उत्तरकाशी : अब चार महीने रौद्र रूप में निर्मल बहेंगी गंगा
लोकेंद्र सिंह बिष्ट, उत्तरकाशी
गंगा अपने मायके से विस्तार लेने लगी है। तापमान बढ़ने के साथ ही गंगा का स्रोत व उद्गम गंगोत्री ग्लेशियर तो पिघल ही रहा है, हिमालय क्षेत्र में विद्यमान दूसरे ग्लेशियर व हिम भूखंड भी पिघल रहे हैं। गंगा व उसकी सहायक नदियों में हिमालय से फिसल कर आये स्नो एवलांच यानि ग्लेशियर भी तेजी के साथ पिघल रहे हैं। जिसके चलते गंगा का जलस्तर तेज़ी से बढ़ रहा है। स्थानीय मानसून भी सक्रिय है और मानसून भी आने वाला है।
इसी के साथ गंगा आने वाले 4 महीनों तक अपने रौद्र रूप में पूरे विस्तार से बहेंगी। गंगा भागीरथी, यमुना, अलकनंदा , मंदाकिनी सहित सैकड़ों छोटी बड़ी नदियों के प्रवाह पथ पर हो रही जोरदार बारिश और हिमालय की पिघल रही बर्फ के कारण गंगा के मायके उत्तरकाशी के साथ-साथ अपने गंतव्य तक गंगा का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है। पिछले दो दिनों में जलस्तर में 20 सेंटीमीटर की वृद्धि दर्ज की गई है। पहाड़ों में गोमुख से लेकर ऋषिकेश तक अपने पहाड़ी सफर के बाद मैदानी क्षेत्रों हरिद्वार व उससे आगे भी गंगा के जलस्तर में लगातार भारी वृद्धि हो रही है।
इधर प्रयागराज व काशी में गंगा के जलस्तर में 16 सेंटीमीटर की वृद्धि दर्ज की गई है। आपको बताते चलें कि इस अक्टूबर से लेकर मार्च तक हिमालय क्षेत्र और पहाड़ों में लगभग 35 बार जमकर बर्फवारी हुई थी। इसी के चलते तापमान बढ़ने के साथ ही गोमुख में गंगा का जलस्तर मई से ही बढ़ना शुरू हो गया था।
गंगा आजकल अपने सम्पूर्ण विस्तार में बह रही है, यानी नवंबर से लेकर मई तक गंगा के जलस्तर में भारी कमी हो जाती है। जिसके चलते इसके दोनों किनारे खाली हो जाते हैं। इन्हीं खाली जगहों पर कूड़े कचरे का साम्राज्य हो जाता है। गंगा में जलस्तर बढ़ने के साथ गंगा इस तमाम गंदगी को साथ बहा ले जाती है। गंगा माँ के किनारों पर स्वच्छता का अलख जगाने वाले लोकेन्द्र सिंह बिष्ट गंगा में बढ़ रहे प्रदूषण व कूड़े कचरे को लेकर समय-समय पर आवाज उठाते हैं। लोगों को जागरूक करना व गंगा स्वच्छता के कार्य के साथ जिम्मेदार सरकारी विभागों का ध्यान भी आकर्षित करते हैं। इस घटना को गंगा विचार मंच के उत्तराखंड के संयोजक लोकेन्द्र सिंह बिष्ट ने कविता के माध्यम से बयाँ किया है।
त्रिपथगा नामक शीर्षक से यह कविता कुछ इस प्रकार से गंगा की पीड़ा को बयां करती है-
त्रिपथगा
अब अपने दोनों किनारों को छूकर,,
बहने लगी है गंगा।।
हिमालय की बर्फ और मिट्टी को,,
साथ बहाकर चली है गंगा।।
अब हिमालय के हिम व मिट्टी से,,
नई सुगंध से महक रही है गंगा।।
अब अपने रंग रूप को,,
नए श्रृंगार में बहने लगी है गंगा।।
तापमान बढ़ने के साथ ही,,
तेरा आकार भी बढ़ने लगा है गंगा।।
खुद में समाई गंदगी को,,
ढोकर ले चली है गंगा।।
आठ महीनों के इंसान के,,
दुष्कर्मों को बहा ले गई गंगा।।
तेरे किनारों की जिस जमीं पर,,
वर्षभर हम गंदगी फैलाते थे गंगा।।
उस खाली जमीं को अब,,
तुमने वापिस ले लिया है गंगा।।
आज तक तेरे किनारों पर,,
फैली गंदगी तो दिख जाती थी गंगा।
जो गंदगी हमारे गुनाहों का,,
जीता जागता सबूत थे गंगा।।
अब भी तेरे किनारों पर,,
गंदगी फेंकी जाएगी गंगा।।
ये अलग बात है कि गुनाहों का,,
सबूत तू साथ बहा ले जाएगी गंगा।।
तेरे को रौंदने वाली दानव मशीनें भी,,
किनारों पर शांत हो चली हैं गंगा।।
तेरे किनारे अवैध क्रेशर प्लांटों को,,
हटाने की हिम्मत कौन जुटाएगा गंगा।।
अब चार महीनों विस्तार में,,
यूं ही निर्मल बहेंगी गंगा।।