मोदी जी सामान्य धारणा के विपरीत खुले मन के सहज व्यक्ति

प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव रहे नृपेन्द्र मिश्र की नजर में नरेंद्र मोदी

मोदी जी
नृपेंद्र मिश्र
पूर्व प्रधान सचिव
प्रधानमंत्री, भारत सरकार

राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय मंचों पर उत्कृष्ट भूमिका अदा करने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहचान विश्व भर में है।

राजनीतिक हलके में उनके प्रखर आलोचक भी उनकी अतुलनीय लोकप्रियता के कायल हैं।

उनके पास उत्साह संपन्न समर्थक हैं और उनके भाषणों को हाथों-हाथ लिया जाता है।

चौबीसों घन्टे लोगों की निगाहों बने रहने के बावजूद एक व्यक्ति के रूप में उनके व्यक्तित्व के अनेक पहलू जनता के समक्ष नहीं प्रस्तुत हो पाते।

उनके सहकर्मी जानते हैं कि वह भेद-भाव नापसंद करते हैं।

सरकारी योजनाओं के निर्माण की बैठकों में उन्हें जब भी पता चलता है कि अमुक स्कीम को अमुक समुदाय के पक्ष में लाभदायी और अमुक समुदाय को समुचित लाभ न मिले इस दृष्टि से संरचित किया गया है, तो वह ऐसी बातों को तत्क्षण अस्वीकृत करते थे।

वंचित लाखों लोगों को आर्थिक मदद के घेरे में लाने वाली चाहे जन-धन योजना रही हो जिसके तहत पैन्डेमिक काल में जरूरतमंदों के लिए उनके बैंक खातों में प्राणदायिनी आर्थिक मदद सीधे डिजिटली ट्रांसफर की गयी या प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना का कार्यान्वयन रहा हो या फिर उज्ज्वला योजना के तहत कुकिंग गैस का वितरण हो अथवा गरीबों के लिए आवास योजना, उनके स्पष्ट निर्देश रहे कि  जाति और धर्म का भेद किये बगैर लक्ष्य पूरा करिये।

सबका विकास के नारे के साथ राष्ट्र का निर्माण उनका लक्ष्य था।

भारत को विकसित देशों की पांत में पंहुचाने के  लिए उन्होंने बेहिचक हिम्मत भरे फैसले लिये।

पड़ोसियों से संबंध

अपने प्रथम शपथ ग्रहण के तत्काल बाद शपथ समारोह में आने वाले विदेशी राष्ट्राध्यक्षों के साथ वह संबंध प्रगाढ़ करने में लग गये थे।

मोदी जी ने पड़ोसियों से अच्छे संबन्ध बनाने के कारगर संदेश देकर विदेश विभाग के उन पुरोधाओं को भी चौंका दिया था जो उन्हें विदेश नीति के क्षेत्र में नौसिखुवा समझ रहे थे।

साथ ही उन्होंने यह भी जता दिया कि वह साउथ ब्लाक की फाइल-फाइल खेलने वाले नहीं बनना चाहते।

और सलाहकारों को भी समझ में आ गया कि प्रधानमंत्री पिछले 70 वर्षों के करकट और हठधर्मिता को लेकर विदेश नीति को आगे नहीं बढा़येंगे।

मोदी जी की नजर में विदेश नीति का मौलिक लक्ष्य शांति स्थापित करना और 130 करोड़ भारतीयों के भले के लिए भारत की संप्रभुता की रक्षा करते हुए विकास के लक्ष्य पाना है।

इसे हम इजरायल व ताइवान से सम्बन्ध गढ़ने में अतीत की हिचकिचाहट से मुक्त होकर कार्य करने में देख सकते हैं।

यह उनकी लाहौर की अचानक यात्रा और नवाज शरीफ के शार्ट नोटिस पर प्राप्त निमंत्रण को स्वीकार करने में भी देख सकते हैं।

वह द्विपक्षीय संबन्धों को बेहतर करने के लिए लाभ और लागत की आपत्तियों को दरकिनार कर देते हैं।

यह पाकिस्तान का दुर्भाग्य ही है कि वहां के स्वार्थी तत्वों ने शांति और समृद्धि के प्रयासों को पलीता लगा दिया।

राष्ट्रीय हितों का संरक्षण

राष्ट्रीय हितों पर केन्द्रित होने के कारण ही मोदी जी ने अरब जगत में खासतौर में सऊदी अरब व यूनाइटेड अरब अमीरात से प्रगाढ़ संबन्ध बनाने सफलता प्राप्त की।

अपने पिछले 15 अगस्त के भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने भारत के आस-पड़ोस को पुनर्परिभाषित करते हुए उसमें उन देशों को भी शामिल किया जिनकी सीमाएं भारत से नहीं लगतीं।

दरअसल यह उनका वाक्चातुर्य था जिसके जरिये उन्होंने देश को बताया कि वह सन् 2014 से क्या कर चुके हैं।

यूनाइटेड स्टेट्स, रूस, यूरोपीय यूनियन, जापान और दक्षिण एशिया से संबन्ध प्रगाढ़तर हुए हैं।

और भारत को उसके अनुरूप अन्तरराष्टीय भूमिका दिये जाने का भाव स्थापित हुआ।

यह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सीट पर भारत के निर्वाचन में संपूर्ण विश्व के लगभग एकमत होने के रूप में परिलक्षित हुआ।

यह बताना उपयुक्त होगा कि अन्तरराष्ट्रीय समर्थन राष्ट्रीय हितों की कीमत पर नहीं हासिल किया गया है।

मोदी जी ने संरक्षणवादी या फिर एन्टी ग्लोबलाइजेशन कहे जाने की परवाह किये बगैर राष्ट्रीय हितों के संरक्षण के लिए रीजनल काम्प्रीहेन्सिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आरसीईपी) वार्ता दौर से बाहर आना मुनासिब समझा जिससे पूरे विश्व को आश्चर्य हुआ।

इसी तरह यूनाइटेड स्टेट्स से संबन्ध सुधार के प्रयास करते समय उन्होंने भारत के जलवायु परिवर्तन के रुख में नरमी नहीं आने दी।

सत्य तो यह है कि वह निर्भीक हैं और राष्ट्रहित  में स्थापित सिद्धांतों से दूर जाने में भी नहीं कतराते।

सीमा उल्लंघन पर उनकी निर्भीक नीति जताती है कि ऐसी परिस्थितियों में विमूढ़ावस्था में पड़े रहने और स्थिति कहीं नियंत्रण से बाहर न चली जाये, इसलिए सहते रहने की मनःस्थिति से उनका देश बाहर आ चुका है।

निर्भीक विचारों को करते हैं पसंद

आम धारणा है कि वह अपने से अलग विचारों को प्रोत्साहित नहीं करते।

पर जो लोग उनके साथ बैठक कर चुके हैं, उनकी धारणा है कि मोदी जी निर्भीक विचारों को पसन्द करते है।

उनसे बातचीत बहुत सहज होती है।

वह मिलनेवालों को बहुत ध्यान से सुनते हैं, कभी यह नहीं जताते कि वह समय सीमा के दबाव में है।

संस्थागत ढांचे पर वह मत-मतान्तरों के बीच सर्वसहमति या मतैक्य के प्रयास करते हैं।

वर्ष 2016 में नोट बन्दी की तैयारियों के समय वह 2000 रुपये की नोट चलाने के सुझाव से सहमत  नहीं थे।

पर उन्होंने  सुझाव को स्वीकार कर लिया क्योंकि बताया गया कि 2000 रुपये के नोट छापने से कैश उपलब्धता में वृद्धि हो जायेगी।

वह निर्णय करने बाद पूरी जवाबदेही लेते है, सलाहकारों पर दोष नहीं मढ़ते।

ब्याज-दर, फिस्कल डेफेसिट, वित्तीय संस्थाओं के संरचनात्मक सुधार सबंधी निर्णय यद्यपि पूरी तौर पर उनके विचारों के अनुरूप हो सकता है न हों, पर वह इन सभी निर्णयों से पीछे नहीं हटे। 

वह 70 के हो गये हैं पर उनकी उर्जा, जुनून और आत्मविश्वास पूर्ववत है।

हाल में हुई समस्याओं की बरसात से वह विचलित भी नहीं हैं और वह शांति और विकास के लक्ष्य को पाने के प्रयासों पर डटे हैं।

मुख्यमंत्री व प्रधानमंत्री के रूप में उनके अनुभव भण्डार व जन समस्याओं की उनकी पकड़ उनकी ताकत है।

एक मरुप्रदेश में जलधारा के प्रवेश जैसा हमारे प्रिय प्रधानमंत्री का हमारे राष्ट्र जीवन में नेतृत्व के लिए आना हुआ है।

उन्होंने 6 वर्षों में जो कर दिखाया वह दशकों तक न कर सकने वाले कुछ लोगों को उनकी उपलब्धियों से डाह है। 

हम उनके अच्छे स्वास्थ्य की प्रार्थना करते हैं और चाहते हैं हमारे राष्ट्र के लिए वह दीर्घजीवी हों।

 

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(अंग्रेज़ी दैनिक टाइम्स  ओफ़ इंडिया में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्म दिन पर प्रकाशित श्री नृपेंद्र  मिश्र के लेख का साभार अनुवाद. अनुवादक दिनेश कुमार गर्ग, पूर्व उपनिदेशक उत्तर प्रदेश सूचना विभाग )

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