बिहारी सियासत की बाईं करवट के मायने 

चंद्र प्रकाश झा  

Chandra Prakash Jha
चंद्र प्रकाश झा, वरिष्ठ पत्रकार

बिहारी सियासत ने फिर करवट ली है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (जनता दल यूनाइटेड यानि जेडीयू ) भाजपा को तलाक देकर राष्ट्रीय जनता दल यानि आरजेडी,  कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियों के समर्थन से 8 वीं बार अपनी सरकार बनाने में कामयाब हो गए हैं । पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी, हिंदुस्तान अवामी मोर्चा यानि हम समेत सात पार्टियां नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले महागठबंधन में साथ आ गई है। नई सरकार में तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री बने है। अन्य मंत्रियों कुछ दिनों बाद शपथ दिलाई जाएगी।

फिर मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे

शपथ लेने के बाद पत्रकारों से बातचीत में नीतीश कुमार ने कहा कि वह अब और फिर मुख्यमंत्री  नहीं बनेंगे। उन्होंने विपक्षी गठबंधन की तरफ से प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनने की संभावना से इनकार कर कहा कि सभी विपक्षी दलों को 2024 के लोक सभा चुनाव की तैयारी के लिए एकजुट हो जाना चाहिए। 

नीतीश कुमार ने 2020 के पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन कर सरकार बनाई थी। लेकिन पिछले कुछ दिनों से उन्होंने भाजपा की अगुवाई वाले नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस यानि एनडीए  सरकार और उसके सुप्रीमो प्रधानमंत्री मोदी  के प्रति बगावती तेवर अपना लिया था। 

जेडीयू के अध्यक्ष ललन सिंह ने उनकी पार्टी के खिलाफ भाजपा द्वारा साजिश रचने का खुला आरोप लगाया था। उनके मुताबिक भाजपा ने पिछले चुनाव में साजिश के तहत दिवंगत केन्द्रीय मंत्री रामबिलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी यानि एलजेपी को सहारा दिया जिसके कारण जेडीयू के निर्वाचित विधायकों की संख्या घटकर 43 हो गई। दूसरी और भाजपा के विधायकों की संख्या जेडीयू से कहीं ज्यादा हो गई। चिराग पासवान एनडीए में बरकरार हैं और जमुई से लोकसभा सदस्य हैं। 

ललन सिंह ने जेडीयू के बिहार से राज्यसभा सदस्य और मोदी सरकार में मंत्री आरसीपी सिंह का नाम लिए बगैर संकेत दिए थे कि भाजपा ने अपनी एक साजिश के तहत ही नीतीश कुमार से सलाह मशविरा किये बगैर उनको केन्द्रीय मंत्री बना दिया। 

जेडीयू ने आरसीपी सिंह के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए,  इस पर उन्होंने जेडीयू से इस्तीफा दे दिया। मोदी सरकार में अब जेडीयू का कोई मंत्री नहीं है। क्षुब्ध नीतीश कुमार नीति आयोग की दिल्ली में हुई बैठक में भाग लेने नहीं गए। उन्होंने दिल्ली नहीं जाने की वजह अपनी अस्वस्थता बताई।

पिछले माह जब केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बिहार का दौरा किया तो नीतीश कुमार ने उनसे दूरी बरती।

भाजपा के प्रांतीय नेताओं ने अमित शाह और जेपी नड्डा के हवाले से यह ‘ खबर ‘ फैला दी कि उनकी पार्टी अगले विधानसभा चुनाव में जेडीयू के कब्जे वाली 43 सीटें छोड़ शेष सभी पर अपने उम्मीदवार खड़े करेगी। यह बात जेडीयू को चुभ गई और उसने कह दिया कि वह सभी सीटों पर चुनाव लड़ने तैयार है। 

नीतीश कुमार को शायद ऐसा लगा कि भाजपा , मोदी सरकार की शह पर महाराष्ट्र में शिवसेना की तरह आरसीपी सिंह के जरिए जेडीयू तोड़ने की तैयारी में लगी है।उन्होंने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद से उद्धव ठाकरे को अपदस्थ करने की सियासी चालों से सबक लेकर समय रहते आक्रामक कदम उठाना बेहतर माना। 

बिहार की सियासत में भाजपा और आरजेडी विपरीत ध्रुव हैं जिनके बीच रहकर जेडीयू पार्टी नेतृत्वकारी भूमिका में आती रहती है। उसे आरजेडी का साथ होने से अन्य पिछड़े वर्ग की कोयरी और कुर्मी जातियों ही नहीं यादव वोटरों के अलावा मुस्लिम समर्थन मिल जाता है। 

नीतीश कुमार को आरजेडी और कांग्रेस के साथ रहकर 2024 के अगले राष्ट्रीय राजनीति में अहम भूमिका निभाने का मौका भी मिल सकता है। उन्होंने अपने गृह जिला नालंदा की सीट से लोक सभा चुनाव लड़ने की तैयारी अभी से शुरू कर दी है। 

नीतीश कुमार का डीएनए 

2016 में नीतीश कुमार ने ‘संघ मुक्त भारत’ का नारा दिया था। उस वक़्त उन्होंने कहा था वह न तो किसी व्यक्ति विशेष और न ही किसी दल के खिलाफ हैं पर संघ यानी आरएसएस की समाज को बांटने वाली विचारधारा के खिलाफ हैं । उस वक्त वह बोले थे कि मोदी जी ने भाजपा के कद्दावर नेताओं लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को दरकिनार कर दिया। अब यह दल ऐसे व्यक्ति  के हाथ में चला गया है, जिनका धर्म-निरपेक्षता और सांप्रदायिक सौहार्द में कोई विश्वास  नहीं है। लेकिन उसके बरस भर के भीतर ही वह फिर मोदी जी के साथ लग गए थे । 

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