कोरोना  काल  की  कवायद

हास्य लेख

महेश चंद्र द्विवेदी

महेश चंद्र द्विवेदी

                        कोरोना का रोना अखबार में पढ़ते-पढ़ते और टी. वी. पर देखते-सुनते जी इतना भर गया है कि कुछ फ़ालतू कवायद कर जी हलका करना मेरी दिमाग़ी मजबूरी हो गई है। पर मेरी यह कवायद (जिसे कोरी बकवास कहना ज़्यादा सही होगा) सुनने वाला कोई है ही नहीं – न कोई घर के बाहर और न कोई अंदर। बाहर के लोगों के सामने अपना हाल-ए-बेचैनी तो तब बयां करूं, जब घर से बाहर निकल पाऊं। जवानों और बच्चों को तो सिर्फ़ ‘लाक-डाउन’ के दौरान घर से बाहर निकलने पर पुलिस के ‘लाक-अप’ में दाखिला मिल जाने का अंदेशा रहता है, पर मुझ जैसे उम्रदराज़ को तो कभी भी बाहर निकलने पर कोरोना के ‘कोरंटाइन’ के दोज़ख़ में ढकेल दिये जाने का ख़ौफ़ रहता है। और घर के अंदर का हाल यह है कि ज़िंदगी भर में सिर्फ़ एक अदद बीवी कमाई है, और अब बस वही साथ में है। पर रोज़ रोज़ का कोरोना का रोना पचाने की उसके दिमाग़ की कुव्वत मेरे से भी कम है। अब वह भी कोरोना-पुराण की सिर्फ़ उगाली कर सकती है, जुगाली नहीं। ऐसे में अगर मैं उसे अपनी बकवास सुनाने लगूं, और वह जवाबी हमला कर दे, तो हमारे दिमाग़ी हालात में बेशक मुंड़फुड़व्वल हो जायेगी। इसलिये मैं उससे अपना सिर बचाने और आप का सिर खाने को अपनी यह बकवास लिखकर आप के सामने पेश कर रहा हूं। अब अगर आप के पास टाइम-पास का इससे बेहतर ज़रिया न हो और दिमाग़ में ख़ालीपन  भरा हो, तभी इस बकवास को पढ़ियेगा (और बाद में पछताइयेगा)। नहीं तो मेरी सलाह मानकर आप भी इसी तरह कुछ ऊल-जलूल लिख डालिये और जवाबी हमले की शक्ल में मुझे पढ़ने को परोस दीजिये।

                  जवाबी हमले की बात पर याद आया कि आजकल हिंदुस्तान और चीन के बीच खूब ज़बानी और जवाबी हमला चल रहा है। ज़बानी हमले में हमारे मीडिया के चैनल रोज़-रोज़ हिंदुस्तान को दुनिया के सबसे हौलनाक हथियार हासिल हो जाने और चीन को चुटकियों में चटनी बना देने की कुव्वत हासिल हो जाने की बात गला फाड़-फाड़ करते रहते हैं। चीन चुपचाप एक कान से सुनता और दूसरे से निकाल देता है, पर हमले – चाहे जवाबी हो या सवाली – में कोई कोताही नहीं करता है। ग़ौरतलब है कि कोरोना की यहां घुसपैठ के ठीक पहले मोदी जी ने हिंदुस्तान में आबादी के सैलाब को काबू में रखने की बात उठाई थी। बात जायज़ भी थी और बेलगाम आबादी को देखते हुए लाज़मी भी। हमारे कुछ मज़हबी आकाओं और चीन के ख़ैरख़्वाहों ने बात का बतंगड़ बनाना शुरू कर दिया और हिंदुस्तान की तरक्की के इस बेमिसाल नुस्खे की खबर को शी जिन्पिंग तक पहुंचा दिया। फिर क्या था – मोदी जी के इस नुस्खे को नाकामयाब करने के लिये चीन ने कोरोना वाइरस बनाकर हम पर हमला कर दिया। नतीजा यह निकला कि सरकार को मजबूरन ‘लाक-डाउन’ लगाना पड़ा। ‘लाक-डाउन’ में सरकार ने सभी को घर से बाहर निकलने की मुमानियत कर दी। आप समझदार हैं, इसलिये यह बताने की ज़रूरत नहीं है कि कुछ मुआमलों में हिंदुस्तानियों का दिमाग़ बड़ा ज़रख़ेज़ होता है। इसलिये ज़्यादातर जोड़ों ने ‘लाक-डाउन’ का मनमाफ़िक मतलब निकाल लिया। अब कोरोना काल की कवायद रंग ला रही है। नतीजा यह निकला है कि मोदी का आबादी पर रोकथाम का प्लान फ़ेल हो गया है और चीन की चाल कामयाब हो गई है। तमाम साइंसदानो का कयास है कि आने वाले साल की शुरुआत तक हमें अपने अस्पतालों में कोरोना के मरीज़ों के बेड्स से ज़्यादा जच्चा-बच्चा के लिये बेड्स मुहैया कराने का प्लान अभी से बना लेना चाहिये।           

           

Leave a Reply

Your email address will not be published.

5 − one =

Related Articles

Back to top button