“छोटे गुरु ने दुनिया को दिया योग का संदेश, नागकूप पर महर्षि पतंजलि ने रचा योगसूत्र”
नाग पंचमी विशेष
काशी के छोटे गुरु ने ही दुनिया को योग का संदेश दिया था। योग के आठ अंगों को काशी के जैतपुरा मोहल्ले में ही एक सूत्र में पिरोया गया था। महर्षि पाणिनी के शिष्य और साक्षात शेषनाग के अवतार माने जाने वाले महर्षि पतंजलि ने काशी में ही योगसूत्र की रचना की थी। इससे पहले योग का ज्ञान श्रुतियों और स्मृतियों में बिखरा हुआ था। योगसूत्र में महर्षि पतंजलि ने मन को एकाग्र करने और ईश्वर में लीन होने का विधान बताया है।
काशी विद्वत परिषद के महामंत्री डॉ रामनारायण द्विवेदी ने बताया कि काशी में महर्षि पतंजलि को छोटे गुरु के नाम से पुकारा जाता है। काशी में सावन माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि यानी नागपंचमी के दिन पूजा के लिए नागों का चित्र बांटने के दौरान छोटे गुरु का, बड़े गुरु का नाग लो भाई की गूंज सुनाई देती है। इसमें बड़े गुरु महर्षि पाणिनी हैं वहीं छोटे गुरु के रूप में महर्षि पतंजलि को पुकारा जाता है।
मान्यता है कि महर्षि पतंजलि साक्षात भगवान शेषनाग के अवतार हैं। नागकूप पर ही नागपंचमी के दिन विद्वानों के बीच शास्त्रार्थ की परंपरा का निर्वहन किया जाता है। महर्षि पतंजलि एक महान चिकित्सक भी थे, इन्हें ही दुनिया की पहली डॉक्टरी की किताब चरक संहिता का प्रणेता भी माना जाता है।
इन्हें रसायन विद्या का विशिष्ट आचार्य भी माना जाता है। अभ्रक, धातुयोग और लौहशास्त्र महर्षि पतंजलि की ही देन है। इन्होंने महर्षि पाणिनी के अष्टाध्यायी का महाभाष्य भी लिखा है। इसके साथ ही आयुर्वेद के कई ग्रंथों की रचना का श्रेय भी महर्षि पतंजलि को ही जाता है।
मध्यकाल में खो गई थी विद्या :
महर्षि पतंजलि द्वारा रचित योगसूत्र की लोकप्रियता का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि मध्यकाल में ही इसका तकरीबन 40 भारतीय भाषाओं सहित जावा तथा अरबी भाषा में भी अनुवाद किया गया था। यह महान ग्रंथ 12वीं से 19वीं शताब्दी तक मुख्यधारा से गायब हो चुका था जिसे 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश काल के दौरान दोबारा ढूंढा गया और धीरे-धीरे पूरी दुनिया में इसे स्वीकार किया जाने लगा। आज आलम ये है कि पूरी दुनिया रोगों से मुक्ति के लिये अगर किसी एक विद्या पर पूरी तरह आशा भरी निगाहों से देख रही है तो वह योगसूत्र है जिसे तकरीबन दो हजार साल पहले महर्षि पतंजलि ने लिखा था।