दो हजार बुद्धिजीवियों ने सरकार को लिखा प्रोफेसर हैनी बाबू को रिहा करो

पंकज प्रसून

दिल्ली विश्वविद्यालय के अंग्रेजी के प्रोफेसर हैनी बाबू को 28 जुलाई को एन आई ए ने मुंबई में गिरफ्तार कर लिया.54 वर्षीय हैनी बाबू का पूरा नाम हैनी बाबू मुसलियारवेटिल थारायिल है.उनकी पत्नी का नाम जेनी रोवेना है जो दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतर्गत मिरांडा हाऊस में फैकल्टी मेम्बर हैं .

कोई दो हजार ऐक्टिविस्टों और स्कालरों ने हैनी बाबू को रिहा करने के लिये सरकार से गुजारिश की है . उनमें बूकर पुरस्कार विजेता अरुंधति राय भी शामिल हैं . दिल्ली विश्वविद्यालय और दिल्ली स्थित अंबेडकर विश्वविद्यालय के शोधार्थी छात्रों ने भी उनकी रिहाई के लिये सरकार से अपील की है .

दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष राजीव रे ने कहा है कि हैनी बाबू एक जबर्दस्त शिक्षक और शोषित तथा वंचित वर्ग की आवाज हैं . उन्हें इस तरह से तंग नहीं किया जाना चाहिये .

हैनी बाबू को इस महामारी के दौरान ही 23 जून को मुंबई बुलाया गया और उन्हें वहीं गिरफ्तार कर लिया गया.एन आई ए के अनुसार उन्होंने पहले से गिरफ्तार लोगों के साथ मिलकर एलगार परिषद और भीमा कोरेगांव हिंसा को अंजाम देने में भूमिका निभायी थी .
एन आई ए के अनुसार उनके लैपटॉप में एक फोल्डर मिला है जिसमें आपत्तिजनक सामग्री सुरक्षित मिली थी.उसमें ऐसे पत्र भी थे जिनमें उन्हें नक्सली कहा गया था. सोचने की बात यह है कि क्या कोई व्यक्ति ऐसे पत्रों को संजो कर रख सकता है ?

हैनी बाबू एक लोकप्रिय शिक्षक और अकादमिक विद्वान हैं . वे जाति प्रथा का सक्रिय रूप से विरोध करते हैं और माओवादियों से संपर्क रखने के आरोप में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जी एन साईं बाबा की सन् 2014 में हुई गिरफ्तारी और तीन साल बाद हुई आजीवन कारावास की सज़ा के विरोध में बनी समिति के मुख्य सदस्य हैं .साईं बाबा 90 प्रतिशत विकलांग हैं और वील चेयर पर ही रहते हैं . फिर भी वे जेल में बंद कैदी हैं और उन्हें जमानत भी नहीं मिल रही है .साईं बाबा आंध्र प्रदेश के हैं और हैनी बाबू केरल के हैं.

हैनी बाबू को गिरफ्तार कर ले जाती पुलिस

पिछले वर्ष 10 सितंबर को पुणे पुलिस ने प्रोफेसर हैनी बाबू के नोयडा सेक्टर 78 स्थित निवास स्थान पर अवैध रूप से छापा मार कर उनका लैपटॉप, मोबाइल फोन, जी एन साईं बाबा बचाव समिति की दो पुस्तिकाएं और दो पुस्तकें जब्त कर ली.जिनके नाम थे एन वेणुगोपाल लिखित अंडरस्टैंडिंग माओइस्ट और यलावरती नवीन बाबू लिखित फ्राम वर्ण टु जाति — पोलिटिकल इकोनॉमी औफ कास्ट इन इंडियन सोशल फौरमेशन .ये दोनों पुस्तकें बाजार में आसानी से उपलब्ध हैं . ये सरकार द्वारा प्रतिबंधित भी नहीं है .छह घंटे तक चली इस छापामारी के लिये पुणे पुलिस के पास वारंट भी नहीं था.ऐसी ही छापामारी आदिवासी एक्टिविस्ट स्टैन स्वामी और हैदराबाद में विश्वविद्यालय परिसर स्थित अंग्रेजी और विदेशी भाषाओं के विद्वान के. सत्यनारायण के निवास स्थानों पर भी हुई .

इस महामारी की वजह से जारी लौकडाउन के दौरान जिन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया है उनके नाम हैं आनंद तेलतुंबडे, गौतम नवलखा,देवांगना कालिता , नताशा नरवल, गुलफिशा फातिमा और शरजील उस्मानी .

एन आई ए के अनुसार हैनी बाबू को भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ़्तार किया गया है, जिसमें उन्हें जोड़ कर अभी तक 12 बुद्धिजीवी गिरफ्तार किये जा चुके हैं.जिनमे आधे से अधिक बुद्धिजीवी पिछड़ी या दलित जातियों से आते हैं.

गिरफ़्तार लोगों के नाम हैं रोना विल्सन, शोमा सेन, सुधीर धावले, सुरेन्द्र गाडलिंग , महेश राउत, पी. वरवर राव,सुधा भारद्वाज, वर्नोन गोंसालविस, गौतम नवलखा, आनंद तेलतुंबडे, और अरुण फेरेरा.

उनमें से कई लोगों की तरह हैनी बाबू का एलगार परिषद मामले से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं था . न तो वे आयोजकों में से थे,न उन्हें निमंत्रित किया गया था,न वे किसी तरह से भी उस आयोजन से जुड़े हुए थे. फिर भी उन्हेंं उसी मामले में गिरफ़्तार किया गया.

क्या है भीमा कोरेगांव मामला

भीमा कोरेगांव में एक जनवरी1818 को भीमा नदी के तट पर अंग्रेज़ों की छोटी सी सेना ने 28000 सैनिकों वाली पेशवा सेना को सिर्फ बारह घंटे की लड़ाई में पराजित किया था . अंग्रेजों की सेना में अधिकतर महार जाति के लोग थे, जो दलित जाति है.पेशवाओं की ओर से ग्वालियर के सिंधिया, इंदौर के होलकर, बड़ौदा के गायकवाड़ और नागपुर के भोंसले की संयुक्त सेना थी.
उस विजय को दलित लोग अपने आत्म सम्मान विजय दिवस के तौर पर हर साल जोर-शोर से शौर्य दिवस के रूप में मनाते हैं.

कहा जाता है कि पेशवाओं के अत्याचारों से तंग आकर दलितों ने अंग्रेजों का साथ दिया था.

एक जनवरी 2018 को वहां स्थापित विजय स्तम्भ के पास पांच लाख की संख्या में दलित इकठ्ठा होकर शौर्य दिवस मना रहे थे.तभी किसी बात पर दक्षिणी पंथी उपद्रवी तत्वों ने जानबूझकर छोटा-सा झगड़ा खड़ा कर दिया, जो दंगे में बदल कर जंगल के आग की तरह महाराष्ट्र के सभी महत्वपूर्ण शहरों तक फैल गया..

पुलिस ने अपनी जांच में बताया कि उस दंगे और हिंसा के पीछे माओवादियों का हाथ था.

पुलिस के अनुसार एलगार परिषद के मुख्य आयोजक सुधीर धावले का माओवादियों से संपर्क था.दूसरे अभियुक्त रोना विल्सन के दिल्ली आवास पर छापा मारकर पुलिस ने आपत्ति जनक हार्ड डिस्क और पेन ड्राइव बरामद किये .

हैनी बाबू की पत्नी जेनी रोवेना के अनुसार उन्हें शाम पांच बजे किसी पुलिस अधिकारी ने फ़ोन किया और बताया कि हैनी बाबू को गिरफ्तार किया गया है. जब जेनी ने उससे पूछा कि क्या वह अपने पति से बात कर सकती हैं तो उन्हें मना कर दिया गया.

हैनी बाबू ने बराबर कहा है कि उनका माओवादियों से कोई संबंध या संपर्क नहीं है . न एलगार परिषद के आयोजन से उनका संबंध है एलगार का मतलब होता है हमला या छापा मारना .

पंकज प्रसून

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