कुर्सी जाने की आशंका से नीतीश असंतुलित

कुर्सी
शिवानंद तिवारी, राजनीतिक टिप्पणीकार

कुर्सी जाने की आशंका ने नीतीश जी को असंतुलित कर दिया है।

तेघरा की चुनावी सभा में उनका एक अलग रूप देखने को मिला है. जिस तरह की भाषा का वे उस सभा में इस्तेमाल कर रहे थे वैसी भाषा बिहार या देश ने उनके मुंह से इसके पहले कभी नहीं सुना था।

सबसे ज्यादा चिंता प्रकट करने वाली बात यह है कि वे अपने समर्थकों को ललकार रहे थे। कह रहे थे कि इनको सबक सिखा देना है।

इसका क्या नतीजा निकल सकता है इसका उनको एहसास था या नहीं!
शास्त्रों में कहा गया है की सत्ता का नशा अफीम के नशे से भी ज्यादा नशीला होता है।

जिस तरह अफीम के नशे के आदी व्यक्ति को जब अफीम नहीं मिलता है तो वह बिल्कुल छटपटाने लगता है। उस हालत में वह कुछ भी कर सकता है।

पंद्रह वर्षों से नीतीश जी लगातार सत्ता में हैं. उनको भान हो गया है की उनकी सत्ता अब जाने वाली है। इस आशंका ने उनको असंतुलित कर दिया है। अपने समर्थकों में वे उन्माद पैदा कर रहे थे।

इनके मुकाबले तेजस्वी अभी तक के अपने चुनावी अभियान में कभी अशालीन नहीं दिखाई दिए, अपने एजेंडा से बाहर नहीं गए।

नीतीश जी तेघड़ा की सभा में जब तेजस्वी के ‘बाप’ का जिक्र कर रहे थे तो शायद वे विस्मरण का शिकार हो गए थे।

2015 में अपनी सत्ता बचाने के लिए तेजस्वी के बाप के ही शरण में हो गए थे। उसके बाद की कहानी सबको मालूम है।

नीतीश जी को नहीं भूलना चाहिए कि उनका असंतुलन उनको सत्ता से बेदखल करने में ही और ज्यादा सहायक होगा।

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