मोदी जी और संयोग

जहं जहं चरण पड़हिं संतन के …

राजेश शर्मा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और संयोगों के बीच एक अटूट और अबूझ रिश्ता रहा है. उनकी जिंदगी के किसी भी आयाम को उठाकर देख लीजिये तो संयोगों का अनवरत सिलसिला दिखायी देगा.संभावना तो यही है कि ये किसी तरह के प्रयोग नहीं हैं बल्कि संयोग ही हैं. ऐसा ही संयोगों का एक सिलसिला उनकी विदेश यात्राओं के बीच में भी दृष्टिगोचर है. वे जहां- जहां गये वहां क्या हुआ उस पर नजर डालता यह आलेख.

5 अगस्त को राम जन्मभूमि अयोध्या में शुभ मुहूर्त में शिलान्यास हो गया. यह संयोग ही है कि पिछले साल 5 अगस्त को भी शुभ मुहूर्त था क्योंकि इसी दिन कश्मीर में लॉकडाउन लगाकर लद्दाख को अलग किया गया था. वही लद्दाख, जो आजकल चीन की वजह से सुर्खियों में है और वही कश्मीर, जो पिछले 72 सालों से भारत का एक राज्य रहा था.

ऐसा ही एक और संयोग अचानक नजर में आया. अद्भुत, विचित्र और कमाल तथ्य है तो तथ्य की तरह देखें. बाकी, आप उससे जो कुछ और समझते हैं, वह आपके ऊपर हैं. उसका जिक्र कुछ नीचे क्योंकि यह एक बहुआयामी लेख है और इसमें कुछ बिखरी हुई घटनाओं का जिक्र है. उनमें अगर कोई संयोग और निकल आता है तो वो आपकी कल्पना शक्ति और अंदाजा भी हो सकता है और हो सकता है उसका वास्तविकता से कुछ लेना देना ना हो.

2020 पहला ऐसा साल है, जब मोदी जी किसी विदेश दौरे पर नहीं गये . 2014 से 2019 तक विदेशों की धुआंधार यात्राएं करने वाले मोदी जी ने आखिरी विदेश यात्रा 13 से 15 नवंबर, 2019 के दौरान की थी.

इसकी तारीख ध्यान देने लायक है क्योंकि गौरतलब बात यह है कि नेहरू जी से बेइंतहा ‘मोहब्बत’ करने वाले मोदी जी 14 नवंबर को कभी भी भारत में रहना पसंद नहीं करते क्योंकि यहां रहे तो पूर्व प्रधानमंत्री के बारे में कुछ तो बोलना ही पड़ेगा. भारत में नहीं होंगे तो नेहरु से जुड़े किसी समारोह में हिस्सा होने का खतरा भी नहीं रहेगा. उनकी यह आखिरी यात्रा ब्राजील की यात्रा थी.

जब यात्राओं का जिक्र हो ही रहा है तो उनके आखिरी छह विदेशी दौरों वाले देशों पर नजर डालें. प्रधानमंत्री ने 2019 में अगस्त में फ्रांस, सितंबर में रूस और अमेरिका, अक्टूबर अंत में सऊदी अरब, नवंबर की शुरुआत में थाईलैंड और सबसे आखिरी दौरा ब्राजील का किया. यह भी एक संयोग ही है कि भारत को मिलाकर, जो सात देश इस सूची में हैं, उनमें से चार देश कोरोना के मामले में भी पहले 4 स्थानों पर चल रहे हैं.

जी हां, सही पढ़ा आपने! रूस, अमेरिका और ब्राजील कोरोना पदक तालिका में विश्व गुरुवाई सूची में भारत के साथ पहले 4 स्थानों पर हैं.

एक और संयोग यह भी है कि ब्राजील के राष्ट्रपति 2020 की गणतंत्र दिवस परेड में आये थे और ट्रंप फरवरी में मोंटेरा समारोह के लिये. यह भी विधि का विधान है कि यही तीन देश कोरोना के मामले में सबसे ज्यादा प्रभावित हैं..

वैसे संयोगों का सिलसिला कुछ और भी लंबा है पर संयोगों की बात हो ही रही है तो सबका जिक्र जरूरी है. संयोग यह भी है कि कोरोना के आगमन और लॉकडाउन से पहले ही तीनों ही देशों में अर्थव्यवस्था की स्थिति पहले से ही खराब थी. संयोग यह भी है कि इन तीनों ही देशों में सोशल मीडिया का एक अलग ही रूप निकल कर आया है. संयोग यह भी है कि तीनों के ही समर्थक बहुत ज्यादा वोकल हैं और एक ढूंढो तो हजार मिलते हैं. एकदम टिड्डी, मधुमक्खी या तिलचट्टों के झुंड की तरह.

कुल जमा जो तथ्य सामने हैं, उसमें यह सवाल दिमाग में आना लाज़िमी है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी जी का मोहभंग हो गया है या उन्होंने विदेशी दौरों का मोह त्याग दिया है या वह वाकई में 18-18 घंटे काम करने के कारण समय नहीं निकाल पा रहे या देश में स्थितियां ऐसी हैं कि कहीं जा नहीं पा रहे या जब तक एकदम सुरक्षित विमान नहीं आयेंगे और उन्हीं में रहने का इंतजाम नहीं होगा, तब तक विदेश नहीं जायेंगे क्योंकि अब तो विदेशों की परिस्थितियां भी अलग नहीं हैं.

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यहां पर यह सवाल जरूर उठ सकता है कि अगर देश के हालात ठीक ना हों या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक महामारी की वजह से उथल-पुथल मची हुई हो तो किसी देश का प्रधानमंत्री विदेश दौरा कैसे कर सकता है. सवाल वाजिब है लेकिन उसका जवाब देने के लिए उनके अब तक के विदेशी दौरों के पैटर्न पर नजर डालने से स्थिति साफ हो जायेगी. अपने अब तक के सवा 6 साल के यानी 75 महीनों के कार्यकाल के दौरान 9 महीने का वर्तमान अंतराल उनका अब तक का सबसे बड़ा गैप रहा है. इसके अलावा सिर्फ एक बार 6 महीने का अंतराल रहा जबकि तीन महीने के अंतराल तीन बार हुए.

2014, 2015 और 2016 में जनवरी से मार्च के दौरान वे विदेशी दौरों पर नहीं गये. इसकी एक वजह शायद यह हो सकती है कि दूसरे देशों के अत्यधिक ठंड के मौसम में उन देशों की यात्रा करना उन्हें पसंद नहीं है. यह उनके 3 महीने के तीन अंतराल का लेखा जोखा है.

2020 में अब तक कोई विदेश यात्रा ना करने समेत 9 महीने के इस अंतराल के अलावा जो 6 महीने का एकमात्र बड़ा गैप रहा है, वह 2016, नवंबर से 2017, मई तक रहा है लेकिन इसमें दिलचस्प तथ्य यह है कि इसके बाद अगले 40 दिनों में उन्होंने जिन 11 देशों की यात्राएं की उनके नाम है श्रीलंका, जर्मनी, स्पेन, फ्रांस, रूस, कजाकिस्तान, पुर्तगाल, अमेरिका, नीदरलैंड, इजराइल और जर्मनी .

2017 और 2018 के अंत में अनिवार्य अंतरराष्ट्रीय बैठकों के चलते अगले साल जनवरी से मार्च के बीच में दौरा करने का उनका 2014 से 2016 का पैटर्न कायम न रह सका.

2019 नवंबर से अब तक के अंतराल पर वापस लौट आ जायें तो वर्तमान हालात के मद्देनजर स्वास्थ्य कारणों से विदेशों का दौरा करने का कोई औचित्य नहीं बनता . सच तो यह है कि ज्यादातर देशों के राष्ट्राध्यक्ष इस दौरान अपने देशों में ही मौजूद रहकर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिये जरूरी अंतरराष्ट्रीय बैठकें और संवाद कर रहे हैं.

यह भी नहीं भूलना चाहिये कि भारत में उनकी सुरक्षा चाकचौबंद है लेकिन विदेशी दौरों के दौरान कई बार यह मेजबान देशों के हवाले करनी पड़ती है. उसमें किसी भी तरह का ख़तरा पैदा हो सकता है. यहां तो सुरक्षा इंतजामों के कारण प्रोटॉन, फोटोन, इलेक्ट्रॉन, न्यूरॉन, अमीबा, एटम, कीटाणु, वायरस, बैक्टीरिया आदि समेत आम नागरिक भी हमेशा उन तक पहुँचने या अपनी बात पहुँचाने में बेबस ही रहे हैं पर इसके बावजूद भी अगर वायरस, टेफलोन कोटिंग की दो अंकों वाले सुरक्षा घेरे से निकल भी जायें तो गमछा बैरियर के आगे हार मान लेते हैं.

वैसे यह भी हो सकता है कि 2020 में विदेश यात्रा का कोई शुभ मुहूर्त अभी तक उपलब्ध ही ना हो. या यह भी हो सकता है कि आम पुरुषों और मानवों की तरह उन्हें भी कोरोना से डर लग रहा है. ठीक है कि आगे ‘’महा’’ लग गया पर मानव तो हैं ही और उन्हें भी कोरोना से डर लग रहा है….

…… क्योंकि अगर चीन के वर्तमान घटनाक्रम को ही ध्यान में रखा जाये तो व्लादिमीर पुतिन से मिलने उन्हें जाना चाहिए था, न कि रक्षा मंत्री को भेजना चाहिये था. हो सकता है कि इसमें उन्हें लाल बहादुर शास्त्री की रूस यात्रा का संयोग याद आ गया हो और उन्होनें देश में ही रहना ज़रूरी समझा हो. इसके अलावा चीन की 12 बार यात्रा कर चुके मोदी जी गलवान विवाद सुलझाने चीन भी जा सकते थे लेकिन वे नहीं गये जबकि 11 से 12 अक्टूबर, 2019 के बीच उन्होंने शी जिनपिंग की भारत में अच्छी-खासी खातिरदारी की थी. मेहमानबाजी का सुख लेने का अगला मौका तो उनका ही बनता है और खुद ही जाते तो शायद जिनपिंग वीरू और जय वाली दोस्ती निभा देते कि जा सिमरन, जा, जी ले अपनी जिंदगी (सॉरी फॉर द कॉकटेल).

अक्टूबर के शी जिनपिंग के दौरे से याद आया कि भले ही कोरोनावायरस का असली कहर चीन में भी जनवरी में ही दर्ज किया गया लेकिन पहला कंफर्म मामला 17 नवंबर को दर्ज किया गया. वैसे यहां यह याद दिलाना जरूरी है कि चीन में वुहान में ही 18 से 27 अक्टूबर, 2019 के दौरान विश्व मिलिट्री गेम्स का आयोजन किया गया था और सुगबुगाहट और शक की सुई भी उसी समय पर सबसे ज़्यादा टिकी रही है. अक्टूबर के दौरान वुहान में 10 दिन तक लगातार मोबाइल और इंटरनेट सेवाएं भी बाधित रही थी, जिसकी जानकारी कोई भी खोजबीन करने पर जुटा सकता है

अब कोरोना का जिक्र चला ही है तो आप लोगों की जानकारी में कुछ और इज़ाफ़ा किया जाये.

17 अप्रैल के ब्रिटेन के डेली मेल में खुलासा है कि 13 सितंबर से 7 दिसंबर के बीच कोरोनावायरस का आउटब्रेक शुरू हुआ. इस बात के भी सबूत मिल रहे हैं कि 6 अक्टूबर से 11 दिसंबर के बीच कई लोगों को कोरोना के महामारी बनने का आभास हो गया था लेकिन ये जानकारियां पब्लिक डोमेन में आने से रोकी गयीं .

कुल मिलाकर भारत के लिये यह बहुत अच्छा संयोग रहा कि अपुष्ट खबरों के हिसाब से भी, जब से कोरोनावायरस की कथा शुरू हुई, तब से मोदी जी विदेश दौरे नहीं कर रहे हैं. जाहिर है कि कर रहे होते तो उन्हें कोरोना से संक्रमित होने का खतरा हो सकता था लेकिन न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी. प्रधानमंत्री मोदी जी नवंबर से जब देश से बाहर गये ही नहीं बल्कि दिल्ली से भी यदा-कदा ही बाहर गये.. शायद मोंटेरा और लेह… तो वे पूरी तरह सुरक्षित ही रहे हैं.

हों भी क्यों ना! जब मौत से आम आदमी को डर लगता है तो उन्हें भी लगता ही होगा क्योंकि आये तो वे भी एक आम परिवार से ही हैं और सुरक्षा में ही सावधानी है. तो आम जनता से काफी पहले ही अगर वो सुरक्षित मोड में जा चुके थे…. तो यह भी संयोग और किस्मत की ही बात है.

(राजेश शर्मा प्रख्‍यात लेखक हैं।)

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