प्रस्थानत्रयी –उपनिषद् ,ब्रह्मसूत्र और गीता।
डा चन्द्रविजय चतुर्वेदी
प्रस्थानत्रयी –उपनिषद् ,ब्रह्मसूत्र और गीता समन्वित रूप में सनातन संस्कृति और मानवधर्म का प्रमुख शास्त्र हैं। भारतीय समाज ही नहीं सभी चेतनशील समाज प्रस्थानत्रयी से अनुप्राणित हुए हैं। ये उद्धारक राह इंगित करते हैं।
उपनिषद् वैदिक प्रस्थान है ,ये वेदों के सारतत्व हैं अतः इन्हें वेदांत भी कहते हैं। उपनिषद् का अर्थ है समीप बैठना ,किसके समीप बैठना ,जो शिक्षा दे सके। हमें असत से सत की ओर ले चले ,अंधकार से प्रकाश की ओर ले चले ,मृत्यु से अमरत्व की ओर ले चले। उपनिषदों ने मानव समाज को परमार्थिक ज्ञान दिया। ईश्वर का मानव और जगत के साथ क्या सम्बन्ध है ,किस रूप में है ,इसे जानने के क्या उपाय हैं जैसे अनेक प्रश्नों का समाधान उपनिषद् से ज्ञात होता है। उपनिषद कहते हैं कि एक उच्चतर शक्ति है जो हमें आध्यात्मिक सत्ता को ग्रहण करने के योग्य बनाती है।
ब्रह्मसूत्र दार्शनिक प्रस्थान हैं जो सूत्र -फार्मूला के रूप में ज्ञानियों को ब्रह्मज्ञान प्रदान करते हैं। ब्रह्मसूत्र के रचयिता बादरायण व्यास ने उपनिषदों के तत्वज्ञान को ब्रह्मसूत्र में समन्वित किया।
भगवदगीता यद्यपि श्लोक है परन्तु भगवदवाणी होने से ये मंत्र हैं जिनमे ऐसे गूढ़तत्व निहित हैं जिससे ये सूत्र -फार्मूला भी हैं जो जनसामान्य का मार्गदर्शन करते हैं। गीता का सारतत्व यह है कि परस्पर विरोधी और विषमांग तत्वों का संश्लेष्णात्मक समन्वित ज्ञान और विचार ही जीवन के लिए उपयोगी है। गीता ने विचारधारा की विभिन्न प्रवृत्तियों को एकत्र कर एक पूर्ण इकाई मानव को प्रदान की है।
सनातन भारतीय समाज पर प्रस्थानत्रयी का महत्वपूर्ण प्रभाव इसी से परिलक्षित होता है कि मनीषी आचार्यों ने इनके भाष्य और मंथन से अनेक मतवाद –अद्वैत ,द्वैत ,विशिष्टाद्वैत ,आदि मतों तथा सम्प्रदायों को स्थापित किया।
प्रस्थानत्रयी के सूत्र आज के वैज्ञानिक युग में प्राणी ,चेतना ,ब्रह्माण्ड आदि को समझने के लिए उतने ही प्रासंगिक है जितने सैकड़ों वर्ष पूर्व के देशकाल ,परिस्थिति के लिए प्रासंगिक थे।