मेरे पापा जी प्रोफेसर (डा•) रामजीलाल जांगिड

पत्रकारिता के भीष्म पितामह कहे जाने वाले डा. रामजीलाल जांगिड का जन्मदिन

मेरा नाम उषा विश्वकर्मा है। मैं भिलाई (छत्तीसगढ़) में रहती हूं। मैं अब तक हिंदी, छत्तीसगढ़ी, भोजपुरी और बांग्ला भाषाओं की 82 फिल्मों में काम कर चुकी हूं। मुझे छत्तीसगढ़ी लोक नृत्यों और लोक गीत गायन में दक्षता के कारण सम्मानित किया जा चुका है।

दिल्ली के जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता श्री दिनेश वत्स ने मुझे भारतीय भाषाओं की पत्रकारिता शिक्षा के भीष्म पितामह कहे जाने वाले प्रोफ़ेसर (डा•) रामजी लाल जांगिड़ के बारे में बताया था। उन्होंने हिंदी, उर्दू, ओड़िया, गुजराती, मराठी और अंग्रेजी में दिल्ली, उत्तर प्रदेश राजस्थान, ओडिशा गुजरात तथा महाराष्ट्र के कई प्रमुख शहरों में जाकर युवा पत्रकारों को शिक्षा दी है। पूरे 21 साल।

उन्होंने 42 साल पहले भारत सरकार द्वारा स्थापित भारतीय जनसंचार संस्थान में देश का पहला भारतीय भाषा पत्रकारिता विभाग स्थापित किया। उन्होंने देश का पहला स्नातकोत्तर हिंदी पत्रकारिता पाठ्यक्रम वर्ष 1987-88 में शुरू किया। इसमें गांवों, कस्बों और छोटे शहरों की सैकड़ों युवा प्रतिभाओं को पत्रकारिता तथा जनसंचार की शिक्षा का लाभ मिल सका है।

आज भारत के मीडिया जगत के काफी शीर्ष स्थानों पर उनके छात्र और छात्राएं बैठे हुए हैं। देश के कई विश्वविद्यालयों में उनके छात्र और छात्राएं विभागाध्यक्ष हैं। मैं उन्हें पापा जी कहती हूं। वह मेरे धर्म पिता हैं। मैं ईश्वर से प्रार्थना करती हूं कि उन्हें अच्छा स्वास्थ्य और दीर्घ जीवन दे। आज वह 81 वर्ष के हो गए हैं। उनके चरणों में मेरा प्रणाम। उन्हें वर्ष 1965-66 में ही अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिल चुकी है, इंटरनेशनल डायरेक्टरी ऑफ आर्ट्स नामक बर्लिन (जर्मनी) से प्रकाशित पुस्तक में शामिल होकर। मात्र 25 वर्ष की आयु में। जय जोहार।

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