स्वदेशी कोरोना वैक्सीन -कोवाक्सिन में हड़बड़ी सवालों के घेरे में

डा चन्द्रविजय चतुर्वेदी ,प्रयागराज

चंद्र विजय चतुर्वेदी

आईसीएमआर ,भारतीय चिकित्सा अनुसन्धान की सर्वोच्च संस्था के महानिदेशक डा बलराम भार्गव ने जिस आत्मविश्वास के साथ यह घोषणा की है कि स्वदेशी कोरोना वैक्सीन -कोवाक्सिन ,15 अगस्त 2020 ,स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर देश के जनस्वास्थ के लिए उपलब्ध हो जाएगी ,इससे देश ने राहत की साँस ली है। डा भार्गव सहित इस परियोजना के सभी वैज्ञानिक साधुवाद के पात्र हैं।लेकिन वह जो हड़बड़ी दिखा रहे हैं उस पर विज्ञान जगत में कई महत्वपूर्ण सवाल उठाए जा रहे हैं .

महानिदेशक डा भार्गव ने अपने 2 जुलाई 2020 के पत्र में इस सफलता के लिए अपने साथियों को बधाई देने के साथ ही आवाहन किया है कि इस स्वदेशी कोविड 19 वैक्सीन –BBV 152 कोविड वैक्सीन के चिकित्सीय परिक्षण में भी आईसीएमआर की सहभागिताभारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड के साथ रहेगी।

भारत द्वारा विकसित किया जा रहा यह पहला स्वदेशी वैक्सीन है जिसके प्रोजेक्ट पर उच्च प्राथमिकता से अनुसन्धान किया गया इसे सरकारी स्तर पर भी उच्च प्राथमिकता से मॉनिटर भी किया गया। वैक्सीन की व्युत्पत्ति सार्स कोविड -2 जिसके आइसोलेशन में नेशनल इंस्टीट्यूट आफ वायरोलॉजी की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। डा भार्गव ने आवाहन किया है की आइसीएमआर ,भारत बायोटेक ,और यन आई वी तीनो संस्थाएं प्राणप्रण के साथ संयुक्त रूप से इस वैक्सीन के प्री क्लिनिकल और क्लिनिकल विकास हेतु कृतसंकल्प हों जिससे जन स्वास्थ्य के लिए इसे 15 अगस्त तक उपलब्ध कराया जा सके। आईसीएमआर ने निर्देशित किया है की आवश्यक चिकत्सीय परिक्षण सुनिश्चित किये जाएँ जिससे यह वैक्सीन सुरक्षित ,प्रतिरोधक क्षमतापूर्ण और सुरक्षित हो। इस वैक्सीन का चिकित्सीय परिक्षण पूरे भारत के अस्पतालों में चल रहा है। वैज्ञानिकों को विश्वास है कि वे अपने मिशन में शतप्रतिशत सफल होंगे।

यह मिशन भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठामूलक भी है। पूरे विश्व में सौ से अधिक वैक्सीन बनाये जाने के अनुसन्धान विभिन्न देशों में चल रहे हैं अभी कोई भी सफलता के शिखर पर नहीं पहुँच पाया है। संभवहैकी दूसरा वैक्सीन जायडस कोड़ीला लेकर आये जिसे ड्रग कंट्रोलर आफ इण्डिया ने फेस 1 और फेस 2 की अनुमति ह्यूमन ट्रायल हेतु प्रदान कर दी है। आक्सफोर्ड विश्विद्यालय के वैज्ञानिक एस्ट्रा जेनिका के साथ ऑक्सफ़ोर्ड कोविड 19 वैक्सीन का ह्यूमन ट्रायल साऊथ अफ्रीका और ब्राजील में प्रारम्भ कर दिया है परन्तु ऑक्सफ़ोर्ड के वैज्ञानिकों का मत है की वे इस वैक्सीन को इस वर्ष के अंत तक ही जनस्वास्थ्य हेतु उपलब्ध कर सकेंगे। इस प्रकार भारत की यह सफलता अभूतपूर्व है

भारत का जनमानस इस सफलता पर ख़ुशी की अनुभूति कर सके उसके पूर्व ही यह सफलता प्रश्नो के घेरे में घिर गई। आईसीएमआर की 15 अगस्त की सीमा रेखा को तमाम विशेषज्ञ अवैज्ञानिक बताने लगे। ऐम्स के डाइरेक्टर रणदीप गुलेरिया जो नॅशनल टास्कफोर्स कोविड 19 के क्लिनिकल रिसर्चग्रुप के प्रभारी हैं उन्होंने समय सीमा पर अचम्भा व्यक्त किया की वैक्सीन की प्रभावोत्पादकता ,सुरक्षा और भारी मात्रा में इसका उत्पादन यह सब इतने जल्दी कैसे संभव हो सकेगा। प्रसिद्द वायरोलॉजिस्ट शाहिद जमील ने कहा यह समय सीमा उचित नहीं है कहीं हम वैश्विक विज्ञानं समाज में उपहास के पात्र न बन जाएँ

प्रश्नों के घेरे मे कोवाक्सिन की स्वास्थ उपलब्धता के आ जाने से एक तूफान सा आगया है। स्वतन्त्र विशेषज्ञ इन शब्दों में आलोचना करने लगे हैं कि –हम नहीं समझते दुनिया में कहीं भी नए वैक्सीन को लागू करने की तिथि घोषित कर दी हो जब की क्लिनिकल ट्रायल अभी शुरू ही नहीं हुआ है। इंडियन जर्नल आफ मेडिकल इथिक्स के संपादक अमर जेसानी ने तो कहा कि यह विज्ञानं की कार्यपद्धति नहीं है। आईसीएमआर इथिक्स सेल के डा मुथुस्वामी ने तो कहा कि उन्होंने यद्यपि डा भार्गव का पत्र नहीं देखा है पर सामान्य अनुभव ही यह बताता है की एक माह की समय सीमा कम है

विशेषज्ञों का कहना है की शासन द्वारा निर्धारित सरकारी क्लिनिकल ट्रायल रजिस्ट्री की अवधि ही 15 माह है। एक सरकारी इंस्टीच्यूट के इंविस्टिगेटर ने तो कहा की यदि इथिक्स कमेटी की संस्तुति ह्यूमन ट्रायल के लिए नहीं मिलती तो परीक्षण के लिए पंजीयन 7 जुलाई क्या 7 दिसंबर तक नहीं हो पायेगा भले पी यम को ही क्यों न दखलंदाजी करनी पड़े। हम प्रोटोकॉल से विचलन नहीं कर सकते यह जानवरों पर नहीं आदमियों पर परीक्षण है। इस सम्बन्ध में एक दूसरा मत भी सामने आया है। जीवन रेखा हॉस्पिटल बेलगाम कर्णाटक का मत है की यदि सरकार ने कोई तिथि रखी है तो अवश्य ही कुछ सोचा होगा

स्वास्थ्य का प्रश्न सवालों में नहीं उलझना चाहिए ,यह मनुष्य के जीवन मरण से जुड़ा हुआ है। हर प्रकार के विशेषज्ञों को मिलकर वैज्ञानिक विधा के अनुसार मानवीय परीक्षण होना चाहिए। जो भी वैक्सीन जनस्वास्थ्य के लिए उपलब्ध हो वह सुरक्षित हो प्रभावी हो और रोगनाशक हो जिससे देश की विपत्ति दूर हो सके

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