दिल्ही आने के पैसे नही, पद्मश्री डाक से भिजवा दो

हलधर नाग – जिसके नाम के आगे कभी श्री नही लगाया गया, 3 जोड़ी कपड़े, एक टूटी रबड़ की चप्पल, एक बिन कमानी का चश्मा और जमा पूंजी 732 रुपया का मालिक आज पद्मश्री से उद्घोषित होता है ।

तो वह बोलता है – साहिब! दिल्ही आने के पैसे नही, पद्मश्री डाक से भिजवा दो।

ये हैं ओड़िशा के हलधर नाग । जो कोसली भाषा के प्रसिद्ध कवि हैं ।

ख़ास बात यह है कि उन्होंने जो भी कविताएं और 20 महाकाव्य अभी तक लिखे हैं, वे उन्हें ज़ुबानी याद हैं ।

अब संभलपुर विश्वविद्यालय में उनके लेखन के एक संकलन ‘हलधर ग्रन्थावली-2’ को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाएगा ।

सादा लिबास, सफेद धोती, गमछा और बनियान पहने, नाग नंगे पैर ही रहते हैं ।

ऐसे हीरे को चैनलवालों ने नहीं, मोदी सरकार ने पद्मश्री के लिए खोज के निकाला ।

मेहनतकश कवि

उड़‍िया लोक-कवि हलधर नाग के बारे में जब आप जानेंगे तो प्रेरणा से ओतप्रोत हो जायेंगे ।

श्री हलधर एक गरीब दलित परिवार से आते हैं ।

10 साल की आयु में मां बाप के देहांत के बाद उन्‍होंने तीसरी कक्षा में ही पढ़ाई छोड़ दी थी ।

अनाथ की जिंदगी जीते हुये ढाबा में जूठे बर्तन साफ कर कई साल गुजारे ।

बाद में एक स्कूल में रसोई की देखरेख का काम मिला ।

कुछ वर्षों बाद बैंक से 1000 रु कर्ज लेकर पेन-पेंसिल आदि की छोटी सी दुकान उसी स्कूल के सामने खोल ली जिसमें वे छुट्टी के समय पार्ट टाईम बैठ जाते थे ।

यह तो थी उनकी अर्थव्यवस्था ।

अब आते हैं उनकी साहित्यिक विशेषता पर ।

हलधर ने 1995 के आसपास स्थानीय उडिया भाषा में ”राम-शबरी ” जैसे कुछ धार्मिक प्रसंगों पर लिख लिख कर लोगों को सुनाना शुरू किया ।

भावनाओं से पूर्ण कवितायें लिख जबरन लोगों के बीच प्रस्तुत करते करते वो इतने लोकप्रिय हो गये कि इस साल राष्ट्रपति ने उन्हें साहित्य के लिये पद्मश्री प्रदान किया ।

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