जब शरणार्थी शिविर में एक महिला ने पंडित नेहरू का आस्तीन खींचा!

चंचल कुमार, पूर्व अध्यक्ष, छात्र संघ बीएचयू

चंचल कुमार
चंचल कुमार

जब शरणार्थी शिविर में एक महिला ने प्रधानमंत्री नेहरू का आस्तीन खींचकर पूछा,“ वै पंडित नेहरु ! तेरी आज़ादी दा  क्या मिल्या ? “

 मुल्क आज़ाद हो चुका था , पर दो खानों में बँट कर । अफ़रा तफ़री दोनो तरफ़ है सबसे बड़ी समस्या – बड़ी संख्या में लोंगों की  एक ज़मीन से उखड़ कर, दूसरे पर जमना । भारत के  पहले प्रधानमंत्री है पंडित जवाहर लाल नेहरु । अन्दाज़ लगाइए उस सरकार पर कितना काम का बोझ रहा होगा , विशेषकर प्रधान मंत्री पर ? लेकिन जितना भी वक्त मिलता वे शरणार्थियों से ज़रूर मिलते और उन्हें सहयोग करते । ऐसे ही  एक शिविर में जब पंडित नेहरु लोंगो को कम्बल दे  रहे थे तो एक सम्भ्रांत महिला ने पंडित नेहरु का आस्तीन खींचा और ग़ुस्से में बोली – 

    “ वै पंडित नेहरु ! तेरी आज़ादी दा क्या मिल्या ? “ 

  – एक प्राइम मिनिस्टर का आस्तीन खिंच कर सवाल कर  रही हो  माँ , यह कम है ? ये जो तेरे नेफे में सोने की ज़ंजीर है न , यह सुरक्षित  रहेगी “ । झुर्री पड़े चेहरे ने अपने प्राइम मिनिस्टर  को गौर से देखा और रोते हुए  लिपट गयी । एक हुकूमत अपने अवाम के सामने झुक गयी , विश्वास और भरोसा  दोनो एक दूसरे से  लिपट कर एक चमक पैदा की और मुल्क आगे बढ़ चला । पंडित नेहरु को विश्वास था -ये हाथ जो आस्तीन की तरफ़ बढ़े हैं इसमें केवल तकलीफ़  ही नही है , इसमें ममता और करुणा भी है । एक नेतृत्व को अपने  अंदर नेतृत्व कीक्षमता  को बरकरार रखना है तो अपने अवाम पर , करुणा और ममता की हद तक का विश्वास रखना पड़ेगा । अवाम तो निहायत ही सरल और सहज होती है , वह  बहुत जल्द अपने नेतृत्व पर भरोसा कर लेती है । 

पंडित नेहरू पदयात्रा
पंडित नेहरू पदयात्रा

     यह वाक़या पढ़ा हुआ है । पंडित नेहरु का अपने अवाम पर इतना यक़ीन शायद हाई किसी अन्य नेता में  रहा हो । और इसका श्रेय बापू को जाता है । चीखती चिल्लाती भीड़ में अकेले कूद जाना , थप्पड़ मार देना उनके लिए मामूली बात थी , क्या मजाल की कोई चूँ तक कर दे बल्कि सालों साल थप्पड़ खानेवाला पंडित नेहरु ने मिले थप्पड़ का गुणगान करता । जनता और नेता के बीच अगर यह विश्वास और भरोसा न हो तोमेहरबानी  करके सियासत से हट जाइए और किसी चौराहे पर चड्ढी और बनियान बेचो – दो के साथ दो फ़्री । 

       यह एक वाक़या याद दिला कर बता रहा हूँ – हम यहाँ से चले हैं और पहुँचे कहाँ तक हैं वह सुन लीजिए । 

     एक दिन हमे एक महिला मित्र ने फ़ोन किया – आज हम बहुत खुश हैं , मौसम बहुत ख़ुशगवार है जा रही हूँ , सपना ख़रीदने ।  देखते हैं क्या क्या मिलता है ? 

      – किस बाज़ार में ? 

       – बाज़ार में नही , मैदान में ! 

        – कौन कौन हैं ? 

        – दोनो 

         – मत जाओ , अंदर नही जा पाओगी 

         – क्यों ? 

          – कोई भी ऐसी चीज़ नही ले जा सकोगी जिसका रंग काला हो ! 

           – हम बेवक़ूफ़ हैं का ? काला नही है बदल दिया है 

          –  बहुत बेशर्म हो यार ! हम उसकी बात नही कर रहे 

          – तब , किसकी बात कर रहे हो ? 

           – अपनी आँख देखा है ,  कमबख़्त बे काजल के ही कजरारी हैं ,  भुजइन के हाँड़ी माफ़िक़ ! 

         यहाँ तक आ  पहुँचे हैं 

वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

     लेकिन इन दोनो के बीच अनगिनत कड़ियाँ हैं – एक एक कर जारी ।

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