‘ये’ लौटने वाले प्रवासी मज़दूर हैं तो फिर ‘वे’आने वाले कौन हैं ?

श्रवण गर्ग, वरिष्ठ पत्रकार

-श्रवण गर्ग, पूर्व प्रधान सम्पादक, दैनिक भास्कर एवं नई दुनिया 

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जब अपने राज्य के प्रवासी मज़दूरों के वापस लौटने के प्रति विरोध जताया था और योगी आदित्यनाथ द्वारा राजस्थान में फंसे उत्तर प्रदेश के छात्रों को बसें भेजकर वापस बुलवाने पर नाराज़गी ज़ाहिर की थी तब कई लोगों को आश्चर्य हुआ था।जो कि होना नहीं चाहिए था। नीतीश कुमार सम्भवतः एकमात्र मुख्यमंत्री थे जो अपने ही लोगों के वापस लौटने के ख़िलाफ़ थे।यह बात अलग है कि हवा का रुख़ देखकर उन्होंने बाद में विचार बदल दिया और अपने विरोध को रेल भाड़े के भुगतान के मुद्दे के साथ जोड़ दिया।

समझने की बात यह है कि नीतीश कुमार ने विरोध क्यों किया होगा ? इसके पीछे दो कारण हो सकते हैं: पहला तो यह कि ये जो लाखों लोग हैं जो वापस लौट रहे हैं बिहार की पहले से ही कमज़ोर अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से प्रभावित करने वाले हैं।वैसे तो यही चिंता झारखंड, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा ,आसाम और पश्चिम बंगाल की भी हो सकती है पर अभी नीतीश कुमार जितनी नहीं।दूसरा यह कि: बिहार विधान सभा का कार्यकाल इसी साल 29 नवम्बर को समाप्त हो रहा है और चुनाव उसके पहले अक्टूबर में होने हैं।प्रवासी मज़दूरों की वापसी ,उनके दुःख-दर्द और उनकी माँगें निश्चित ही एक बड़ा मुद्दा बन सकती हैं , अगर केंद्र ने कोई बड़ी मदद नहीं की तो।वैसे नीतीश कुमार का आरम्भिक तर्क यह था कि मज़दूरों की वापसी से कोरोना के संक्रमण का ख़तरा राज्य में बढ़ जाएगा।

कोरोना ने बिहार जैसे गरीब राज्य के लिए जो परेशानी पैदा की है और जिसे कि आगे-पीछे बाक़ी प्रदेशों को भी भुगतना है वह यह है कि क्या उन मज़दूरों को जो इस संकल्प के साथ वापस लौट रहे हैं कि चाहे जो हो जाए वे महानगरों को वापस नहीं जाएँगे,वे लोग बर्दाश्त कर पाएँगे जो एक जर्जर अर्थव्यवस्था में अपने लिए जगह बनाने के लिए पहले से ही वहाँ रहते हुए संघर्ष कर रहे हैं ? हम जो नहीं देख पा रहे हैं और नीतीश कुमार ने जिसे भांप लिया वह यह कि रोटी-रोज़ी को लेकर अब चलने वाली लड़ाई राज्य के ख़ज़ाने को भी तबाह कर सकती है और चुनावी समीकरणों को भी बिगाड़ सकती है।बिहार में 1 अप्रैल 2016 से शराबबंदी लागू है और इसके कारण राज्य को होने वाली राजस्व की हानि का केवल अन्दाज़ ही लगाया जा सकता है ख़ासकर के आज के संदर्भों में।

सवाल यहीं तक सीमित नहीं है कि केवल देश के भीतर ही मज़दूर अपने घरों को लौट रहे हैं और उससे राज्यों में रोज़गार आदि की बड़ी समस्याएँ खड़ी होने वाली हैं।एक अनुमान के अनुसार ,कोई पाँच सौ से ज़्यादा विमानों और तीन बड़े युद्ध पोतों की सेवाएँ अलग-अलग कारणों से विदेशों से भारत लौटने इंतज़ार कर रहे लोगों को वापस लाने में लगने वाली हैं।पहले सप्ताह के ऑपरेशन में 64 उड़ानों और युद्धपोतों के ज़रिए तेरह देशों से 14 हज़ार भारतीयों को वापस लाया जाएगा।केवल केरल में ही अलग-अलग देशों से कोई साढ़े तीन लाख लोग वापस लौटना चाह रहे हैं।इनमें भी सिर्फ़ दो लाख तो अमीरात से ही लौटेंगे।वापस लौटने वाले ये लोग कौन हैं ? इनमें अधिकांश वे हैं जिनकी नौकरियाँ चली गईं हैं ,वीज़ा की अवधि समाप्त हो गई है,पढ़ने वाले छात्र हैं और कुछ ऐसे भी हैं जो चिकित्सा सम्बन्धी अथवा किन्हीं पारिवारिक कारणों से वापस आना चाहते हैं।ये उन पंद्रह लाख लोगों से अलग हैं जो लॉक डाउन प्रारम्भ होने के पहले के दो महीनों में भारत लौट चुके हैं।

चीन के वुहान शहर से लौट रहे भारतीय

कोरोना ने न सिर्फ़ हमारे महानगरों की अर्थव्यवस्था को तहस-नहस कर मज़दूरों को बेरोज़गार और वापस लौटने को मजबूर कर दिया, दुनिया के अधिकांश देशों में भी आर्थिक मंदी और बेरोज़गारी के चलते वहाँ काम कर रहे भारतीय नागरिकों के लिए भी नयी मुसीबतें खड़ी कर दीं हैं।एक अनुमान के अनुसार, लगभग तीन करोड़ प्रवासी और भारतीय मूल के नागरिक अलग-अलग देशों में इस समय कार्य कर रहे हैं।संख्या थोड़ी कम-ज़्यादा भी हो सकती है।अकेले यू ए इ में ही पैंतीस लाख और सउदी अरब तथा अमेरिका में बीस-बीस लाख भारतीय हैं।विदेशों से लौटने वाले अगर एक लम्बे समय तक यहीं रुकते हैं तो वे भी उसी अर्थव्यवस्था में अपने लिए भी ‘स्पेस’ ढूँढ़ेंगे जिसमें कि इस समय पिछले पैंतालीस वर्षों में सबसे अधिक बेरोज़गारी बताई जाती है।कोरोना ने जानों के अलावा कितने रोज़गार निगल लिए हैं, उसका ठीक से पता चलना अभी बाक़ी है।हम अगर लॉक डाउन के टूटने की बहादुरी के साथ प्रतीक्षा कर रहे हैं तो हमें चौंकाने और डराकर रखने के लिए कई आँकड़े और जानकरियाँ मिलना शायद अभी शेष हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published.

8 + 20 =

Related Articles

Back to top button