ज़िन्दगी से मौत फिर आगे निकल जाती है क्यूं

“ये सुना था मौत पीछा कर रही है हर घड़ी
ज़िन्दगी से मौत फिर आगे निकल जाती है क्यूं

कुंवर बेचैन का यह सवाल अनुत्तरित ही रह गया और आज मौत से वे पिछड़ गए। पिछले दिनो वे सोशल मीडिया पर कुमार विश्वास के ट्वीट से चर्चा में तब आए जब उनको वेंटिलेटर नहीं मिल पा रहा था और कैलाश हॉस्पिटल के मालिक पूर्व मंत्री तथा वर्तमान सांसद नॉएडा उस ट्वीट के जवाब में उन्हें अपने यहाँ ले आए और सभी सुविधाएँ उपलब्ध कराए परंतु सभी कुछ के बाद भी मौत आगे निकल ही गयी। सवाल अनुत्तरित ही रह गया।
नॉएडा के इसी कैलाश अस्पताल से सटी बाउंड्री से होशियार सिंह बलवारिया का मकान है। वे १९७६ बैच के IPS थे। मेरे नैनीताल शाहजहाँपुर और बरेली के एसएसपी की तैनाती के दौरान DIG रेंज थे। नॉएडा में मेरे प्रत्येक कार्यक्रमों में सपरिवार आते थे। इस वर्ष २७ फ़रवरी को शायर और मित्र वसीम बरेलवी के साथ लंच पर कुछ लोंगो को मैंने बुलाया था। मुख्यतः जिनका बरेली से नाता था। बैचमेट निर्मल कौर भी सतीश शर्मा की बेटी की शादी से लौट कर मेरे यहाँ ही रुकी थी। वे और मेरी छोटी बहु होस्ट थीं। मेरी पत्नी गाँव पर ही थी।
बलवारिया साहब इस बार आने में असमर्थता व्यक्त किए। उनके गुरुजी का आपरेशन हुआ था। वे उनकी तामीर दारी छोड़ कर नहीं आ सकते थे। यह उनसे मेरी आख़िरी बात चीत थी। पिछले दिनो तबियत कुछ ख़राब थी। नॉएडा की हवा से डर लग रहा था। ऑक्सिजन के साथ राम नगर, नैनीताल चले गए। वहाँ बेटे का बहुत सुंदर रिज़ॉर्ट है। बताते हैं ऑक्सिजन हटा कर बाथरूम गए और साँस पूरी हो गयी। कैलाश अस्पताल के पड़ोसी के नाते आवश्यकता पर मदद का भरोसा था। परंतु मौत राम नगर तक पीछा करते हुए ज़िंदगी से आगे निकल ही गयी। सवाल अनुत्तरित ही रह गया।
वसीम बरेलवी ने इस लंच पर कश्मीर सिंह (IPS ७८ )के आग्रह पर कई शेर और ग़ज़ल सुनाए। वह भी “ वसूलों पर जब आँच आए टकराना ज़रूरी है “ तथा उसी ग़ज़ल का शेर “ थके हारे परिंदे जब बसेरे को लौटें,सलीके मंद शाख़ों का लचक जाना ज़रूरी है “ ।वसीम साहब ने कभी कहा था कि यदि लोग इस शेर को अपने बेड रूम में टाँग दे तो आधे से ज़्यादा झगड़े बंद हो जायँ। मेरे बच्चों ने इसको थोड़ा सुधार कर अपने बचाव में काफ़ी उपयोग किया था। “ थके हारे बच्चे जब घर को लौटें, सलीके मंद माँओं का लचक जाना ज़रूरी है” माँ को सलिकेदार साबित होने के लिए लचकना पड़ता ही था।
इसी बातचीत में यह बात भी आयी की पिछले प्लेग की महामारी की तुलना में कोविड कुछ नहीं है जब लोग एक कफ़न के बजाय थान ख़रीद कर लाते थे कि बार बार कौन ख़रीदने जाएगा। परंतु अब तो कोविड की मौतें उससे आगे निकल गयीं। कुंवर बेचैन का सवाल अनुत्तरित ही रह जा रहा है।

दीपक त्रिवेदी


आज दीपक त्रिवेदी के ज़िंदगी को भी पीछे छोड़ दिया इसने। वे राजस्व परिषद के साथ उत्तर प्रदेश आईएएस अशोसीयसन के भी अध्यक्ष थे। दो दिन बाद सेवा निवृत्ति थी। पीजीआई लखनऊ में उनके भर्ती होने में परेशानी को ले कर सोशल मीडिया पर एक विडीओ भी वाइरल हुआ था। त्रिवेदी जी के काफ़ी निकट सम्बंध अपने कानपुर के मित्र अवधेश मिश्रा (बड़े भैया) से थे। दोनो समधी के रिश्ते में बंधने वाले थे। उन्होंने विडीओ को ग़लत बताते हुए हल्के संक्रमण की ही बात बताई थी। एक दो दिन हाल चाल लेता रहा। ठीक चल रहा था तो सोचा कुछ दिनो की बात है। वापस आ जाएँगे तो त्रिवेदी जी से ही हाल चाल कर लूँगा। वह अब नहीं हो पाएगा। उन्होंने मेरे गाँव के ख़ारिज दाखिल के मामले में ज़िले के अधिकारियों से कह कर बहुत मदद करायी थी। अवधेश मिश्रा से बात हुई। वे पीजीआई में ही अंतिम संस्कार को ले जाने की तैयारी में थे।
अधिकांश लोंगो के लिए पूरी व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है। जिनके लिए बची भी है वे भी नहीं बच पा रहे है। जीवन से बहुत ज़्यादा रफ़्तार से मौत आगे निकलती जा रही है। केवल कुंवर बेचैन के ही नहीं हर वर्ग और हर तबके के प्रश्न अनुत्तरित रह जा रहे हैं। रहबर और आमजन सबके।
राम नारायण सिंह

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