विचार और राजनीति की खेती किसानी

विचार और राजनीति की खेती पर चंद्रविजय चतुर्वेदी की एक कविता

मेरे एक बहुत पुराने मित्र

कल सहसा ही मेरे पास आ धमके

लकधक उजले  कपडे

एक बड़ी सी गाडी से उतरे

मैं हतप्रभ रह गया

तपाक से बोला

मित्र तुम तो खेती किसानी करते थे

अब क्या कर रहे हो

वह बोला पहले बैठने तो दो

कुछ चाय काफी पिलायो

फिर अपनी कथा कहानी सुनाता हूँ

काफी की चुस्कियां लेते वह बोला

गांव में मेरे जो पुश्तैनी जमीन थी

उनमे मैं विचार की खेती किसानी कर

कुछ दाल रोटी के जुगाड़ के लिए

फसलें उगा लेता था

कुछ फसल बेच बिकिन कर

घर गृहस्थी चलाता रहा

सूखा बाढ़ जाड़ा पाला झेलता

जैसे तैसे जिंदगी जीता रहा

एक दिन एक देवदूत के दर्शन हो गए

उसने झिझकारा यह कौन सी फसल

अपने खेत में उगाते हो

खुद दरिद्रता में जी रहे हो

और अपने औलाद को भी

दरिद्रता सौंप कर जाओगे

किस दुनिया में जी रहो हो

चलो मेरे संग नई दुनिया दिखाता हूँ

इस साल से मेरे बीज

अपने खेतों में बोयो और मौज करो

मैंने उससे पूछा ये काहे के बीज हैं

उसने तमाम सब्जबाग दिखाते  हुए बताया

ये राजनीति के बीज हैं

बम्पर फसल देती है

बाजार में खूब ऊँचे दामों पर बिकती है

उसकी बातों में सारे परिवार के लोग आ गए

अब मैं अपने खेतों में राजनीति की फसलें उगाता हूँ

और मौज कर रहा हूँ

मित्र मैं तुम्हारे पास इसलिए आया हूँ

की मेरे पास अभी भी विचारों के

कई प्रकार के बीज सुरक्षित बचे हैं

जो अब मेरे गांव के जमींन में नहीं उगते

मैं उन्हें तुम्हे सौंप रहा हूँ

मुझे विश्वास है है की तुम इन्हे सभांल

कर रखोगे

और ढूँढोगे इनके लिए वह जमीन

जिसमे ये ऐसी लहलहाती फसले दे सकेंगे

जिनकी बाजार में अच्छी कीमत मिल सकेगी

डा चन्द्रविजय चतुर्वेदी ,प्रयागराज

Chandravijay Chaturvedi
Dr Chandravijay Chaturvedi

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