राफेल सौदा : फ़्रांस में न्यायिक जाँच,भारत में भी निष्पक्ष न्यायिक जाँच की ज़रूरत

Anupam Tiwari
अनुपम तिवारी

फ्रांस के साथ राफेल विमानों के सौदे में विवादों की आग बुझने का नाम नही ले रही है. हाल ही में पेरिस की वेबसाइट ‘मीडियापार’ में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, इस सौदे में कथित भ्रष्टाचार और पक्षपात की न्यायिक जांच के लिए एक जज को नियुक्त किया गया है. जांच के दायरे में पूर्व राष्ट्रपति ओलांद समेत तमाम महत्वपूर्ण हस्तियां आती हुई दिख रही हैं. दूसरी ओर उद्योगपति अनिल अंबानी की भारत सरकार के साथ घनिष्ठता भी शक के दायरे में है.

‘मीडियापार’ ने ही अप्रैल 2021 में कई खोजी रिपोर्टों के माध्यम से सौदे की पड़ताल शुरू की थी, वर्तमान जांच इन्ही रिपोर्टो के आधार पर की जाएगी. रिपोर्ट में एक बिचौलिए की भूमिका भी संदिग्ध है, दावा किया जा रहा है कि भारत का प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) इससे अवगत है, लेकिन अब तक उसने जांच करने की जहमत नहीं उठाई है.

राफेल सौदे में अनियमितता का आरोप

वेबसाइट के खुलासे के बाद फ्रांस के भ्रष्टाचार विरोधी एनजीओ ‘शेरपा’ ने इस सौदे में  ‘भ्रष्टाचार, ‘मनी लॉन्ड्रिंग’, ‘पक्षपात’ और ‘करों में अनुचित छूट’ को मुद्दा बनाते हुए पेरिस के न्यायाधिकरण में शिकायत दर्ज कराई है. 

‘शेरपा’ ने इसके पहले 2018 में भी अनियमितता का आरोप लगाते हुए उक्त डील की जांच की मांग की थी. उनका आरोप था कि फ्रेंच कंपनी डसाल्ट को अनिल अंबानी के स्वामित्व वाली रिलायंस कंपनी का साझीदार बनने के लिए दबाव इसलिए डाला जा रहा है क्योंकि अम्बानी प्रधानमंत्री मोदी के करीबी हैं. उस समय पेरिस की पब्लिक प्रॉसिक्यूशन सर्विस (पीएनएफ) ने इस आरोप को खारिज कर दिया था.

पीएनएफ की तत्कालीन मुखिया एलियान ऊलेट ने शेरपा के दावे को खारिज करते हुए कहा था कि ऐसा ‘फ्रांस के हितों की रक्षा’ के लिए किया गया. ऊलेट द्वारा लिया गया यह फैसला आलोचकों के गले नही उतरा. फ्रांस के कौन से हित इस सौदे से बाधित हो रहे थे, यह बताने में वह असमर्थ रहीं थीं.

जांच के दायरे में पूर्व राष्ट्रपति ओलांद समेत तमाम महत्वपूर्ण हस्तियां आती हुई दिख रही हैं

आपराधिक जांच के दायरे में पूर्व राष्ट्रपति 

पीएनएफ के प्रवक्ता के अनुसार पूर्व फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद, जिनके समय रफाल सौदे पर हस्ताक्षर हुए थे, तत्कालीन वित्त मंत्री और वर्तमान राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों के साथ-साथ तत्कालीन रक्षा मंत्री ज़ौं-ईव ल द्रीयां द्वारा लिए निर्णयों पर उठे सवालों को लेकर आपराधिक जांच की जाएगी. 

एक आरोप यह भी है कि रिलायंस समूह की एक कंपनी, रिलायंस एंटरटेनमेंट ने जनवरी 2016 में तत्कालीन फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद की महिला मित्र और अभिनेत्री जूली गायेट द्वारा सह-निर्मित एक फीचर फिल्म के लिए 1.6 मिलियन यूरो दिए थे.

अनिल अंबानी की भूमिका पर सवाल

इस आपराधिक जांच में अनिल अंबानी की रिलायंस और फ्रांस की डसाल्ट एविएशन के बीच सहयोग की प्रकृति की भी जांच की भी संभावना है. क्योंकि यही वह धुरी है जहां से अनियमितता के आरोपों को पंख लगने लगे थे.

आरंभ में डसाल्ट और भारत सरकार आधिकारिक तौर पर 126 रफाल जेट की खरीद और निर्माण के लिए शर्तों पर बातचीत कर रहे थे. किंतु अप्रत्याशित रूप से 10 अप्रैल 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक सार्वजनिक ऐलान के द्वारा विमानों की एकमुश्त खरीद के पिछले सौदे को रद्द करते हुए 36 विमानों के नए सौदे से बदल दिया.

रिलायंस को थी सौदे मे बदलाव की जानकारी ?

मीडियापार के सनसनीखेज दावे के अनुसार उस समय भारत के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर तक मोदी के फैसले से अनजान थे, लेकिन अनिल अंबानी को इसका अंदाज़ा था. क्योंकि डसाल्ट और रिलायंस के बीच पहला मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (एमओयू) 26 मार्च 2015 को, यानी प्रधानमंत्री मोदी के ऐलान के एक पखवाड़े पहले ही हो गया था.

सौदे में बदलाव की जो घोषणा मोदी ने की, उसके द्वारा हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) सौदे से बाहर हो गया, और उसके बाहर होने से पहले ही रिलायंस ने डसाल्ट के साथ एमओयू पर दस्तखत कर दिए. वेबसाइट के अनुसार इससे यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या दोनों कंपनियों को पहले से इस बारे में जानकारी दी गई थी. 

रिलायंस और डसाल्ट का अनुबंध बना शक की वजह

डसाल्ट एविएशन और अनिल अंबानी की रिलायंस के बीच हुए पार्टनरशिप के अनुबंध के तहत 2017 में नागपुर के निकट एक औद्योगिक संयंत्र के निर्माण के लिए डसाल्ट रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड (डीआरएएल) नामक एक जॉइंट वेंचर कंपनी बनाई थी, इसके विषय के में भी नई जानकारियों का खुलासा मीडियापार ने किया है.

फ्रांसीसी वेबसाइट अपने द्वारा प्राप्त गोपनीय दस्तावेज के आधार पर यह दावा करती है कि डसाल्ट का रिलायंस के साथ यह गठजोड़ विशुद्ध रूप से राजनैतिक था. डसाल्ट को किसी भी तरह की साझेदारी या व्यापारिक कार्य करने में दिलचस्पी नहीं थी. वह मुख्य रूप से रिलायंस और भारत सरकार की घनिष्ठता का फायदा अपने हित मे उठाना चाहती थी.

दिलचस्प बात है कि डसाल्ट और रिलायंस ने हल्के लड़ाकू जेट विमान (एलसीए) के निर्माण में भी हिस्सा लेने की सोची, जिसका प्रभार एचएएल के पास था. यह प्रश्न भी खड़ा होना लाजमी है कि अनुभवहीन रिलायंस के साथ डसाल्ट क्यों इस तरह के करार करेगा.

भारत में जांच कब?

अब जब राफेल अनियमितता का जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर आ गया है, आवश्यक हो जाता है कि भारतीय शासन, न्यायालय और मीडिया घराने इस का संज्ञान लें. जिस तरह की पारदर्शिता का दावा किया जा रहा था, वह दूर की कौड़ी लगने लगी है. भारतीय मीडिया पर सरकार के पक्ष के बोलने का आरोप लगाना इसलिए भी आसान हो जाता है क्योंकि शायद ही उन्होंने मीडियापार जैसी खोजी पत्रकारिता के माध्यम से सच सामने लाने की कोशिश की हो.

किसी रक्षा सौदे में बिचौलिए न हों, पारदर्शी रूप से सभी प्रक्रियाएं अपनायी गयीं हों और चरणबद्ध तरीके से समय पर आपूर्ति सम्भव हो सके इससे बेहतर कुछ नही हो सकता, किंतु राफेल, बोफोर्स की भांति लगातार विवादों में घिरता जा रहा है. बेहतर तो यह होगा कि फ्रांस की तरह भारत मे भी न्यायालय समेत तमाम पक्ष अनियमितता और पक्षपात के आरोपों पर त्वरित कार्रवाई करते हुए सच को सामने लाने का प्रयास करें.

आवश्यकता हो तो निष्पक्ष न्यायिक जांच का कोई तरीका भारत में भी अपनाया जाए. विपक्ष को भी इस मुद्दे को बड़ी संजीदगी से उठाना चाहिए क्योंकि देश की रक्षा जरूरतें राजनीति से ज्यादा जरूरी होती हैं.

अक्सर सेना की वास्तविक जरूरतें देशभक्ति के नारों में लिपटी खोखली राजनीति की भेंट चढ़ जाया करती हैं. राजनीति की आड़ में स्वार्थी तत्व अपनी जेबें भर कर देश की सामरिक जरूरतों पर भयानक आघात करते रहते हैं. भारतीय वायुसेना को राफेल की कितनी सख्त आवश्यकता है यह किसी से छिपा नही है. जल्द से जल्द इस सौदे को पटरी पर लाने की आवश्यकता है जिससे भारतीय आसमान इस शानदार विमान द्वारा सुरक्षित किया जा सके.

(लेखक भारतीय वायुसेना के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं, मीडिया स्वराज समेत तमाम चैनलों पर रक्षा एवं सामरिक मामलों पर अपनी राय रखते हैं)

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