ग्राम स्वराज्य की असली वाहक खादी ही है – आचार्य विनोबा
” देश के स्वराज्य के लिए खादी जितनी अनिवार्य थी, उतनी ही वह ग्राम- स्वराज्य के लिए भी है। ” यह संदेश था सर्वोदय समाज के संस्थापक आचार्य विनोबा भावे का। विनोबा जिन्होंने कताई -बुनाई और खादी प्रसार को अपने जीवन का एक साध्य बनाया था।
उन्होंने कहा, ” जिस तरह लोकमान्य ने कहा था कि ‘ स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध हक है, ‘ वैसे ही ‘ ग्राम – स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध हक है ‘, यह कहें, तभी खादी चलेगी। ग्राम – स्वराज्य खादी के लिए बुनियाद है। ” ‘ खादी – हमारा बगावत का झण्डा ‘ पुस्तक में विनोबा के खादी के प्रति उनके विचार संकलित हैं जो उन्होंने विभिन्न अवसरों पर व्यक्त किये।
विनोबा खादी को सर्वोदय-समाज और स्वराज्य -शक्ति का सबसे असरदार साधन मानते थे। विनोबा ने देश की प्रगति और लोक -कल्याण के लिए खादी एवं ग्रामोघोग के गांधीजी के दिखाये पथ को सबसे सुगम रास्ता माना।*विनोबा ने कहा*, ‘ चरखा अहिंसा का प्रतीक है। जितना अहिंसा का विचार समाज में फैलेगा, उतना ही चरखे का विचार भी फैलेगा।
विनोबा ने ‘ *ग्रामाभिमुख खादी*’ का स्वप्न देखा था। उन्होंने कहा था – ‘ गांवों की रचना ग्रामोघोग -मूलक होनी चाहिए। खादी, ग्रामदान और शांति सेना यह त्रिविध कार्यक्रम हर एक का होना चाहिए। ‘”
*खादी का अर्थ है गरीबों से एकरूपता, मानवता की दीक्षा, आत्मनिष्ठा का चिन्ह।यह सम्प्रदाय नहीं है, मानवता का हृदय है।* इसलिए पुराने सांप्रदायिक चिन्हों में से जिस तरह आगे दुष्परिणाम निकले, वैसे खादी में से निकलने का भय नहीं है। और जीवन मे परिवर्तन करने का सामर्थ्य तो उसमें अद्भुत है। हमारी पोशाक, हमारे सूत की बनाना स्वाभिमान की चीज है। यह समझकर जो खादी बनायेगा उस पर किसी की भी सत्ता नहीं चलेगी।
“विनोबा ने कहा, ‘ मैं किसी का गुलाम नहीं रहूंगा और न किसी को गुलाम बनाऊंगा। ‘ इस प्रतिज्ञा की प्रतीक खादी है। विनोबा ने कहा, ” स्वातंत्र्य-पूर्वकाल में खादी को बतौर ‘ आजादी की वर्दी ‘ की प्रतिष्ठा मिली। लेकिन उसका असली कार्य तो ग्राम -संकल्प द्वारा ग्राम -स्वावलम्बन सिद्ध कर ग्राम स्वराज्य की ओर बढ़ना है।
खादी वस्त्र – स्वावलम्बन का मार्ग
उन्होंने कहा,” सारा गांव खादी की दृष्टि से स्वावलंबी बन जाये, ऐसा प्रयत्न करना चाहिए। गांव में ही बुनाई की व्यवस्था होनी चाहिए। “*विनोबा खादी को खेती की सहचरी मानते थे।* उन्होंने कहा, ” खादी को खेती की सहचरी समझकर उसे किसान के जीवन का अविभाज्य अंग बनाना, यह है खादी का मूलाधार। “और, ” कोल्हू, गाय, अन्न, चरखे, करघे, बुनाई, सिलाई, रंगाई, सभी काम गांव में होने चाहिए। “विनोबा कहते थे – ‘ *चरखे को मैं वस्त्रपूर्णा देवी कहता हूँ। खेती अन्नपूर्णा है।* ‘उन्होंने कहा, ” खादी शरीर पर आती है, तो चित्त में फर्क पड़ता है। हमने क्रांति को पहना है, ऐसी भावना होती है। बाजार में आम तो बिकता ही है, लेकिन हमने बीज बोया, पानी दिया, परिश्रम किया, तो वृक्ष का फल लगा। वह आम अधिक मीठा लगता है। अपने परिश्रम का कपड़ा तैयार होगा तो ऐसी ही खुशी होगी। हमारा अनुभव है कि बच्चों में इससे इतना उत्साह आता है कि उसका वर्णन नहीं कर सकते। ”
विनोबा ने खादी को सद्भावना का प्रतीक बताया, और कहा – ” लाखों लोग खद्दर पहनने वाले हो जायें, तो उससे जो एक सद्भावना पैदा होगी, उसका तो और ही मूल्य है। उनके हृदय में जो सद्भावना पैदा होगी, उसका परिणाम उनके बाल-बच्चों पर भी होगा और भारत में धर्म-भावना बढ़ेगी, जिसका मूल्य पैसे से आंका ही नहीं जा सकता। वह इतनी भव्य वस्तु होगी, जिसका कोई मूल्य ही नहीं।
” विनोबा ने कहा, ” *ग्राम स्वराज्य का विचार हमारा मूलभूत विचार है, और उसका एक अंग है खादी*। जो स्वराज्य हमने हासिल किया, खादी का संबंध उसकी अपेक्षा ग्राम स्वराज्य के साथ अधिक है। “विनोबा ने कहा, ” *खादी के बिना ग्राम स्वराज्य नहीं हो सकता। खादी का यह जो मूल्य है, वह काल्पनिक नहीं है*। “विनोबा ने ग्राम शक्ति का बोध कराते हुए कहा,” यह जो ग्राम शक्ति है, वह भारत की अपनी शक्ति है। अनेक आक्रमणों के बावजूद भारत आज जो टिका हुआ है, वह इसी ग्राम -शक्ति के कारण।
ध्यान रखने की बात है कि भारत की संस्कृति की रक्षा जिन प्रयोगों ने की, उनमें ग्राम ही आधार रहे हैं। इसलिए मुझे विश्वास है कि हिंदुस्तान के गांव -गांव में खादी हो सकती है। ” बाबा विनोबा का मानना था *जो काते सो पहने जो पहने सो काते* खादी घर घर पहुंचे इसके प्रयास हर स्तर पर होना चाहिए ।खादी की संस्थाएं इसी प्रकार का संकल्प लें ताकि गांधी – विनोबा के सपनों का ग्रामस्वराज्य स्वतंत्र भारत में स्थापित हो सके ।
प्रस्तुति : विनोबा विचार प्रवाह के लिए,
रमेश भइया ,
विनोबा सेवा आश्रम शाहजहाँपुर