उत्तराखंड का माता पूर्णागिरी शक्तिपीठ मंदिर, यहीं गिरी थी माता की नाभि

मां पूर्णागिरि देवी शक्तिपीठ

चर्चित किरदार “मिस्टेर बीन” निभाने वाले अंग्रेजी हास्य अभिनेता और पटकथा लेखक जारोवन सेबेस्टियन ए​टकिन्सन ने पूर्णागिरि शक्तिपीठ की खूबसूरती देखते हुए लिखा, “पूर्णागिरी के मनोरम दृश्यों की विविधता एवं प्राकृतिक सौंदर्य की महिमा अवर्णनीय है. प्रकृति ने जिस वन संपदा से इस जगह को नेमत बख्शा है, उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका का एक भी क्षेत्र शायद ही इसकी बराबरी कर सके.

-सुषमाश्री

चीन, नेपाल और ​तिब्बत की सीमाओं से घिरे सामरिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण चंपावत जिले के प्रवेश द्वार टनकपुर से 19 किलोमीटर दूर स्थित यह शक्तिपीठ मां भगवती की 108 सिद्धपीठों में से एक है. नैनीताल जनपद के पड़ोस में चंपावत जनपद के टनकपुर से मात्र 17 किलोमीटर दूर अन्नपूर्णा शिखर पर 5500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है यह पूर्णागिरी मंदिर. उत्तराखंड के टनकपुर ​स्थित पूर्णागिरी माता के मंदिर को महाकाली पीठ भी कहा जाता है. यहीं माता सती की ​नाभि गिरी थी.

तीन ओर से वनाच्छादित पर्वत शिखरों एवं प्रकृति की मनोहारी छटा के बीच कल-कल करती सात धाराओं वाली शारदा नदी के तट पर बसा टनकपुर नगर मां पूर्णागिरि के दरबार में आने वाले यात्रियों का मुख्य पड़ाव है. माता सती का नाभि अंग अन्नपूर्णा पर्वत शिखर पर गिरा, जो पूर्णागिरि नाम से विख्यात हुआ. वहीं देश के चारों दिशाओं में स्थित ​मल्लिका गिरि, कालिका गिरि, हमला गिरि व पूर्णागिरि में से इस पावन स्थल पूर्णागिरि को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है.

देवी भागवत, स्कंद पुराण और चूणामणिज्ञानाणव आदि ग्रंथों में इस प्राचीन सिद्धपीठ का भी वर्णन है, जहां एक चकोर इस सिद्धपीठ की तीन बार परिक्रमा कर राज सिंहासन पर बैठा. यहां छोटे बच्चों का मुंडन कराना सर्वश्रेष्ठ माना जाता है.

अभी कुछ समय पूर्व तक शाम होते ही यहां रूकना मना था, वहीं शाम के समय यहां से आने वाली सुमधुर संगीत ध्वनि बहुत कम व उन सिद्ध लोगों को ही सुनाई देती थी, जो यहां शाम के समय मौजूद रह जाते थे. हालांकि उनके लिए भी इस संगीत स्थान तक पहुंचना नामुमिकन था.

पूर्णागिरी में माता का दरबार

कहते हैं कि प्रजापति दक्ष की कन्या और शिव की अर्धांगिनी सती की नाभि विष्णुचक्र से कटकर यहीं पर गिरी थी. प्रतिवर्ष इस शक्तिपीठ की यात्रा करने के लिए हजारों श्रद्धालु यहां कष्ट सहकर आते हैं. मां वैष्णो देवी जम्मू के दरबार की तरह पूर्णागिरी दरबार में भी हर साल लाखों की संख्या में लोग माता के दर्शनों को पहुंचते हैं.

यहां पहुंचने का रास्ता अत्यंत दुरुह और खतरनाक है. नीचे काली नदी का कल कल करता जल इस स्थान की दुरुहता से हृदय में कंपन पैदा कर देता है. मंदिर के र्मा में पड़ने वाले स्थान टुन्नास के बारे में ऐसी मान्यता है कि यहां देवराज इंद्र ने तपस्या की थी. यहां ऊंची चोटी पर गाड़े गए त्रिशूल आदि शक्ति के उस स्थान को दर्शाते हैं जहां माता सती की ​नाभि गिरी थी.

नैसर्गिक सौंदर्य

पूर्णागिरी इलाके की महिमा और उसके नैसर्गिक सौंदर्य की तारीफ कितने ही लोगों ने किया है. चर्चित किरदार “मिस्टेर बीन” निभाने वाले अंग्रेजी हास्य अभिनेता और पटकथा लेखक जारोवन सेबेस्टियन ए​टकिन्सन ने पूर्णागिरि शक्तिपीठ की खूबसूरती देखते हुए लिखा, “पूर्णागिरी के मनोरम दृश्यों की विविधता एवं प्राकृतिक सौंदर्य की महिमा अवर्णनीय है. प्रकृति ने जिस वन संपदा से इस जगह को नेमत बख्शा है, उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका का एक भी क्षेत्र शायद ही इसकी बराबरी कर सके. केवल मान्यता व आस्था के बल पर ही लोग इस दुर्गम घने जंगल में अपना मार्ग बना पाते हैं.

नवरात्रि पर आते हैं लाखों भक्त

यूं तो सालोंभर यहां श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता है लेकिन नवरात्रि पर यहां आने वाले भक्तों की संख्या और भी बढ़ जाती है. शरद ऋतु के बजाय चैत्र की नवरात्रि में यहां विशाल मेले का अयोजन होता है. इन दिनों माता के दर्शन के लिए यहां भक्तों की लंबी कतार लगी रहती है. यह मेला बैसाख माह के अंत तक चलता है.

बुजुर्गों के अनुसार कुछ साल पहले तक शाम होते ही यहां एक बाघ (माता की सवारी) आता था, जो माता के मंदिर के पास ही सवेरे तक रुकता. इस कारण उन दिनों में लोग शाम होते ही यह स्थान खाली कर देते थे. अभी भी रात में यहां जाना वर्जित माना जाता है. मान्यता है कि यहां रात के समय केवल देवता ही आते हैं.

यहां वृक्ष नहीं काटे जाते

महाकाली का यह पीठ नेपाल के करीब स्थित है. जिस चोटी पर माता सती की नाभि गिरी थी, उस क्षेत्र के वृक्ष नहीं काटे जाते. टनकपुर के बाद ठुलीगढ़ तब बसें जाती हैं. उसके बाद घासी की चढ़ाई चढ़ने के बाद ही श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं.

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इस देवी दरबार की गणना भारत की 51 शक्तिपीठों में की जाती है. शिवपुराण रूद्र संहिता के अनुसार, दक्ष प्रजापति की कन्या सती का विवाह भगवान शिव के साथ किया गया था. एक समय दक्ष प्रजा​पति द्वारा यज्ञ का आयोजन किया गया जिसमें समस्त देवी देवताओं को आमंत्रित किया गया परंतु शिव शंकर का अपमान करने की दृष्टि से उन्हें आमंत्रित नहीं किया गया.

क्या हैं कहानियां

सती के लिए अपने पति भगवान शिव शंकर का अपमान सहन कर पाना मुश्किल हो गया और उन्होंने उसी यज्ञ मंडप में अपनी आहुति दे दी. सती की जली हुई देह लेकर भगवान शंकर आकाश में विचरण करने लगे. फिर क्रोधित होकर भगवन तांडव करने लगे. तांडव देखकर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन की मदद से भगवान शिव की गोद में रखी माता सती के शरीर के कई टुकड़े कर दिए जिससे माता के अंग अलग अलग जगह पर जाकर गिर गए. जहां-जहां माता सती के अंग गिरे, वहां वहां शक्तिपीठ स्थापित हो गए. पूर्णागिरी में माता सती की नाभि गिरी इसलिए यहां माता की नाभि के दर्शन और पूजन के लिए लोग पहुंचते हैं.

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पूर्णागिरी मैया के इस धाम तक पहुंचने के लिए टनकपुर नजदीकी रेलवे स्टेशन है. इसके अलावा बरेली से टनकपुर के लिए बसें उपलब्ध हैं. टनकपुर टैक्सी स्टेंड से पूर्णागिरी धाम के लिए दिन भर टैक्सी, बसों की सेवा उपलब्ध रहती है. टनकपुर से पूर्णागिरी धाम की दूरी 22 किलोमीटर है.

पूर्णागिरि शक्तिपीठ के दर्शन के लिए यात्रियों की संख्या सालभर में 25 लाख से ज्यादा होती है. यहां आने के लिए सड़क या रेल मार्ग का इस्तेमाल कर सकते हैं. वायु मार्ग से आने के लिए यहां का निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर है. यहां सर्दी के मौसम में गर्म कपड़े जरूरी हैं. ग्रीष्म ऋतु में भी यहां आने के लिए आपको हल्के ऊनी कपड़ों की जरूरत पड़ सकती है.

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