जानें खेत की पगडंडियो से नंगे पांव राष्ट्रपति भवन पहुंच पद्मश्री सम्मान लेने वाली तुलसी गौड़ा को…

हाड़ मांस का जर्जर शरीर, तन पर पारंपरिक धोती, नंगे पांव लेकिन चेहरे पर गजब का तेज, यही पहचान है पद्मश्री से सम्मानित तुलसी गौड़ा की

पद्मश्री तुलसी गौड़ा की सादगी भरी तस्वीर जब सोशल मीडिया पर सामने आई तो लोग मंत्र मुग्ध हो गए। बदन पर पारंपरिक सूती धोती डाले नंगे पांव जब वह राष्ट्रपति भवन में पद्म सम्मान लेने पहुंचीं, तो हर एक नजर उन​ पर टिकी रह गई। चारों ओर बस उनकी मेहनत और समर्पण की चर्चाएं ही हो रही थीं।

मीडिया स्वराज डेस्क

हाड़ मांस का जर्जर सा शरीर
शरीर पर पारंपरिक धोती
हाथ में पद्मश्री और
चेहरे पर गजब की खुद्दारी!!

इस तस्वीर में नजर आ रहीं यह चलती फिरती जंगलों की इनसाइक्लोपीडिया कर्नाटक की 77 वर्षीय पर्यावरणविद् तुलसी गौड़ा हैं, जिन्हें 30 हजार से ज्यादा पेड़ लगाने और पिछले छह दशकों से पर्यावरण संरक्षण गतिविधियों में शामिल रहने के लिये इस साल पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया है। तुलसी का खेत की पगडंडी से राष्ट्रपति भवन की लाल कालीन तक नंगे कदमों से पहुंचना, वाकई सुखद है।

कर्नाटक की पर्यावरणविद् तुलसी गौड़ा को 30,000 से अधिक पौधे लगाने और पिछले छह दशकों से पर्यावरण संरक्षण गतिविधियों में शामिल रहने के लिये पद्मश्री से सम्मानित किया गया। जब वह सम्मान लेने के लिए पहुंची तो उनके बदन पर पारंपरिक धोती थी और पैरों के नीचे चप्पल तक नहीं थी, पीएम मोदी और अमित शाह से उनका सामना हुआ तो दोनों दिग्गज नेताओं ने उनकी उपलब्धि का सम्मान करते हुए उन्हें नमस्कार किया। इस तस्वीर को वहां मौजूद प्रेसकर्मियों ने अपने कैमरे में कैद कर लिया। अब यह सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बनी हुई है।

कर्नाटक में हलक्की जनजाति से नाता रखने वाली तुलसी गौड़ा का जन्म एक बेहद गरीब परिवार में हुआ था। स्थिति इतनी चिंताजनक थी कि उन्होंने कभी औपचारिक शिक्षा तक ग्रहण नहीं की। प्रकृति के प्रति प्रेम के चलते वह अपना ज्यादातर समय जंगलों में बितातीं। धीरे-धीरे यह जंगल भी उन्हें पहचानने लगे। पौधों और जड़ी-बुटियों के ज्ञान के कारण आज दुनिया उन्हें ‘जंगलों की इनसाइक्लोपीडिया’ के रूप में जानती है।

जीवन के सात से ज्यादा दशक देखने के बाद तुलसी गौड़ा पर्यावरण संरक्षण के महत्व को बढ़ावा देने के लिए पौधों का पोषण करना और युवा पीढ़ी के साथ अपने ज्ञान को साझा करना जारी रखती हैं। तुलसी गौड़ा एक अस्थायी स्वयंसेवक के रूप में वन विभाग में भी शामिल हुईं, बाद में उन्हें विभाग में स्थायी नौकरी की पेशकश की गई।

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