पर आना पड़ा और जिस तरह अपनी रणनीति में असफल होने के बाद बीजेपी के नेताओं को अपना मुंह छिपाना पड़ रहा है, उससे लगता है कि राजस्थान का राजनीतिक संकट फिलहाल टल गया है और वहां कांग्रेस की सरकार का को कोई खतरा नहीं है।

वास्तव में राजनीति के खिलाड़ी और उसकी समझ रखने वाले पत्रकारों और गैर पत्रकारों ने राजस्थान के संकट का आंकलन करने में एक आधारभूत गलती की और वह थी मध्यप्रदेश और राजस्थान की तुलना। हो सकता है कि रंगमंच एक सा लग रहा हो पर दोनों राज्यों में सरकारों का अस्थिर करने में बीजेपी की रणनीति की पृष्ठभूमि बिल्कुल अलग थी। शायद यह बात सचिन पायलट भी नहीं समझे या समझकर अति उत्साह में आ गए और इसीलिए मार खा गए।
यदि कुछ विश्वस्त सूत्रों की माने तो राजस्थान में बीजेपी की रणनीति के तार कश्मीर और लद्दाख में भारत-चीन संघर्ष से भी जुड़े हैं। कहा जाता है कि लद्दाख सीमा संघर्ष पर बातचीत के दौरान चीन ने कश्मीर की स्थिति पर भी अपना रोष व्यक्त किया और मोदी सरकार की समझ में आया कि अब समय आ गया है जब कश्मीर में जनप्रिय सरकार जल्दी से जल्दी बहाल होनी चाहिए। कश्मीर के मुख्यमंत्री के पद के लिए बीजेपी नेतृत्व और फारुख अब्दुल्ला में बातचीत काफी आगे बढ़ गई है। इसी बातचीत के दौरान फारुख अब्दुल्ला ने यह बात रखी कि उनके दामाद सचिन पायलट को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाया जाए और बीजेपी नेतृत्व को लगा कि वह एक तीर से दो निशाने लगा सकता है। राजनीतिक दांवपेचो के अनुभवहीन सचिन पायलट को भी लगा कि उनकी राह आसान है और वह ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह ही 20-25 विधायक के साथ बाहर निकलकर कांग्रेस की गहलोत सरकार गिराकर भाजपा समर्थन द्वारा आसानी से मुख्यमंत्री बन सकते हैं।

सचिन पायलट का राजस्थान के कांग्रेस विधायक दल में अच्छा खासा समर्थन है। फिर भाजपा के समर्थन और संसाधनों की सहायता से उन्हें अपनी राह बहुत आसान लगी। पर राजस्थान की स्थिति मध्यप्रदेश जैसी नहीं थी। एक तो गहलोत की विधायक दल और प्रशासन पर कमलनाथ के मुकाबले कहीं ज्यादा मजबूत पकड़ थी। दूसरे मुख्यमंत्री की बात पर राजस्थान के बीजेपी विधायक दल में भी विरोध हो गया। बीजेपी की वरिष्ठ नेत्री और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने अपने पत्ते बहुत बुद्धिमानी से खेले। अपने स्वामी भक्त विधायकों के द्वारा उन्होंने यह संदेश भिजवाया कि गहलोत सरकार गिरने और भाजपा सरकार बनने पर मध्य प्रदेश की भांति वह ही मुख्यमंत्री बनेंगी न कि सचिन पायलट।

कहा जाता है कि वसुंधरा राजे सिंधिया ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को यह भी संदेश भिजवाया कि वह सचिन पायलट के विरुद्ध कड़ा रुख अपनाए और यदि आवश्यकता हुई तो विधानसभा में विश्वास मत के दौरान उनके अपने भाजपा विधायक मतदान के समय अनुपस्थित रहकर परोक्ष रूप से अपना समर्थन देंगे।
इस तरह अशोक गहलोत की स्थिति बीजेपी विधायक दल के परोक्ष समर्थन से मजबूत हो गई। उधर कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व सचिन पायलट के बगावती तेवर से हतप्रभ था। कहा जाता है कि प्रियंका गांधी ने इस पर कड़ा रुख अख्तियार किया। उन्होंने कहा कि अगर इतना कुछ मिलने के बाद भी सचिन पायलट कांग्रेस के बाहर जाना चाहते हैं तो जाएं और चाहे राजस्थान में हमारी सरकार गिर जाए पर सचिन के साथ मोलभाव नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे गलत संदेश जाता है और लगता है कि कांग्रेस और उसका नेतृत्व बहुत कमजोर है।

भाजपा विधायक दल और कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व के इस रवैय्ये का सचिन पायलट को बिल्कुल भी अंदाज़ ना था। जनसाधारण की जमीनी संघर्ष की पृष्ठभूमि से दूर, टी.वी. के चहेते और लाडले सचिन पायलट जैसे नेता पुत्रों को असफलता का सामना करने का कोई अनुभव है ही नहीं। इसलिए सचिन पायलट न घर के रहे और न घाट के। राजस्थान में कांग्रेस संगठन और गहलोत की सरकार के सभी पदों से मुक्त सचिन पायलट अब कांग्रेस के बड़े नेताओं से संपर्क साधने की कोशिश कर रहे हैं। और कह रहे हैं कि वह कभी भी बीजेपी में जाना ही नहीं चाहते थे। सचिन पायलट को कांग्रेस नेतृत्व का विश्वास पुनः प्राप्त करने और संगठन तथा सरकार में वापसी करने में कितना समय लगेगा। यह तो भविष्य ही बताएगा। अभी तो फिलहाल वह न घर के हैं और न घाट के।
स्वतंत्र लेखन में रत वरिष्ठ पत्रकार/संपादक प्रोफेसर प्रदीप माथुर भारतीय जनसंचार संसथान (आई. आई. एम. सी.) नई दिल्ली के पूर्व विभागाध्यक्ष व पाठ्यक्रम निदेशक है। वह वैचारिक मासिक पत्रिका के संपादक व् नैनीताल स्थित स्कूल ऑफ इंटरनेशनल मीडिया स्टडीज (सिम्स) के अध्यक्ष है।

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