विवाह की नयी परिपाटी : सामाजिक जड़ता को झकझोरती सहजीवन की घोषणा

विवाह की नयी परिपाटी : बदलाव की धारावाहिकता कायम है

विनोद कुमार, रांची

विनोद कुमार

राँची में विवाह की नयी परिपाटी। छात्र युवा संघर्ष वाहिनी धारा के पुराने साथी मंथन और राजश्री के सुपुत्र अंतस पलाश और चिन्मयी ने वाहिनी परंपरा का निर्वहन करते हुए 18 दिसंबर को जमशेदपुर में अपने सहजीवन की सार्वजनिक घोषणा की. जमशेदपुर झारखंड में वाहिनी का एक प्रमुख कार्यक्षेत्र रहा है. इसलिए विवाह की नयी परिपाटी के इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में भाग लेने के बहाने वाहिनी और सहमना संगठनों के नये पुराने साथियों का जमावड़ा भी हुआ जो कोरोना काल की जड़ता के बाद सुहाना लगा. इस अवसर पर सहभोज हुआ, युवा लड़के- लड़कियों ने जम कर नाचा, गाया भी, लेकिन कार्यक्रम का महत्वपूर्ण हिस्सा था नवविवाहित जोड़े द्वारा मंच से एक संकल्प पत्र का पढ़ना, जिसमें कहा गया था –
‘‘ हम दोनों दो स्वतंत्र व्यक्तित्व के बतौर एक दूसरे के विचार, स्वभाव, रुचि और जरूरत को समझते और सम्मान देते हुए समानता, स्वतंत्रता, जिम्मेदारी और भागिदारी के साथ विवेक और संवेदना से परिपूर्ण मानवीय जीवन साथ-साथ जीने का संकल्प लेते हैं.’’
जाति व्यवस्था हमारे समाज का कोढ़ समान है और ‘विवाह’ उसकी उसकी आधारशिला रखती है.

शादी का उत्साह

पूरी भारतीय राजनीति इस जाति व्यवस्था की वजह से पतित हो गयी है- जिसकी अभिव्यक्ति ही ‘बेटी, वोट जात को’ से होती है. और हमारे समाज का हर प्रबुद्ध व्यक्ति इस जाति व्यवस्था को तोड़ने की बात सार्वजनिक रूप से लगातार कहने के बावजूद इससे बंधा होता है. हमारे सारे कर्मकांड इस मनुवादी जाति व्यवस्था को मजबूत करने के प्रपंच हैं.

विडंबना यह कि जो चंद लोग इस जाति व्यवस्था को तोड़ने के सच्चे हिमायती भी हैं, जो विवाह, जन्मोत्सव, श्राद्ध जैसे अवसरों पर परंपरागत धार्मिक कर्मकांडों का निषेध भी करते हैं, वे कोई वैकल्पिक व्यवस्था समाज के सामने नहीं रख पाते. जेपी आंदोलन से निकली छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के साथी लगातार धार्मिक कर्मकांडो- विधानों के निषेध की स्थिति में व्यवहारिक व वैकल्पिक उदाहरण बनाने की कोशिशों में लगे हैं. अंतस पलाश और चिन्मया के वैवाहिक जीवन के शुभारंभ का यह कार्यक्रम भी उसी कोशिश का एक हिस्सा है.
इसमें कोई शक नहीं कि अंतरजातीय विवाह सदियों से होते रहे हैं. स्त्री-पुरुष के बीच के यौनिक आकर्षण और तज्जनित प्रेम एक शाश्वत सत्य है. इसलिए अपने समय के परंपरागत विवाहों से इतर प्रेम और विवाह होते रहे हैं. राम और सीता का विवाह एक परंपरागत विवाह की श्रेणी में आयेगा, तो शिव और पार्वती परंपरा से इतर विवाह की श्रेणी में रखा जा सकता है. 74 आंदोलन से निकले वाहिनी धारा के लोगों और कम्युनिस्ट जमातों में भी बड़ी संख्या में अंतरजातीय विवाह हुए. लेकिन अब तक यह समाज की मुख्यधारा नहीं बन सकी है.
इसकी एक वजह शायद यह है कि परंपरागत विवाहों, जिसमें जाति, दहेज, कन्यादान आदि शामिल है, से इतर होने वाले शुद्ध प्रेम पर आधारित विवाहों की कोई परिपाटी हम सुनिश्चित नहीं कर सके. प्रेम के वशीभूत हो कभी कभार अंतरजातीय विवाह हो जाते हैं, लेकिन प्रेमिल जोड़ा इसके महत्व को समझता नहीं और न समाज के सामने कोई आर्दश प्रस्तुत कर पाता है. यह प्रसंन्नता की बात है कि वाहिनी के साथी सचेतन रूप से विवाह की एक सामान्य परिपाटी विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं.

वाहिनी परिवारों की दूसरी पीढ़ी में भी पुत्र, पुत्रियां अधिकांश सामाजिक कामों में सक्रिय नहीं होते हुए भी सचेतन और संवेदनशील नागरिक तो बने ही हैं और सामान्यतः जाति व्यवस्था और तिलक, दहेज, कन्यादान जैसे गलत परंपराओं का विरोध करते हुए अपने ‘सहजीवन’ की सार्वजनिक घोषणा की है.
हाल के वर्षों में वाहिनी परिवारों में अनेक विवाह हुए । विवाह की नयी परिपाटी के अनुसार मंच से ‘संकल्प पत्र’ पढ़ना उसका अनिवार्य अंग बन गया है. प्रेम नितांत व्यक्तिगत चीज है, लेकिन संकल्प पत्र एक सामाजिक प्रकल्प. उसमें परिवार, समाज के लोग भी शामिल होते हैं और उसमें नवविवाहित युगल सार्वजनिक घोषणा करते हैं कि हम दोनों किन संकल्पों से बंधे रहने का वादा करते हैं, ताकि ‘प्रेम’ स्वेच्छाचार बन कर न रह जाये, एक समाज उपयोगी जीवन में बदल जाये.

Leave a Reply

Your email address will not be published.

16 − 9 =

Related Articles

Back to top button