रात हुई है सुबह सवेरे ******************

बिलख रहे हैं श्रमिक देवता

रात हुई है सुबह सवेरे
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आंख के आंसू सूख गए,
पेट में हलचल नहीं बची।
पांव में छाले शोर मचाएं,
ऐसी दिखती सभी गली।

ओझल दुनिया से उम्मीदें,
रात हुई है सुबह सवेरे।
मौत की गठरी बांध पीठ पर,
पर चला मुसाफिर धीरे धीरे।

कांधे पर हैं मुन्ना मुन्नी,
स्वाभिमान झकझोर दे।
संग खड़ी थी अपनी प्यारी,
कैसे बंधन तोड़ दें।

निष्ठुर जग है, मौत है दाता,
चले राह पर तीरे तीरे।
मौत की गठरी बांध पीठ पर,
चला मुसाफिर धीरे धीरे।

भरी धूप में खड़ी दुपहरी,
खाक कहां वो छान रहा है।
भूखे प्यासे सड़क किनारे,
गिर कर सपने फांक रहा है।

बिलख रहे हैं श्रमिक देवता
जाने किसने गढ़ी लकीरें।
मौत की गठरी बांध पीठ पर,
चला मुसाफिर धीरे धीरे।

उर्वशी उपाध्याय’प्रेरणा’

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