सावन में शिव की पूजा-अर्चना क्यों होती है !

कृपा करके प्रकृति का संरक्षण करें

राजीव तिवारी बाबा

सावन में शिव की पूजा-अर्चना क्यों होती है ! आज श्रावण मास का पहला सोमवार है। आप सभी को प्रकृति के इस महापर्व की बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं। बाबा आदिशिव और मां आदिशक्ति की कृपा आप सभी पर बनी रहे‌।

आज भोर का ध्यान बहुत ही सुन्दर रहा। चैतन्य प्रवाह अभी भी बना हुआ है। मोबाइल देखा तो सावन, सोमवार और शिव के संदेशों से मोबाइल भरा पड़ा है। आज के दौर में आस्थावान लोग सिर्फ मैसेज तक ही सीमित गये हैं शायद। क्या करें? वैसे भी कोरोना काल के चलते कांवड़ यात्रा पर रोक है और भी तमाम बंदिशें हैं।
क्या लिखूं? आस्था से जुड़ा पर्व है। जब तक मैं स्वयं आत्मसाक्षात्कारी नहीं था तो मैं भी ऐसे ही मनाता था जैसा आसपास होता दिख रहा है। मंदिरों में कई किलोमीटर की लाइनें। रुद्राभिषेक, पूजा पाठ और तमाम कर्मकांड। उपवास आदि। अच्छा है जिसकी जैसी श्रद्धा। मैं तो आध्यात्मिक व्यक्ति हूं। आत्मासाक्षात्कार के बाद परमात्मा की ओर आध्यात्मिक यात्रा जारी है। कहां तक पहुंचा हूं नहीं पता लेकिन कुछ अच्छे दिव्य अनुभवों के साथ यात्रा जारी है। इतना कह सकता हूं कि दैनिक जीवन की आपाधापी के बीच अब आनंद की स्थिति की समयावधि बढ़ती जा रही है जो शुरुआत में क्षणिक होती थी।


अब सावन और शिव पर आता हूं। तो मुझे लगता है कि आज के दौर के 99.99% लोग ये नहीं जानते होंगे कि सावन में शिव की पूजा-अर्चना क्यों होती है। किसी और देवी देवता की क्यों नहीं?

भगवान शिव – चित्र इंटरनेट से साभार


इसके ऐतिहासिक धार्मिक पौराणिक महत्व की जानकारियां इंटरनेट पर भरी पड़ी हैं। मैं चर्चा करुंगा इसके आध्यात्मिक पक्ष की। वर्तमान में मानव जीवन में सावन और शिव के पीछे छुपे संदेशों की और साथ ही आत्म जागरूकता के अभाव में वर्तमान मानव सभ्यता पर मंडरा रहे अस्तित्व के संकट की।

मेरा आध्यात्मिक अध्ययन प्राकृतिक है। अर्थात हम नवयोगी साधक अपने आस-पास की प्रकृति में ही परमेश्वर को ढूंढ़ते हैं। शिव पुरुष हैं। शक्ति उनकी प्रकृति हैं। हमारी सनातन संस्कृति में भी पृथ्वी पर मौजूद जीवन को समझते हुए मनीषियों ने जीवन के स्रोतों को देवी देवता का दर्जा देते हुए उनको सम्मान दिया अथवा यूं कहें कि उनके प्रति तमाम कर्तव्यों का पालन करने के निर्देश दिए। बाद में यही मनुष्य की नासमझी में कर्मकांड तक सीमित रह गये।


बहरहाल इस समय पृथ्वी की खगोलीय स्थिति ऐसी होती है कि इस दौरान गर्मी से तपती धरती के तापमान को इस पर चल रहे जीवन के अनुकूल करने लिए शीतलता प्रदान करना जरूरी है अन्यथा पृथ्वी पर मौजूद करोड़ों जीवन संकट में आ जाएंगे। प्रकृति में यह कार्य तमाम भौगोलिक वैज्ञानिक परिस्थितियों में बारिश करती है। बारिश यानि जल की बूंदें जो आसमान से गिरती हैं। सबके लिए बगैर किसी भेदभाव के। इसके प्रतीक स्वरूप मानव को संदेश देने के लिए शिव के प्रतीक शिवलिंग पर जल चढ़ाने की परंपरा की शुरुआत हुई। जो इस माह में कांवड़ यात्रा के रूप में आज सिर्फ कर्मकांड तक सीमित रह गई है।
मनुष्य की मूर्खता की हद देखिए।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्राकृतिक रूप से आसमानी बारिश के लिए आवश्यक कारकों जंगल, पहाड़, नदी, पोखरे, तालाब आदि को हम नष्ट करते जा रहे हैं। और एक पत्थर पर दो लोटा जल चढ़ाने के लिए मरे जा रहे हैं। इतना ही नहीं मनुष्य के जीवन को सिर्फ चलाने मात्र के लिए सर्वाधिक अत्यावश्यक मूलभूत तत्व पेयजल के स्रोतों नदी, कुंआ, पोखरा और भू-गर्भ जल को हम अपने कृत्रिम औद्योगिक विकास के चलते इतना प्रदूषित कर चुके हैं कि वो अब बगैर शुद्ध किये पीने लायक तो क्या नहाने लायक तक नहीं बचा। और उससे बड़ा संकट ये कि अब क्या शुद्ध और अशुद्ध, पृथ्वी पर आने वाले समय में पीने योग्य पानी के स्रोत ही खत्म होने जा रहे हैं। रह जाएगी सिर्फ सूखी धरती और समुद्र का खारा पानी। ये परिस्थितियां मनुष्य को उसके जीवन शाश्वत सत्य मृत्यु की ओर ले जा रही हैं।
सच से दूर मनुष्य कर्मकाण्ड की प्रतिपूर्ति में उलझ कर इस महत्त्वपूर्ण समय को गंवा रहा है।

पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ रहा है। इसके दुष्परिणामों की चेतावनी लगातार वैज्ञानिक वर्ग दे रहा है। अभी हाल ही में अमेरिका और यूरोप के कुछ क्षेत्रों में इस बढ़े ताप का तांडव लोग देख चुके हैं। शिव कह रहे हैं कि एक पत्थर पर पानी से अब कुछ नहीं होगा। पूरी पृथ्वी को पत्थर मानो और उस पर पानी छिड़कने का प्रबंध करो। ऐसी परिस्थितियां फिर बनाओ कि पृथ्वी पर प्राकृतिक रूप से बारिश की बूंदें गिरें जैसे पहले गिरती थीं। न कि जैसे दुबई में कराई गईं कृत्रिम रूप से। कृत्रिम बारिश के दुष्परिणाम और भयानक होंगे।


इन सब परिस्थितियों में पहले वाला सावन भी अब नहीं रहा। सावन की सुंदरता जाती रही। बारिश की बूंदों के मिट्टी पर गिरने की वो सोंधी-सोंधी महक आती अब क्या? क्योंकि मिट्टी तो कंक्रीट से ढकी जा रही है। सावन के झूले कहां गायब हो गये? क्योंकि अब पेड़ तो गमलों में आ गये हैं। सावन की बारिश की बूंदों से पेड़ों की पत्तियों पर जमी गरमी के मौसम की धूल जब बह जाती थी तो चारों और हरियाली दिखती थी। पूरी प्रकृति खिली खिली सी तरोताजी नजर आती थी। प्रकृति (आदिशक्ति) मानो श्रंगार कर अपने पुरुष (आदि शिव) से मिलने को उल्लासित हो। इसके प्रतीक स्वरूप हरियाली तीज का त्यौहार भी इसी सावन में आता है।


अब अंत में धार्मिक आध्यात्मिक कर्मकांडों के जरिए मनुष्य को स्वस्थ रखने की कोशिशों का व्यावहारिक पक्ष जान लें।


शिवपूजन में जलाभिषेक का तात्पर्य है कि गर्मी जब बढ़े तो कृपया स्नान सिर पर से जल गिरा कर करें। बहुत लोग गन्ने के रस से रुद्राभिषेक करते हैं।‌ इसका मंतव्य गन्ने को अपने आहार में शामिल करिए। गरमी के मौसम में खान-पान से जो पेट गरम हुआ है उसे खान-पान से ही ठंडा करने का समय आ गया है। गन्ने का रस लीवर के लिए रामबाण है। पीलिया आदि बीमारी में जब लीवर कमजोर पड़ता है तो डाक्टर भी गन्ने के रस के सेवन की सलाह देते हैं। साथ ही गन्ने की मिठास को अपनी वाणी में शामिल करें ताकि औरों को शीतल करें आप भी शीतल होय।

इसी तरह शिव को बेलपत्र चढ़ाने का तात्पर्य है कि बेल का सेवन आप शुरू करिए। बेल पेट के लिए रामबाण है। इस बदलते मौसम में खान-पान में जो परिवर्तन नहीं करता है उसे तमाम संक्रामक बीमारियों से गुजरना पड़ता है जिसका मुख्य कारण पेट होता है। जो लोग इन दिनों वायरल बीमारी से जूझ रहे हैं उनके लिए सलाह है कि दूसरे इलाज के साथ ही वे अपना पेट अवश्य साफ करने का उपाय करें। बीमारी दूर हो जाएगी।


एक बार फिर श्रावण मास के पहले सोमवार पर मैं बाबा की ओर से पृथ्वी की समस्त मानवजाति का आह्वान करता हूं खासकर उनसे जो खुद को सनातन परंपरा का वाहक मानते हैं, कृपा करके प्रकृति का संरक्षण करें। इसका तापमान न बढ़ने दें। जल संरक्षण करें। प्रकृति को हरा-भरा करें। अन्यथा प्रलय का सामना करने के लिए तैयार रहें। यकीं मानिए कि आज से इसकी शुरुआत नहीं हुई तो मनुष्य की आने वाली पीढ़ियों के लिए अस्तित्व का संकट स्पष्ट दिख रहा है। फिर न कहिएगा बाबा ने बताया नहीं था। बाबा से प्रार्थना है हम सबको सद्बुद्धि दें। सबका कल्याण हो।

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