मॉं गंगा मरणासन्न हैं, सारे पर्यावरण योद्धा कहाँ हैं?
गंगा जी का पानी अब न पीने लायक़ है , न नहाने
“गंगा तव दर्शनात् मुक्ति”, ये पंक्ति आपको विभिन्न गंगा घाटों के करीब दीवारों पर लिखी मिल जाएगी. इसका अर्थ है कि गंगा तेरे दर्शन मात्र से ही मुक्ति मिलेगी. धर्म ग्रंथो के अनुसार भगवान विष्णु ने गंगा अवतरण के अवसर पर यह कहा था. यह पंक्ति भले गंगा का महत्त्व प्रदर्शित करने को कही गई हो, परन्तु यकीन मानियेगा कलयुग में यह यथार्थ है. अब आपको गंगा के दर्शन मात्र से अपनी मुक्ति कि उम्मीद रखनी है. गंगा की वर्तमान में जो स्थिति है उसमे स्नान की हिम्मत तो नहीं होगी. पूरे पूर्वांचल में कहीं भी आप गंगा किनारे चले जाए आपको सत्य का अनुभव हो जाएगा.
शनिवार 5 जून क़ो पर्यावरण दिवस के अवसर पर एक वेबिनार का निमंत्रण मिला, जिसके आयोजक आजादी बचाओ आंदोलन के नेता रामधीरज थे. जिस समय वक्ता के तौर पर आमंत्रित जलपुरुष राजेंद्र सिंह जी जोश में इस पर्यावरणीय विनाश के लिए कैपिटलिज़्म और समाजवाद क़ो सामूहिक रूप से दोषी ठहरा रहे थे, उस समय बनारस में पतित पावनी गंगा हरे रंग की दिख रहीं थी.
वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी, जो की निरंतर गंगा के प्रदूषण के विरुद्ध जागरूकता के प्रसार में जुटे हैं, जरा रोषपूर्ण स्वर में कहते हैं, “इन सेमिनार से कुछ नहीं होने वाला, कहाँ हैं गंगा जी के नाम बड़ी – बड़ी उपाधियों को धारण करने वाले वाले लोग, उन्हें आगे आना चाहिए.”बात भले हो रोष में कहीं गई हो पर उचित थी. क्या इन बड़े नाम और सम्मान के धारक नेताओं के सेमिनार और सभाओं से ही गंगा का कल्याण हो जाना हैं ? अतः ऐसे विभूतियों से प्रश्न करना आवश्यक था.
रामधीरज जी के समक्ष यह प्रश्न उठाने पर उनका कहना था कि,” हमारी पूरी परिस्थिति पर नज़र है. हम जल्द ही इस पर करवाई सुनिश्चित करेंगें. अभी हम कोई रैली या सभा नहीं करेंगे क्योंकि महामारी का खतरा बना हुआ है. एक आवश्यक सामाजिक कार्य के लिए आगे आने पर भी सरकार हमें बीमारी के प्रसार का दोषी बनाने पर लग जाएगी.”यह उत्तर संतुष्ट करने वाला नहीं था.
मेरा अगला प्रश्न था कि, यह कोरोना की स्थिति तो अभी लंबी रहने वाली है तो क्या सामाजिक योद्धा इसके ओट में अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए प्रयासरत हैं ? रामधीरज जी का कहना था कि, “यह प्रश्न मात्र सामाजिक नेताओं के लिए नहीं हैं. यहाँ पूरे समाज कि जिम्मेदारी है. समाज के सहयोग के बिना हमें अपने दायित्वों का निर्वहन नहीं कर पाएंगे. हम अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं रहे. मेरे कुछ साथी NGT गये हैं. जैसे ही कोरोना कि स्थिति कुछ सुधरती हैं हम वाराणसी आयेंगे और पदयात्रा और सभा के आयोजन के साथ अपना संघर्ष शुरू करेंगे.”
रामधीरज जी आगे कहतें हैं,” कुछ प्रश्न आप लोगों को सरकार से भी करना चाहिए. एक तरफ तो सरकार गंगा को राष्ट्रीय नहीं घोषित करती है और दूसरी तरफ सुनियोजित तरीके से उसकी हत्या करने में लिप्त है. जैसे राष्ट्रीय पशु, पक्षी और झंडे के लिए हमने प्रोटोकॉल निर्धारित किये हैं, ऐसे ही राष्ट्रीय नदी के लिए भी नियम बनना चाहिए. जो भी नदी को बाधित करे उसके विरुद्ध आपराधिक मामला दर्ज करना चाहिए. चूँकि सरकार ने उसे बाधित किया है इसलिए सरकार के विरुद्ध मुकदमा दर्ज होना चाहिए. सही मायनों में यह” नेशनल क्राइम”है. कोई भी नदी हो उस पर बांध कैसे बन सकता है. बांध के बिना ही नदियों की पवित्रता बनी रहेगी. गंगा जब की सांस्कृतिक, राष्ट्रीय, और लोगों की पूज्य नदी है, तब उसके निरंतर बहाव से ही उसकी पवित्रता बनी रहेगी. अब प्रश्न उठता है कि सिचाई और बिजली कि व्यवस्था कैसे हो ? तो उसके लिए सरकार अन्य विकल्प तलाशे. नदी के गुण का विकल्प तो हमारे पास नहीं हैं ना. हालांकि गंगा ही नहीं बाकी नदियों के प्रवाह को भी बाधित कर् उचित नहीं. लेकिन कम से कम जिसे राष्ट्रीय नदी घोषित किया उसे तो अबाधित रूप से प्रवाहित होने दिया जाए. लेकिन यहाँ तो गंगा के घाट बेचने वालों से क्या उम्मीद की जाए?? “
इन्हीं प्रसंगो को लेकर राजेंद्र सिंह से भी मैंने संपर्क किया और कई प्रश्न किये. प्रश्न – बनारस से बक्सर तक गंगा का पानी हरा हो चुका है. अब तक आपने इस विषय पर कोई सक्रियता क्यूँ नहीं दिखाई ?राजेंद्र जी- “आज हमने एक बड़ी रैली निकली और घोषणा की है कि, गंगा बीमार थीं, अब ICU में एडमिट है, पर उनका बेटा लापता है. हमने आह्वान किया की गंगा को बचाने की जरुरत है और आप सब गंगा को बचाने में जुटें.”
प्रश्न- जलपुरुष का अगला कदम इस सम्बन्ध में क्या होगा ?राजेंद्र जी -“देखिये, इस वक्त मेरा वहाँ आना मुश्किल है. जैसे ही लॉकडाउनख़त्म होता है, मैं, रामधीरज वगैरह मिलकर इस पर कोई कदम उठाएंगे. स्वामी अवमुक्तेश्वरानंद जी भी इस पर चिंतित हैं.”प्रश्न – रामधीरज इसे “नेशनल क्राइम”(राष्ट्रीय अपराध)कह रहें हैं.आपका इस पर क्या कहना है ? राजेंद्र जी – प्रधानमंत्री जी गंगा के साथ अन्याय कर रहें हैं और बेटे बनकर धोखा दें रहें हैं. इन्होंने पूरी दुनिया में गंगा के बारे में जितना झूठ बोला उतने झूठ से तो गंगा भी अपवित्र हो गई. जिस गंगा के जल को हाथ में लेकर हम शपथ करते थे, प्रधानमंत्री जी ने तो गंगा के नाम पर झूठ बोलकर उस आस्था और भारतीय संस्कृति को भी माता दे दिया. जो लोग गंगा के नाम संसद में सदस्यता की प्रतिज्ञा लेते हैं, उस प्रधानमंत्री ने गंगा के सन्दर्भ में सत्यमेव जयते को झूठमेव जयते में बदल दिया. उन्होंने बहुत कहा कि वे गंगा को स्वच्छ करने में जुटे हैं, तुमने मुझे बनाया है तो मैं गंगा को अविरल, निर्मल कर दूँगा. जो काम पिछली सरकारें 30 सालों में नहीं कर पायी वो मैं 3 महीने में कर दूँगा. भाई साहब अब तक तीन महीने हुए ही नहीं हैं उनके ? तो झूठ बोलने में हमारे प्रधानमंत्री सबसे ऊपर हैं और अपने झूठ से भारत को डरा रहें हैं. गंगा को जितना धोखा उन्होंने दिया और किसी ने नहीं दिया. ये नेशनल क्या ‘इंटरनेशनल क्राइम’ है, क्योंकि गंगा मात्र राष्ट्रीय नहीं पूरी दुनिया की नदी है. गंगा पर पूरी दुनिया की आस्था है. इससे तो गंगा कि पवित्रता कि आस्था भी अब भंग होगी.
अब प्रश्न केवल राजेंद्र सिंह और रामधीरज जी जैसे समाजसेवीयों से ही नहीं जुड़ा है, बल्कि गंगा मैदान में स्थित आठ राज्यों कि करोड़ो लोगों से जुड़ा हुआ है. गंगा मात्र आस्था का प्रतीक नहीं बल्कि राष्ट्र कि जीवन रेखा है. यह क़ृषि, पेयजल और जीव-जंतुओं के लिए आधार है. 5500 सौ सालों से गंगा शब्द स्वच्छता व शुद्धता का पर्याय के रूप में प्रयोग किया जाता रहा लेकिन पिछले 40 से 50 सालों में इसकी शुद्धता का तेजी से दुर्गती हुआ है। गंगा के गंदा होने के कई कारण है। नाले का पानी, शहर का कचरा व सबसे बड़ा कारण धार्मिक मिथक भी है. मोक्षदायनी की दशा सुधरती नहीं दिख रही है। अब तो गंगा में हरे रंग की काई (शैवाल) जमने से गंगा का पानी न पीने लायक है और ना ही नहाने लायक है।
एक प्रतिष्ठित हिंदी दैनिक के स्थानीय संवाददाता नुमान बाबर खान इस सम्बन्ध में बताते हैं कि, “गहमर, बारा समेत बिहार के बक्सर में बहते शवों का सिलसिला बंद हुए बीस दिन से अधिक हो गया है। इसके बाद गंगा नदी का पानी हरा हो जाना चिंता का विषय बना हुआ है। जिससे दुर्गंध भी आ रही है। जो स्थिति छोटे छोटे तलाब व नदी नालों की थीं वही स्थिति अब गंगा की होते जा रही है। गंगाजल का हरा हो जाना गंगा के अस्तित्व पर खतरे की घंटी है। इस समय में गंगा नदी किनारे बसे मल्लाहों की माने तो गंगा नदी का पानी कुछ दिन से तैलीय हो गया था। अभी चिकनाहट धीरे-धीरे कम हो रहा है। उनका कहना है कि यह स्थिति पानी में रहने वाले जीव जन्तु के लिए खतरनाक है। वही स्थानीय लोगों द्वारा गंगा नदी की जल की जांच की मांग की जा रही है। बता दे कि कुछ दिनों से चौसा में सीमावर्ती रानी घाट से कम्हरिया घाट तक गंगा नदी का पानी हरा रंग का हो गया है.”
केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड से मिले आंकड़ों के अनुसार शहर के नालों से 33 मिलियन लीटर गंदा पानी प्रतिदिन गंगा में बहाया जाता है। मलमूत्र से लेकर कचरा तक गंगा में जाता है। जिससे गंगा का पानी दिन पर दिन प्रदूषित होते जा रहा है। गंगा में प्रति सौ मिली लीटर पानी में गंदगी की मात्रा 6867 एमपीएन हो गया है। जबकि किसी भी नदी में सामान्यतः 2500 एमपीएन / 100 मिली लीटर या इससे कम होना चाहिए। वहीं दूसरी और गंगा में मलमूत्र की मात्रा (फोकल कालीफार्म) 3122 एमपीएन/ 100 मिलीलीटर हो गया है जबकि सामान्यतः 500 एमपीएन 100 मिलीलीटर या इससे कम होना चाहिए। जिसके कारण गंगा का पानी न पीने लायक है और न ही अब नहाने लायक. गंगोत्री से गंगासागर तक फैली 2525 किलोमीटर गंगा नदी की तीन बार यात्रा कर 11 खंडों में एक साथ पुस्तक लिखने वाले प्रसिद्ध लेखक गंगा यात्री निलय उपाध्याय द्वारा बताया गया कि गंगा अब जा रही है। हमारी आगे की पीढ़ियों गंगा नदी को देख पाएंगी या नहीं कुछ कहा नहीं जा सकता। गंगा अब गड्ढा हो गयी है। जैसे गड्ढे में पानी रुकने से पानी दुर्गंध देने लगता है और रंग बदल जाता है। वहीं हाल हमारी पवित्र नदी कही जाने वाली गंगा का हो गया है। जिसका मुख्य कारण है की गंगा नदी में आने वाली सैकड़ों जलधाराओं का आधुनिकीकरण करने के चक्कर में समाप्त कर दिया गया है। जगह जगह गंगा के जल धारा को भी रोक कर बिजली बनाने का कार्य किया जा रहा है।गंगा के पानी में लगा काई लग चुकी है. एक्सपर्ट्स की राय जलीय जीवों पर भी खतरा हो सकता है. जन्तुविज्ञानविद एवं पर्यावरण- विज्ञानविद डॉ. भगवान मिश्र (सहायक प्राध्यापक महर्षि विश्वामित्र, महाविद्यालय, बक्सर ने बताया कि वैज्ञानिक संदर्भ में गंगा नदी के जल में एकअत्यंत ही महत्वपूर्ण सूक्ष्मजीवी सहजीविता का समूह होता है। जिसे प्रायः वैक्टेरियोफेज (बैक्टीरिया पर वायरस का डौमिनेन्सी) कहते हैं विक्टेरियोफेज के उपस्थिति के कारण गंगा नदी के जल स्वच्छ, कजल एवम दुर्गंधहीन होता है। लेकिन नदी के बहाव का न होना व हजारों शवों को गंगा नदी में प्रवाहित करने के कारण गंगा जल में वैकटेरियोफेज नष्ट हो जाते हैं।
जल का रंग गहरा हरा एवम काला दिखाई देने लगता है साथ ही साथ जल दुर्गंध तथा बदबूदार हो जाता है। इसे जलीय जीवों एवम मछलियों में व्याप्त महामारी फैलने की भी आशंका है।
टोनी मॉरिसन लिखते हैं, “पानी की याददाश्त उत्तम होती है वह हमेशा वहीं जाने का प्रयास करता है जहाँ वो था.” लेकिन रजनीति में यह प्रसंग विपरीत है. राजनीति में माना जाता है की जनता की याददाश्त अल्प होती है. संभवतः इसीलिए लोहिया जी ने “जिंदा कौमें पांच साल का इंतजार नहीं करतीं ” का नारा दिया था. हालांकि गंगा का प्रश्न समाज के मूल मनोभावों से जुड़ा है, इसकी दुर्दशा की अनदेखी सरकार और प्रशासन के लिए कठिन उत्तरदायित्व की भूमिका तैयार कर रहा है. इसकी जवाबदेही से बचना मुश्किल है. अब समाज को तय करना है कि उसे इसका निदान किस प्रकार चाहिए???
शिवेन्द्र प्रताप सिंह
शोधार्थी- सामाजिक विज्ञान संकाय ,वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय, बिहार E-mail – Shivendrasinghrana@gmail.