केशवानंद भारती का 79 वर्ष की आयु में निधन

मीडिया स्वराज़ डेस्क। संत केशवानंद भारती का रविवार को तड़के 79 साल की उम्र में निधन हो गया।

भारत के संवैधानिक इतिहास में उनकी पहचान संविधान के मूल ढांचे का सिद्धांत दिलाने वाले के रूप में है।

केरल निवासी संत केशवानंद भारती श्रीपदगवरु का इदानीर मठ में बुढ़ापे की बीमारियों की वजह से निधन हुआ। 

उनका निधन केरल के कासागोड़ जिले में एडानीर स्थित आश्रम में आज सुबह हुआ।

संत भारती जी ने केरल भूमि सुधार कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

तेरह जजों की फ़ुल बेंच ने लम्बी सुनवाई के बाद “ संविधान के मूल ढांचे” का सिद्धांत दिया।

केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामले पर 68 दिन तक सुनवाई हुई थी।

केशवानन्द भारती की ओर से मशहूर वकील नानी पालकीवाला पेश हुए थे।

सुप्रीम कोर्ट  में सबसे अधिक समय तक किसी मुकदमे पर चली सुनवाई का रिकार्ड अभी तक इसे है।

सुनवाई 31 अक्टूबर 1972 को शुरू हुई और 23 मार्च 1973 को ख़त्म हुई। 

चौबीस अप्रैल, 1973 को सुप्रीम कोर्ट ने 7:6 के बहुमत के आधार पर फैसला सुनाया था।

भारतीय संवैधानिक कानून में इस मामले की सबसे अधिक चर्चा होती है।

मद्रास हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश के चंद्रू ने कहा, ‘‘केशवानंद भारती मामले का महत्व इसपर आए फैसले की वजह से है।

इसके मुताबिक संविधान में संशोधन किया जा सकता है लेकिन इसके मूल ढांचे में नहीं।’’

विकीपीडिया के अनुसार मूल ढाँचा

संविधान सरंचना के कुछ प्रमुख मूलभूत तत्व जिनमे अनुछेद 368 के तहत संसोधन नही किया जा सकता है निम्नलिखित है

1 संविधान की सर्वोच्चता

2 विधायिका,कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के बीच शक्ति का बंटवारा

3 गणराज्यात्मक एवं लोकतांत्रिक स्वरूप वाली सरकार

4 संविधान का धर्मनिरपेक्ष चरित्र

 5 राष्ट्र की एकता एवं अखण्डता

6 संसदीय प्रणाली

7 व्यक्ति की स्वतंत्रता एवं गरिमा

8 मौलिक अधिकारों और नीति निदेशक तत्वों के बीच सौहार्द और संतुलन

9 न्याय तक प्रभावकारी पहुँच

10 एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना का जनादेश

अनुच्छेद 368 में, उसको साधारण रूप से पढ़ने पर, संविधान के किसी भी भाग में संशोधन के लिए संसद की शक्ति पर कोई सीमा नहीं थी।

इस अनुच्छेद में ऐसा कुछ भी नहीं था जिससे संसद को एक नागरिक के भाषण की स्वतंत्रता या उसकी धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार छीन लेने से रोका जा सके।

अंत में 7:6 के मामूली बहुमत से यह माना गया कि संसद संविधान के किसी भी भाग में संशोधन उस हद तक ही कर सकती है जहाँ तक कि वो संसोधन संविधान के बुनियादी ढांचे और आवश्यक विशेषताओं में परिवर्तन या संशोधन नहीं करे।

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