जम्मू कश्मीर में लोकनायक जयप्रकाश नारायण जेपी की भूमिका
9,अगस्त1953 शेख अब्दुल्ला सत्ता से हटा दिए गए और जेल में बंद कर दिए गए। उसी समय शेख ने लोकनायक जयप्रकाश नारायण जेपी का समर्थन पाने के लिए जेपी को पत्र लिखा कि जम्मू और कश्मीर गांधी के वाद अब आप की ही ओर देख रहा है। आप को भारत की अंतरात्मा अपने में संजोकर रखी है।
जेपी को जैसे ही वह पत्र बलराज पूरी के द्वारा मिला जेपी ने देश भर घूम_ घूम कर शेख अब्दुल्ला की रिहाई बिना शर्त के लिए सभा आदि करके सरकार पर दबाव डालना शुरू कर दिया था। 1953 से 1967 तक जेपी भारत सरकार, पाकिस्तान सरकार और शेख अब्दुल्ला की सरकार यानी कश्मीर की जनता के बीच कश्मीर समस्या के समाधान के लिए सबसे शक्तिशाली व्यक्तित के रूप में उभरकर दुनिया के सामने आ गए थे।
जेपी की सभा में जगह_जगह विध्न डाले गए। देश के गद्दार जेपी को फांसी दो के नारे भी कुछ लोगो से सुनना पड़ा। परन्तु जेपी पर इसका कोई असर नही पड़ा।
अंत में मजबूर होकर मार्च 1964 में शेख अब्दुल्ला को बिना शर्त जेल से रिहा किया गया। उस समय जेपी देश की लोकप्रिय धारा के खिलाफ चल रहे थे।
जेपी ने शेख अब्दुल्ला को टेली ग्राम देकर बधाई दी और आशा व्यक्त की कि भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर सेतु का कार्य करेगा। जेपी अपनी विचारधारा पर अडिग रहे। वे जम्मू कश्मीर के बारे मे आजादी के पूर्व से अन्तिम सांस तक सोचते रहे। वे एक और महान राष्ट्रवादी थे तो दूसरी ओर मानवीय स्वतंत्रता, नैतिकता और पारदर्शिता के प्रतीक।
एशिया महाद्वीप के तीन देश भारत, पाकिस्तान और चीन के बीच युद्ध की संभावना को वे नजरंदराज नहीं करते थे। बल्कि उस युद्ध का स्थाई समाधान कश्मीर समस्या के समाधान में देखते थे। कश्मीर और जम्मू की अलग स्वायत्तता को समाधान के लिए मील का पत्थर मानते थे।
प्रस्तुति: विनोद कुमार रंजन , पटना
कृपया इसे भी देखें