माँ गंगा अभी टिहरी झील में ठहरी हैं , कभी फिर अविरल बहेंगी

कृपया सुनें : https://soundcloud.com/ramdutt/gangotri-3-effects-of-tehri-dam

गंगा टिहरी झील

उत्तरकाशी ,लोकेन्द्र सिंह बिष्ट

अपने उद्गम जिले उत्तरकाशी में 35 किलोमीटर घुप्प अंधेरी सुरँगों में बहने के बाद जब गंगा अपने प्राकृतिक बहाव वाले हिस्से में आती है तो मात्र 1 किलोमीटर बहने के बाद फिर से टेहरी जिले में एक मानव निर्मित विशाल कृत्रिम 42 वर्ग किलोमीटर विशाल झील में तबदील हो जाती है.

सन 1815 में राजा सुदर्शन शाह द्वारा मात्र 700 रुपए बसाया ऐतिहासिक शहर टिहरी आज जलसमाधि ले चुका है।।
आज का समूचा गढ़वाल यानी उत्तरकाशी, टिहरी, पौड़ी गढ़वाल, चमोली, रुद्रप्रयाग को मिलाकर टिहरी रियासत हुवा करती थी।।
टिहरी रियासत पर गोरखाओं के आक्रमण के दौरान टिहरी रियासत ने अंग्रेजों की मदद ली व टैब 10 हज़ार डॉलर की आर्थिक मदद भी ली। अंग्रेजों की सहायता से टिहरी रियासत से गोरखाओं को खदेड़ भगाया गया।।
आर्थिक रूप से टिहरी रियासत संपन्न नही थी तो  मदद के बदले पौड़ी गढ़वाल को अंग्रेजों को दे दिया गया, तब ही से पौड़ी गढ़वाल को ब्रिटिश गढ़वाल भी कहते हैं। इससे पहले टिहरी रियासत की राजधानी श्रीनगर गढ़वाल हुवा करती थी। श्रीनगर के ब्रिटिश गढ़वाल में चले जाने पर टिहरी रियासत में मात्र उत्तरकाशी व टिहरी शेष रह गए थे। वर्ष 1815 में राजा सुदर्शन शाह ने अपनी राजधानी टिहरी बनाकर यहीं मुख्यालय बना दिया था।।

गंगा कभी बहती भी थीं यहाँ

बांध और बिजली के लिए आखिर टेहरी पराजित हो ही गई। टिहरी की कृत्रिम झील में जो कुछ डूबा है वह देशवासियों के लिए मात्र कुछ गांव, शहर, कुछ कस्बे के,कुछ पेड़, कुछ मंदिर ,कुछ पहाड़ पगडंडियां व कुछ खेत खलियान ही होंगे।। लेकिन देश के विकास के नाम पर डूबने उजड़ने के लिए सहमत हुए यहां के बाशिंदों का अपना एक गौरवशाली इतिहास, उनकी शदियों पुरानी सभ्यता संस्कृति, उनकी परंपरा के साथ साथ साझी जीवनशैली के रंग ढंग व तौर तरीके भी सदा सदा के लिए घर जल में डूब चुके हैं। टिहरी वासियों की  समूल सभ्यता संस्कृति परंपरा रिस्ते नातेदारी सब कुछ छिन्न भिन्न हो चुकी है।

विकास के नाम पर यहां के लोगों के  बलिदान का मूल्य उन्हें अब राज्य में “”विस्थापित”” जैसे दोयम नागरिकता की पहचान से चुकाना पड़ता है। इस समय यहां एक विशाल कृत्रिम झील का साम्राज्य स्थापित हो चुका है। कृत्रिम झील खूबसूरत है, विद्युत उत्पादन के साथ साथ यहां जल पर्यटन व जल क्रीड़ा के द्वार खुल चुके हैं।

जल क्रीड़ा के लिए नौकाएँ

टिहरीवासियों की  आने वाली पीढ़ी यहां एक विशाल झील देखेगी, वे शायद ही ये भरोसा कर पाएं इस झील के नीचे कभी एक मुक्कमल  दुनियां हुवा करती थी, जिसकी अपनी एक विशिष्ट जीवनशैली, एक इतिहास, एक संस्कृति व मज़बूत सामाजिक ढांचा था।।और इन्हें शायद ही ये यकीन आये देश के विकास के नाम पर उन्होंने वह सब कुछ त्याग दिया जिसके लिए आने वाली पीढ़ी उन्हे कभी माफ नहीं करेगी।क्योंकि उस पीढ़ी का न अपना कोई समाज होगा, न संस्कृति। इन्हें शदियों तक विस्थापित शब्द से मुक्ति नही मिलेगी।।

ये विस्थापित एक ऐसा शब्द है जो इंसान का पीछा शदियों तक नहीं छोड़ता और स्थानीय लोग विस्थापितों को कभी स्वीकार नही करते।। टिहरी झील में जलमग्न हुए बिडकोट गांव से विस्थापित हुए पत्रकार शीशपाल सिंह गुसाईं का कहना है कि बांध से उन्हें क्या मिला। बेचैनी, दुःख, मनमुटाव, अपनों से बिछडाव। बांध ने उनकी जमीन ,मकान, फसलें, खेत खलिहान ही नहीं एक परंपरा व संस्कृति भी छीन ली।।

टेहरी जल विधुत विकास निगम THDC के विशाल बांध से 1000 मेघावाट विद्युत उत्पादन करती है।। भूमिगत पावर  हाउस से एक हज़ार मेघावाट विद्युत उत्पादन करने के बाद अपने मूल प्राकृतिक बहाव में आने से सीधे मां गंगा की जलधारा फिर से 400 मेघावाट के बांध परियोजना के जलाशय में कैद हो जाती है। टेहरी बाँध से 2400 मेघावाट विद्युत उत्पादन करने की योजना है। जिसमे से 1000 मेघावाट टेहरी बांध से 400 मेघावाट कोटेश्वर बांध से वर्तमान में उत्पादन हो रहा है।। 1000 मेघावाट बिजली  उत्पादन करने की योजना ये है कि टेहरी बांध जलाशय से जो पानी टेहरी बांध पावर  हाउस से 1000 मेघावाट विधुत उत्पादन करने के बाद कोटेश्वर बांध के जलाशय में जा रहा है, उसी जल को PHP यानी पंप स्टोरजे प्लांट योजना के तहत बड़े बड़े पम्पो के माध्यम से टेहरी बांध के 42 वर्ग किलोमीटर की कृत्रिम झील में वापिस डालना है।फिर जब टेहरी जलाशय में अत्यधिक पानी स्टोरजे हो जाएगा तब PHP से 1000 विद्युत और उत्पादन करने की योजना है। इसके लिए 1000 मेघावाट का भूमिगत पवार हाउस निर्माणाधीन है।।

देश के आधुनिक विकास व विद्युत उत्पादन के लिए टिहरी आखिर डूब  गई। टिहरी शहर व सैकड़ों गावों जलमग्न हो गए। आज इस जगह एक  विशाल कृत्रिम झील में मां गंगा व भिलंगना नदी तब्दील हो गई।।बाँधो का जीवन निश्चित होता है। नदियां फिर बहने लगती हैं। वे बंधती नहीं। कुछ समय के लिए ठहरा दी जाती हैं।फिर माँ गंगा भागीरथी के करोड़ों वर्षों के जीवन मे एक सदी यानी 100 वर्ष के क्या मायने होंगे।

कृपया सुनें :  https://soundcloud.com/ramdutt/interview-with-nani-mai-of-the

मन में है विश्वास भविष्य में गंगा फिर अविरल बहेंगी

 

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