कौन कहता है कि आयुर्वेद धीरे-धीरे काम करता है?

इंजेक्शन का प्रयोग आयुर्वेद की देन

डाक्टर मदन गोपाल वाजपेयी
डा मदन गोपाल वाजपेयी

​अभी कुछ दिन पूर्व किसी टीवी चैनल पर आयुर्वेद बनाम एलोपैथ विषय पर चर्चा देख रहा था जिसमें आयुर्वेद के बारे में बार बार यह कहा जा रहा था कि यह बहुत धीरे धीरे कार्य करती है, यह चिकित्सा प्राथमिक स्तर हो सकता है काम करती हो, लेकिन जहां पर तत्काल राहत की आवश्यकता पड़ती है वहाँ पर केवल एलोपैथ चिकित्सा ही कारगर होती है।आयुर्वेद का पक्ष रखने वाले वक्ता इस आरोप का यथोचित उत्तर दे पाने में असमर्थ थे। उन वक्ता महोदय का आयुर्वेद के संबंध में ज्ञान सीमित हो सकता है और समाज में भी आयुर्वेद के प्रति इसी दुराग्रह एवं दुष्प्रचार तथा आयुर्वेदचार्यों के सीमित होते जा रहे ज्ञान के कारण यही मान्यता है कि आयुर्वेद धीरे धीरे कार्य करती है, इसमें कोई आशुकारी (rapidly acting) औषधि नहीं है। लेकिन वास्तविकता इसके बिलकुल विपरीत है।

​यह बात तो सैद्धांतिक है कि आयुर्वेद का चिकित्सा क्रम केदारी कुल्या न्याय से सिद्ध होता है पर आयुर्वेद में ऐसी-ऐसी रसौषधियों का वर्णन किया गया है जो इंजेक्शन की भांति कार्य करती है। कहा भी गया है: 

अल्प मात्रापयोगित्वादरुचेरप्रसंगतः।

क्षिप्र आरोग्य दायित्वात औषधेभ्योधिको रस:॥

​अर्थात, रसौषधियाँ अल्प मात्रा में उपयोगी, रुचिपूर्वक सेवन योग्य,दीर्घकाल तक गुणयुक्त तथा शीघ्र आरोग्यप्रद होती हैं, क्षिप्र आरोग्य दायित्वात के लिए आवश्यक है कि औषधि शीघ्रातिशीघ्र रोग के अधिष्ठान तक पहुँच कर रोग को नष्ट कर दे। 

​चूंकि मुख द्वारा औषधि लेने से पाचन संस्थान में शोषित हो कर फिर रक्त में मिलने में समय लगता है अतः औषधि को सीधे और शीघ्र रक्त में पहुँचाने के उपाय खोजे गए। प्राचीन काल में इस कार्य हेतु सिर में किसी शस्त्र के द्वारा कौए के आकार का घाव बना कर वहाँ औषधि भर कर दी जाती थी जिससे वह सीधे रक्त में फ़ेल कर अपना प्रभाव शीघ्र प्रदर्शित करती थी। कालांतर में, उपाय खोजने के क्रम में सूचीभरण (injection)का प्रयोग होने लगा। 

​एक बार मैं पटना से ट्रेन द्वारा वापस आ रहा था तो मेरे बगल में बैठे एक एलोपैथ चिकित्सक से चर्चा होने लगी। चर्चा के दौरान, प्रसंगवश उन्होने कहा कि आयुर्वेद्ज्ञ तो इंजेक्शन की क्रिया जानते ही नहीं थे, वह तो एलोपैथ की देन है। तब मैंने गर्व से कहा कि आपको ज्ञात होना चाहिए कि इंजेक्शन आयुर्वेद की ही देन है। आचार्य क्षारङ्ग्धर ने लघु सूचिका भरण रस (मध्य खंड अध्याय 12) में इंजेक्शन के प्रयोग के संबंध में लिखा है:

रक्तभेषजम संपर्कता मुरछितोsपि हि जीवति” अर्थात, औषधि का रक्त का संपर्क होते ही मूर्छित व्यक्ति उठ बैठता है। आयुर्वेद के इसी सिद्धान्त पर इंजेक्शन विधि का जन्म हुआ है। रस रत्न समुच्चय में मूर्छा, सन्यास,सर्पविष, सन्निपात की आपातकालीन स्थितियों में सूचीवेध क्रिया (injection) द्वारा औषधि को शरीर में पहुँचाने का निर्देश दिया गया है :

दापयेत्सुचिकाग्रेण सर्वेषां सन्निपातम।

सूच्यग्रेण दातव्यम पयः पेटी जलेन च॥

​उपर्युक्त कथन में औषधि को पयपेटी (सिरिन्ज) में भरकर सुई की नोक से शिरा में पहुंचाने का स्पष्ट विधान बताया गया है। तो फिर प्रश्न यह उठता है कि यह भ्रांति कैसे उत्पन्न हुई कि इंजेक्शन क्रिया एलोपैथ की देन है और आयुर्वेद की औषधियाँ धीरे धीरे कार्य करती हैं। 

​वास्तव में, यह एक स्थापित तथ्य है कि किसी में भी कितनी भी शक्ति अंतर्निहित क्यों न हो, यदि वह सक्रिय और प्रगति के पथ पर अग्रसर नहीं होता तो वह क्रमशः नष्ट हो जाता है। यही आयुर्वेद के साथ हुआ और हो रहा है। मैं यह बात न केवल दावे के साथ कहता हूँ बल्कि गत 30 वर्षों से प्रमाणित भी कर रहा हूँ कि आयुर्वेद वह चिकित्सा विज्ञान है जिसके मौलिक सिद्धांतों के आधार पर चिकित्सा करने पर साध्यासाध्य रोगों पर विजय प्राप्त की जा सकती है। 

आचार्य डॉ0 मदन गोपाल वाजपेयीबी0ए0 एम0 एस0पी0 जीइन पंचकर्मा,  विद्यावारिधि (आयुर्वेद)एन0डी0साहित्यायुर्वेदरत्नएम0ए0(संस्कृत) एम0ए0(दर्शन)एल-एल0बी0।

संपादक- चिकित्सा पल्लव

पूर्व उपाध्यक्ष भारतीय चिकित्सा परिषद् उ0 प्र0

संस्थापक आयुष ग्राम ट्रस्ट चित्रकूटधाम।

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