कोरोना से जिंदगी की रफ्तार हुई धीमी, तनाव व भूलने जैसी समस्या से जूझ रहे लोग
कोविड की पहली व दूसरी लहर में कोरोना की चपेट में आकर अस्पताल में लंबे समय तक भर्ती होकर इलाज कराने वाले कुछ लोगों के व्यवहार में एकदम से बदलाव आया है।
कोविड की पहली व दूसरी लहर में कोरोना की चपेट में आकर अस्पताल में लंबे समय तक भर्ती होकर इलाज कराने वाले कुछ लोगों के व्यवहार में एकदम से बदलाव आया है। हमेशा घर व बाहर अधिक सक्रिय रहने वाले, शांत व सरल स्वभाव के इस तरह के कुछ लोग कोरोना से उबरने के बाद अधिक तनाव व उग्र (गुस्सा) होने की समस्या से जूझ रहे हैं। कुछ लोगों को भूलने की समस्या का सामना करना पड़ रहा है तो कुछ लोग जिंदगी की रफ्तार धीमी पड़ने की शिकायत लेकर सामने आ रहे हैं।
किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, लखनऊ के मनोचिकित्सा विभाग के एडिशनल प्रोफ़ेसर डॉ. आदर्श त्रिपाठी का कहना है कि कोविड की चपेट में आने वाले कुछ लोग आठ-नौ माह से पोस्ट कोविड न्यूरोसाइक्रेटिक सिक्वेल की समस्या से जूझ रहे हैं । इसके दो प्रमुख कारण हो सकते हैं, पहला – संक्रमण के दौरान मस्तिष्क में सूजन या हाइपोक्सिया के कारण हो सकता है, जो कि अधिक उम्र के लोगों या गंभीर बीमारी के कारण आईसीयू में भर्ती होने वालों में देखी जा सकती है । इस कारण से भ्रम व भूलने जैसी समस्या पैदा होती है । दूसरा-कोविड के दौरान अधिक तनावपूर्ण स्थिति का सामना करना भी एक बड़ा कारण हो सकता है । इस कारण भी लोग अवसाद, असुरक्षा, अनिद्रा, शरीर में दर्द, गैस व अपच जैसी समस्या का सामना कर रहे हैं ।
मानसिक चिकित्सा विभाग में इस तरह के कुछ मामले रोजाना आ रहे हैं और लोग बता रहे हैं कि कोरोना से उबरने के बाद से उनका व्यवहार एकदम से बदल गया है । अब उन्हें छोटी-छोटी बात पर गुस्सा आ जाता है, कुछ देर पहले की भी बात याद नहीं रहती है, पहले जिस तेजी के साथ वह हर काम को निपटा लेते थे वह फुर्ती अब नहीं रही । डॉ. त्रिपाठी का कहना है कि इसी तरह की समस्या से कुछ ऐसे भी लोग जूझ रहे हैं जो खुद तो कोरोना की चपेट में नहीं आए किन्तु उनके घर-परिवार के लोग कोरोना की चपेट आकर लंबे समय तक अस्पताल में इलाज कराते रहे । उन्होंने एक केस का उदाहरण देते हुए बताया कि उनके सामने एक ऐसा भी केस आया, जिन्होंने परिवार व मित्र मंडली के दो सदस्यों को कोविड के दौरान खो दिया था और इसी कारण वह कुछ समय से मानसिक अस्वस्थता के दौर से गुजर रहे थे । उन्हें लगता था कि जिंदगी में कुछ नहीं बचा है, हमेशा डर और भय बना रहता था ।
किसी से भी बात करना वह मुनासिब नहीं समझते थे । ऐसे लोगों को यही सलाह है कि अब जो कुछ गुजर चुका है उसमें तो कोई सुधार नहीं किया जा सकता । इसलिए हर वक्त उस गुजरे वक्त को याद करके अपने जीवन को दुष्कर मत बनाइये । कुछ ऐसी तरकीब अपनाएं और जीवन को फिर से व्यस्त बनाएं, कुछ यही सोचकर कि आपने जिन लोगों को खोया है उनके अधूरे रह गए सपनों और संकल्पों को आपको पूरा करना है । डॉ. त्रिपाठी का कहना है कि कोविड की चपेट में आने वाले कुछ बुजुर्गों में डिमेंशिया (याददाश्त की कमी) की समस्या भी देखी जा रही है ।
तनाव से बचने के लिए पर्याप्त नींद लें :
डॉ. त्रिपाठी का कहना है कि चिंता के चलते पूरी नींद न लेना अवसाद की ओर ले जाता है । मधुमेह, उच्च रक्तचाप, सिर और शरीर में दर्द रहना, थकान, याददाश्त में कमी आना, चिडचिडापन, क्रोध की अधिकता, हार्मोन का असंतुलन, मोटापा, मानसिक तनाव जैसी कई समस्याएं अनिद्रा के कारण भी जन्म लेती हैं । हर व्यक्ति को 7-8 घंटे की नींद लेनी चाहिए । सेहत के लिए अनमोल नींद को जरूर पूरी करें जो कि ताजगी और फुर्ती देने का काम करेगी ।
योग एवं ध्यान करें, संतुलित आहार लें :
ध्यान, योग और प्राणायाम के जरिये एकाग्रता ला सकते हैं, नकारात्मक विचारों से मुक्ति दिलाने में भी यह बहुत ही कारगर हैं । रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी इसके जरिये बढ़ाया जा सकता है । खानपान का असर शरीर ही नहीं बल्कि मन पर भी पड़ता है । संतुलित आहार के जरिये भी मन को प्रसन्न रख सकते हैं। भारतीय थाली (दाल, चावल, रोटी, सब्जी, सलाद, दही) संतुलित आहार का सबसे अच्छा नमूना है । इसमें पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन्स, मिनरल्स मिलते हैं ।
अपनों के संपर्क में रहें और भावनाओं को साझा करें :
किसी भी बात को मन में लेकर लंबे समय तक उदास न रहें, उसे अपनों से साझा करें
एकाकीपन से अच्छा है कि परिवार या दोस्तों के साथ बैठें और खुलकर बात करें
मनपसंद के कुछ काम करें जैसे- फिल्म देखना, पुस्तक पढ़ना, बागवानी करना आदि