करीमा बलूच की हत्या किसने की!
— पंकजप्रसून
20 दिसंबर रविवार को कनाडा के टोरंटो शहर के बाहरी इलाके में वाटरफ्रंट यानी तटीय नगर-भाग के पास एक महिला की लाश मिली।
वह लाश 37 वर्षीय करीमा मेहराब की थी जो करीमा बलूच के नाम से जानी जाती थीं। वे ओंटारियो झील के पास से लापता हो गई थीं। वे पाकिस्तानी मानवाधिकार कार्यकर्ता थीं। और पाकिस्तान में मानवाधिकार उल्लंघनों की मुख्य आलोचक थीं।वे पाकिस्तान के दक्षिण पश्चिम इलाके में स्थित बलूचिस्तान की आज़ादी की समर्थक थीं ।
पाकिस्तान में उन्हें इतनी धमकियां मिलती थीं कि वे सन् 2015 में वहां से भाग कर कनाडा में निर्वासित जीवन बिता रही थीं।
करीमा बलूच
बलूच के मित्र लतीफ़ जौहर का कहना है कि करीमा एक जुझारू महिला थीं और इसलिये वे आत्महत्या कदापि नहीं कर सकती हैं। निश्चित रूप से उनकी हत्या हुई है।
करीमा के पति हम्माल हैदर का भी यही अंदेशा है। वे भी बलूचिस्तान की आज़ादी की मुहिम चलाते हैं और करीमा के साथ ही कनाडा में निर्वासित जीवन बिता रहे हैं। हैदर का कहना है कि उस रविवार को भी हर रोज़ की तरह दोपहर को करीमा टोरंटो के सेंटर आइलैंड टापू की ओर घूमने गयी थीं।वे अच्छे मूड में थीं।
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लेकिन वे वापस नहीं लौटीं। पुलिस ने उन्हें ढूंढने की भरपूर कोशिश की लेकिन अगले दिन उसी टापू पर उनकी लाश मिली।
पाकिस्तान में और कनाडा में भी अज्ञात पाकिस्तानी नंबर से उन्हें जान मारने की धमकी मिलती रहती थी कि अपना रास्ता छोड़ दो। पाकिस्तान में उनके घर पर कई बार हमले हुए थे। उनके चाचा की हत्या हो गई थी।
करीमा बलूचिस्तानी छात्र संगठन आज़ाद की पहली महिला अध्यक्ष थीं। वे सन् 2006 में इस संगठन से जुड़ी थीं।उन दिनों वे तुर्बत के अट्टा शाह कालेज में पढ़ती थीं।
वे इतनी सक्रिय हो गयीं कि जब सन् 2014 में संगठन के नेता जाहिद बलूच को पाकिस्तानी सेना ने अगवा कर लिया तो संगठन ने करीमा को ही अपना अध्यक्ष चुन लिया।
सन् 2017 में जब कुछ बलूच छात्रों का अपहरण हो गया तो करीमा ने उसके लिये आई एस आई को जिम्मेदार ठहराते हुए प्रदर्शनों का नेतृत्व किया और भाषण दिये।
अब वे भी पाकिस्तानी सेना और ख़ास तौर से उसके कुख्यात आई एस आई की नज़रों में चढ़ गयीं।उधर सारी दुनिया में उनका नाम बढ़ता गया। बीबीसी ने सन्
2016 में उनका नाम संसार के100 प्रेरणा देने वाली महिलाओं में शामिल किया था।
बलूचिस्तान में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के दमन के लिये आईएसआई को जिम्मेदार ठहराते हुए उसकी जबर्दस्त आलोचना करती थीं । हाल में उन्हें धमकी मिली थी कि जल्द ही कोई तुम्हें क्रिसमस का तोहफा देगा और सबक सिखायेगा।
इस वर्ष यह ऐसी दूसरी घटना है। मार्च महीने में पत्रकार साजिद हुसैन का अपहरण हो गया था जब वे स्टॉकहोम से उप्साला जा रहे थे।
वे सन् 2012 में पाकिस्तान से भाग कर सन् 2017में स्वीडन आ गये थे और सन् 2019 में उन्हें वहां राजनीतिक शरण मिल गयी थी।
उनका कुसूर यह था कि उन्होंने अपनी औनलाइन मैगजीन बलूचिस्तानटाइम्स में आजादी के लिये संघर्ष कर रहे लोगों पर पाकिस्तानी दमन की रिपोर्ट प्रकाशित कर रहे थे।
23 अप्रैल को उनकी लाश उप्साला के बाहर फिरीस नदी के तट पर मिली थी।
करीमा और साजिद हुसैन की हत्याओं के तरीके की समानता से शक की सुई आई एस आई पर ही जा रही है।
पाकिस्तान की राष्ट्रीय असेंबली के सदस्य और पश्तून तहाफुज़ मूवमेंट के नेता मोहसिन दावार ने करीमा की हत्या की भर्त्सना की है। और करीमा को वीर बलूच महिला कहा है।
पिछले पंद्रह वर्षों से बलूचिस्तान के लोग आज़ादी के लिये संघर्ष कर रहे हैं और तरह तरह की अमानुषिक यातनाओं से गुजर रहे हैं।