लॉक डाउन से अमीर और गरीब की विभाजन रेखा ज्यादा स्पष्ट
पुष्पराज , पटना से
कोरोना की महामारी से भारतवासियों की प्राण रक्षा के लिए भारत सरकार ने 24 मार्च 2020 से देश में लॉकडाउन घोषित किया .भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि संपूर्ण राष्ट्र को एक साथ ठप कर दिया गया हो .गुलाम भारत में भी 1857 के ग़दर से लेकर स्वतंत्रता संग्राम के बड़े –बड़े संघर्षों की जन –सहभागिता को रोकने के लिए संपूर्ण राष्ट्र में कभी इस तरह का लॉकडाउन नहीं लाया गया था .किसी स्थल विशेष पर किसी दंगे ,जनसंहार व युद्ध को रोकने के लिए सरकारों ने कर्फ्यू लागू किए .1919 में जलियाँवाला बाग़ जनसंहार के बाद उभरे जनाक्रोश को जबरन रोकने के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने ‘मार्शल लॉ ‘लागू किया था पर यह मार्शल लौ पंजाब से लाहौर तक ही सीमित था .कोरोना की वैश्विक आपदा से भारतवासियों की जान बचाने के नाम पर घोषित लॉकडाउन भारत के मेहनतकश श्रमिक ,बेरोजगारों ,छात्रों ,किसानों के लिए डिजास्टर साबित हो रहा है पर वैधानिक समस्या यह है कि कोरोना से रक्षार्थ महामारी को आपदा घोषित करने वाली भारतीय हुकूमत ने लॉकडाउन की वजह से निर्मित आपदा को आपदा मानकर क्षतिपूर्ति की जिम्मेवारी स्वीकार नहीं की है .
जुमला है –‘सर मुड़ाते ही ओले पड़े हैं ‘.24 मार्च से घोषित लॉकडाउन के बाद भारत की 70 फ़ीसदी आबादी के साथ जिस तरह से गुजर रहा है .लोगबाग मानते हैं कि अब कि बिना सर मुड़ाए ही सर पर ओले गिरे हैं .फर्क यह है कि ये ओले बर्फीले होने की बजाय अग्नि पुंज की तरह ज्वलनशील हैं.जिससे कमजोर ,मेहनतकश और आम लोगों की जिन्दगी लगभग बर्बाद हो चुकी है .मैंने भारत के अलग –अलग हिस्सों में आदिवासियों ,दलितों ,किसानों के जनांदोलन व जनांदोलनों पर दमन को लिखते हुए कभी ऐसा दृश्य नहीं देखा था कि दिल्ली ,मुम्बई ,विजयवाडा ,सूरत से लेकर देश के अलग –अलग हिस्सों में लोग भूख से छटपटाते रहे .वे भूख से तड़पते हुए प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री ,जिलाधिकारी के पास फोन करते रहे . निराशा-हताशा की स्थिति में सैकड़ों मजदूरों ने मेरे पास भी फोन किए और उस सामूहिक भूख की आग में हम लगातार सुलगते रहे .
विश्व स्वास्थ्य संगठन के जिस गाईडलाईन को लॉक डाउन की वजह बताया गया ,यह पूरी तरह से सत्य नहीं है इसलिए कि विश्व स्वास्थ्य संगठन एक एड्भायजरी बॉडी है न कि रूलिंग बॉडी .विश्व स्वास्थ्य संगठन के हर सलाह का हुबहू अनुसरण करना किसी देश की बाध्यता नहीं हो सकती है .विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा निर्देशों के आधार पर भारत में स्वास्थ्य सेवा को इतना मजबूत करना था कि केरल की तरह कोरोना विजय का संपूर्ण भारत में एक रिकार्ड कायम होता .
भारतवासियों ने लॉकडाउन में मरते हुए जीने का नया अर्थ जाना .कर्फ्यू में जीने के लिए अभ्यस्त कश्मीरियों ने कर्फ्यू से ज्यादा भयावह कर्फ्यू को लॉक डाउन की तरह जाना .बिहार ,उत्तर प्रदेश ,दिल्ली जैसे राज्यों के नागरिकों ने बंदूक वाले पुलिसकर्मियों को स्वास्थ्यकर्मी की भूमिका में स्वीकार किया .
जामिया और जेएनयू में दिल्ली पुलिस ने गृह मंत्रालय के निर्देश से कुछ माह पूर्व छात्रों पर दमन का जो इतिहास रचा था .उस इतिहास को इस लॉक डाउन डिजास्टर के दौरान उत्तर भारत की पुलिस ने विस्तार दिया . दिल्ली ,सूरत ,मुम्बई जैसे 11 बड़े महानगरों में लॉक डाउन के बाद करोड़ों श्रमिकों के सामने भोजन व आवास की समस्या उत्पन्न हुई .बिहार के श्रमिकों की सहायता से दिल्ली में सत्ता हासिल करने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री ने दिल्ली के मध्यम वर्ग व रिहायशी मनुष्यों की हिफाजत के लिए मेहनतकश मजदूरों को दिल्ली से भागने के लिए मजबूर किया .भारत का पढ़ा –लिखा शिक्षित वर्ग लॉक डाउन को क़ानूनी हिदायत व प्राण रक्षा की जरूरी शर्त मानकर सहर्ष घरों में बंद होने लिए के लिए सहमत हुआ पर मेहनतकश श्रमिक वर्ग के अंदर भूख और रोटी की तड़प से जो भयावह हालात उत्पन्न हुए श्रमिकों ने हजारों किलोमीटर की पद यात्रा शुरू कर दी.सैकड़ों –हजारों मजदूरों का काफिला महानगरों से गाँव की तरफ शुरू हुआ तो यह पद यात्रा पूरे अप्रैल माह तक जारी रही .पुलिस के डंडे ,पुलिस की यातनाओं को सहते हुए ,कोलतार की तप्त सड़कों पर हजारों ,लाखों ,करोड़ों लोग पसीने व आँसू बहाते हुए आगे बढ़ते रहे .रेलें बंद थी तो जिन पटरियों पर रेलें दौड़ती थी ,उन पटरियों पर मनुष्यों के पाँव दौड़ने लगे . सोशल डीस्टेंसिंग थ्योरी का पालन करने की वजह से इन श्रमिकों को राहों में ना ही सरकार ने रोटी –पानी उपलब्ध कराया ,ना ही अतिथि देवो भव वाले राष्ट्र में आम लोगों ने पूरे एक माह रोटी –पानी देने की हिम्मत जुटाई .प्रधानमंत्री जी के निर्देश से जब लोग घरों में बंद हों तो वे सडक से गुजरते भूखे –प्यासों की भीड़ को खाना खिलाकर कोरोना के संक्रमण के शिकार नहीं होना चाहते थे .
लॉकडाउन की तबाही से देश हिल गया . करोड़ो श्रमिक हजारों किलोमीटर की यात्रा करते हुए परदेश से देस पहुँचे .महाराष्ट्र के औरंगाबाद में रेल की पटरी पर दौड़ते हुए 16 श्रमिक मालगाड़ी की चपेट में मारे गए तो उत्तर प्रदेश के औराई में ट्रक पर सवार 26 श्रमिक सडक दुर्घटना में मारे गए .देश के अलग –अलग हिस्सों के स्थानीय संस्करणों के अखबारों की खबरों के अनुसार कुल 667 श्रमिक महानगरों से अपने ग्राम लौटने की राह में मारे गए .
श्रमिकों की बड़ी तादाद में हुई मौत को देखते हुए प्रसिद्ध समाजशास्त्री डॉ इम्तियाज अहमद ने इसे श्रमिकों का राज्य पोषित जनसंहार कहा है .श्रमिकों का यह पलायन विभाजन के बाद का सबसे बड़ा पलायन साबित हुआ .भारत सरकार ने असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की तादाद 10 करोड़ मात्र बताई पर भारत सरकार नेशनल सैंपल सर्वे 2009 -10 के अनुसार भारत में 40.7 करोड़ असंगठित क्षेत्र के कामगार कार्यरत हैं .
बारह करोड़ से अधिक बेरोज़गार
सेन्टर फॉर मौनिटरिंग इन्डियन इकॉनोमी [सीएमआईइ] की रिपोर्ट के अनुसार लॉक डाउन की वजह से भारत में 12.20 करोड़ लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा है . केंद्र व राज्य सरकारों के श्रमिकों ,छात्रों ,बेरोजगारों ,किसानों के प्रति संवेदनशील ना होने की वजह से भोजन के अभाव और किराए के घरों का किराया चुकता करने की समस्याओं ने इस वर्ग के ऊपर जैसे कहर ढा दिया .
हरियाणा व पंजाब के किसानों के खेतों से सही समय पर गेहूं खरीद ना होने की वजह से हजारों हजार टन गेहूं के खेतों में सड़ने की खबर मिली है .दिल्ली से लेकर अन्य महानगरों ,नगरों में सुदूर राज्यों से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में छात्रों के समक्ष भी भुखमरी के हालात उत्पन्न हुए .दिल्ली में कोचिंग संस्थानों और सामाजिक सहयोग से छात्रों को भोजन उपलब्ध कराए गए.कोटा में बिहार और यूपी के छात्र –छात्राओं ने घर वापसी के लिए आन्दोलन किए .बिहार के श्रमिकों को बिहार प्रवेश न करने देने की चेतावनी देने वाले बिहार के मुख्यमंत्री ने कोटा से छात्रों को बिहार न आने देने की धमकी दी .बिहार के बुद्धिजीवियों का एक बड़ा समूह छात्रों को कोटा से बिहार ना आने देने के पक्ष में नीतीश कुमार के समर्थन में खड़ा हो गया .जब भारतीय रेल ने श्रमिकों की घर वापसी के लिए विशेष रेल चलाने कला फैसला लिया तो शुरू के एक सप्ताह तक केंद्र सरकार और बिहार सरकार इस बात पर अडे रहे कि श्रमिकों को अपने किराए खुद वहन करने पड़े .
जब मीडिया से ख़बरें आई कि जेब में पैसे ना हो पाने की वजह से सैकड़ों –हजारों श्रमिक टिकट नहीं कटा पाने की वजह से रेल में प्रवेश नहीं कर पाए और रेल में सीटें खाली रह गई .लॉक डाउन की वजह से महीने से ज्यादा समय से भुखमरी के शिकार मजदूरों की मुफ्त रेल यात्रा के लिए केंद्र व राज्य सरकारों ने जब पैसों का अभाव बताया तो कांग्रेस ने देश भर के श्रमिकों की घर वापसी के लिए रेल खर्च वहन करने की घोषणा की .श्रमिकों की घर वापसी का श्रेय कांग्रेस के हिस्से से रोकने के लिए राज्य सरकारों से अपने –अपने प्रदेश के श्रमिकों का खर्च वहन करने का फैसला लिया .16 मई को सूरत से सीवान के लिए खुली ट्रेन राउरकेला से बंगलुरू होते हुए 9 दिन बाद सीवान पहुंची .71 श्रमिक ट्रेनें अपना रास्ता भटक गई.रेल बोर्ड ने रेल भटकने की खबर को फेक न्यूज कहा लेकिन स्वीकार किया कि 71 ट्रेनों को रूट बिजी होने की वजह से रूट डाईवर्ट करना पड़ा . 2 दिन का सफ़र 5 दिन ,7 दिन, 9 दिन में पूरा करने की वजह से रेल के भीतर एक दिन में 7 श्रमिक भूख –प्यास से तड़प कर मरे .अब तक श्रमिक एक्सप्रेस में सफ़र करते हुए 80 श्रमिकों की अकाल मौत हुई है .
रंगकर्मियों ,कलाकारों ,चित्रकारों के समक्ष मजदूरों की तरह ही भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गई है .पटना के रंगकर्मियों ने प्रेमचंद रंगशाला में लॉक डाउन की वजह से उत्पन्न कलाकारों की तंगहाली के खिलाफ प्रदर्शन किया है .दिल्ली के कलाकारों को स्मिता थिएटर के प्रयास से राहत का इंतजाम किया जा रहा है.
रेल मंत्रालय ने प्रेस वक्तव्य में बताया है कि मई माह में देश के 11 महानगरों से कुल 52 लाख श्रमिकों को अपने घर पहुंचाया गया है .इनमें 80 फ़ीसदी श्रमिक बिहार और उत्तर प्रदेश के हैं .भारतीय रेल के इतिहास में यह पहली घटना है ,जब रेलें पटरी पर दौड़ते हुए भटकती रही .सवाल यह है कि राजधानी एक्सप्रेस क्यों नहीं भटक गई .क्या श्रमिक उपेक्षित ,त्याज्य व निस्पृह हैं इसलिए श्रमिक एक्सप्रेसों का भटक जाना और भटकती हुई ट्रेनों में श्रमिकों का संहार भारतीय हुकूमत को शर्मसार नहीं करता है .करोड़ों श्रमिकों ने लॉक डाउन का उल्लंघन कर जिस तरह हजारों किलोमीटर की पद यात्रा की . इस दृश्य ने भारत में अमीर और गरीब की विभाजन रेखा को ज्यादा स्पष्ट कर दिया है .
भारतीय राज्यसत्ता के खिलाफ उभरे करोड़ों मजदूरों का असंतोष विद्रोह में परिणत हो सकता था पर भारतीय बुद्धिजीवियों ने सेफ्टी वाल्व बनकर राज्यसत्ता की हिफाजत की है .