लद्दाख़ में मोदी, चीन का अखबार और हॉस्पिटल

राजेंद्र तिवारी, वरिष्ठ पत्रकार, राँची

राजेंद्र तिवारी, वरिष्ठ पत्रकार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निमू दौरे को अपने देश के सभी अखबारों को तो प्रमुखता से प्रकाशित ही करना था लेकिन चीन के अखबार साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने बहुत बड़ा फोटो पहले पेज पर प्रकाशित किया। अपने यहां के किसी प्रमुख अखबार ने पहले पेज पर इतना बड़ा फोटो नहीं छापा है। साथ में इसकी खबर भी फैला कर लगाई है। आखिर इसकी क्या वजह हो सकती है? इसके अलावा, द वाल स्ट्रीट जर्नल के संपादक रहे राजू नारिसेत्ती ने भाजपा द्वारा ट्वीट की गई मोदी के निमू दौरे की एक तस्वीर को लेकर सवाल खड़ा किया है कि पूरी सेटिंग फोटो खिंचवाने के लिए की गई है।

देश के गृहमंत्री अमित शाह ने ट्विट कर कहा था कि मोदी जी फारवर्ड पोस्ट पर हैं

यह समझने के लिए पहले निमू की भौगोलिक स्थिति व भू-सामरिक स्थिति जानना जरूरी है – निमू कहां स्थित है, यहां से भारत व चीन के बीच की वास्तविक नियंत्रण रेखा कितनी दूर है और हमारे देश के गृहमंत्री, सत्तारूढ़ दल भाजपा और इसके प्रवक्ताओं ने इसे कहां पर स्थित बताया?

निमू लेह से 34 किमी दक्षिण-पश्चिम में झंस्कार रेंज के नीचे है। झंस्कार रेंज जम्मू-कश्मीर व लद्दाख के बीच में पड़ती है। निमू से गलवान घाटी उत्तर में 250 किमी की दूरी पर है। यहां से पैंगांग लेक 243 किमी, चुसुल 231 व डीबीओ (दौलत बेग ओल्डी) 310 किमी दूर है।यह सिंधु नदी के तट पर स्थित एक टूरिस्ट प्लेस है और रिवर रैफ्टिंग के लिए बेस कैंप है।लेह से बमुश्किल ४० मिनट लगते हैं इस जगह पर पहुंचने में।

फारवर्ड पोस्ट उस फौजी पोस्ट को कहते हैं जो दुश्मन फौज की रेंज में हो और सीमा या नियंत्रण रेखा से 40 किमी के दायरे में स्थिति हो। लेकिन हमारे गृहमंत्री व सत्तारूढ़ दल भाजपा ने निमू को ट्विटर पर फारवर्ड पोस्ट बताकर संदेश देने की कोशिश की कि प्रधानमंत्री वास्तविक नियंत्रण रेखा के आसपास स्थित पोस्ट पर पहुंचे हैं।

साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने अपनी खबर में लिखा है – प्रधानमंत्री मोदी जिस जगह पर गये, वह पाकिस्तान के दावे वाले क्षेत्र में है। चीन का उस क्षेत्र से कोई लेना-देना नहीं है। यदि वे अक्साई चिन से सटे गलवान क्षेत्र में आते तो अलग बात होती। गलवान से निमू 240 किमी दूर है। प्रधानमंत्री मोदी अपने देश में भयावह रूप धारण कर रही कोरोना महामारी से निपटने में अपनी विफलता से लोगों का ध्यान हटाना चाहते हैं। गलवान घाटी प्रकरण के बाद वे अपने देश की जनता को संदेश देना चाहते हैं कि भारत हर तरह से मुकाबले को तैयार है। इसके अलावा, उनका उद्देश्य अपनी सेना में उत्साह का संचार करना है। भारत के नेताओं द्वारा अपनी जनता को संदेश देने के लिए सीमा का दौरा किया जाना आम बात है। इस खबर में शुक्रवार को चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजिआन द्वारा जारी बयान को भी दिया गया है – नई दिल्ली रणनीतिक मिसकैलकुलेशन न करे और पूरी स्थिति पर नियंत्रण के लिए चीन के साथ मिल कर काम करे।

इससे पहले, 19 जून को “न कोई घुसा, न घुसा हुआ है” वाले प्रधानमंत्री के बयान की क्लिप को भी चीन ने गलवान घाटी पर अपने दावे के पक्ष में इस्तेमाल करता आ रहा है। अब उसने यह बताते हुए कि निमू गलवान से बहुत दूर है, गृहमंत्री व भाजपा के ट्विट की व्याख्या कर दी कि वे अपनी जनता को संदेश देना चाहते हैं।

नारिसेत्ती इसे रिट्वीट करते हुए कमेंट किया

लेह में घायल जवानों के साथ पीएम के फोटो पर सवाल!
वरिष्ठ पत्रकार राजू नारिसेत्ती ने भाजपा द्वारा ट्वीट किये गये एक वीडियो पर सवाल खड़े किये हैं। इस वीडियो में प्रधानमंत्री मोदी गलवान घाटी में १५ जून को घायल हुए जवानों से हॉस्पिटल वार्ड में बात कर रहे हैं।
क्या फोटो ऑप है! भारतीय सैनिकों में एक भी घायल दिख नहीं रहा कि उसे पट्टी बांधने की जरूरत हो…सब चुस्ती से बैठे हैं (किसी को कोई अंदरूनी चोट भी नहीं?), बिना उपयोग में लाये हुए बेड्स वाला पुराना हॉस्पिटल वार्ड… कोई मेडिकल इक्विपमेंट भी नहीं. यह हो क्या रहा है?

इसके बाद तो सोशल मीडिया और खासकर ट्विटर पर और भी बाते सामने आने लगीं। लोगों ने पिछले साल अगस्त का एक फोटो रिट्वीट किया जिसमें महेंद्र सिंह धोनी लेह स्थित आर्मी हॉस्पिटल के कांफ्रेंस हाल में जवानों से बातचीत करते हुए दिखाई दे रहे हैं। इस फोटो को लगाकर दावा किया जा रहा है कि धोनी और प्रधानमंत्री मोदी जहां खड़े हैं, वह एक ही हाल है। दावा किया जा रहा है कि पूरा सेट तैयार किया गया प्रधानमंत्री के लिए जहां वे घायल जवानों के साथ बात करते हुए दिखाई दे सकें।

लेह के जनरल अस्पताल में उपलब्ध सुविधाओं पर भारतीय सेना का स्पष्टीकरण

 

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी 03 जुलाई, 2020 को लेह के जिस जनरल अस्पताल में घायल सैनिकों को देखने गए थे वहां उपलब्ध सुविधाओं की स्थिति के बारे में कुछ वर्गो द्वारा दुर्भावनापूर्ण और निराधार आरोप लगाए गए हैं।

सेना की ओर से इस पर दिए गए स्पष्टीकरण में कहा गया है कि बहादुर सैनिकों के उपचार की व्यवस्था को लेकर आशंकाएं व्यक्त किया जाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। सशस्त्र बलों द्वारा अपने सैनिकों के उपचार के लिए हर संभव बेहतरीन सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं।

स्पष्टीकरण में आगे कहा गया है कि जनरल अस्पताल में दी जा रही सेवाएं आपात स्थितियों में 100 बिस्तरों की विस्तार क्षमता का हिस्सा हैं और पूरी तरह से अस्पातल के सामान्य परिसर में ही है।

सेना ने कहा है कि कोविड प्रोटोकोल के तहत जनरल अस्पताल के कुछ वार्डों को आइसोलेशन वार्ड में परिवर्तित करना पड़ा है। अस्पताल को कोविड समर्पित अस्पताल बनाए जाने के बाद से यहां आमतौर पर एक प्रशिक्षण ऑडियो वीडियो हॉल के रूप में उपयोग किए जाने वाले स्थान को वार्ड में परिवर्तित कर दिया गया है।

कोविड प्रभावित क्षेत्रों से आने के बाद क्ववारंटीन में रखे जाने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए गलवान से लौटने के बाद से घायल बहादुर सैनिकों को इस हॉल में रखा गया है। थल सेनाध्यक्ष जनरल एम एम नरवणे और सेना के कमांडर भी घायल सैनिकों से मिलने इसी हॉल में गए थे।

 

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