अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता : अर्थ और प्रयोजन
भारतीय संविधान में स्वतंत्रता का अधिकार मूल अधिकारों में शामिल
सत्य सबके लिए एक होता है. एक के लिए जो कल्याणकारी है, वह दूसरों के लिए अकल्याणकारी क्योंकर है. सौंदर्यबोध संवेदना की चेतना पर निर्भर करता है. अभिव्यक्ति का आवश्यक कारक है- संवेदनशीलता, सौमनस्यता और समन्वय. स्वतंत्रता एक उत्कृष्ट मूल्य है. इसे स्वच्छंदता और अराजकता न बनाया जाए.
डॉ. चन्द्रविजय चतुर्वेदी, प्रयागराज, (मुंबई से)
भारतीय संविधान में स्वतंत्रता का अधिकार मूल अधिकारों में शामिल किया गया है, जिसमें भारतीय नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सहित छह प्रकार की स्वतंत्रता दी गयी हैं. संविधानविदों ने कदाचित सोचा होगा कि लोकतांत्रिक पद्धति में विभिन्न राजनैतिक विचारों का प्रादुर्भाव होगा. अतः यह आवश्यक है कि नागरिकों के सोच विचार का स्वागत होना चाहिए, जिससे रचनात्मक प्रवृत्ति को बल मिले.
लोकतान्त्रिक समाज के लोकतान्त्रिक पद्धति के विकास के लिए विचारों का खंडन मंडान, तर्क-वितर्क, आरोप-प्रत्यारोप नकारा नहीं जा सकता परन्तु इसके साथ-साथ यह भी अपेक्षित है कि यह सब मर्यादित तरीके से होना चाहिए, संयत भाषा में, सौम्यनसता के साथ, सैद्धांतिक सच को मुखरित करते हुए. प्रयोजन होना चाहिए अपने विचारों के माध्यम से व्यापक हित में रचनात्मक तत्वों को प्रतिस्थापित करना.
आजादी के पूर्व से ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के एक सबल पक्ष के रूप में पत्रकारिता को अनौपचारिक रूप से लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में समाज में महत्त्व मिला, जिसका एक गौरवपूर्ण इतिहास और परंपरा रहा है. उम्मीद जगी कि पत्रकारिता लोकतंत्र के प्रहरी के रूप में व्यक्ति, समाज और विचार की अभिव्यक्ति का प्रमुख कारक बनते हुए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का रक्षक बनेगा. समय-समय की बात है कि तमाम अन्य मूल्यों के ह्रास के साथ साथ ही पत्रकारिता भी ह्रास के प्रभाव से मुक्त नहीं रह सका. इसका भी जितना राजनीतिकरण, बाजारीकरण हुआ, उतना लोकीकरण नहीं हो पाया.
पत्रकारिता अब जो प्रमुख रूप से मीडिया और सोशल मीडिया के रूप में स्थापित हो गया है, इस इलेक्ट्रॉनिक युग में, आज सर्वाधिक लांछित किया जा रहा है. यही सबसे अधिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग कर रहा है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर समस्यायों को गंभीर बनाने का प्रयास किया जाता है, समाधानों को भटकाया जाता है, अतिवाद को प्रोत्साहित किया जाता है, सत्य और सार्थक अभिव्यक्ति की उपेक्षा होती है, लोक को दिग्भ्रमित किया जाता है. यह बिडम्बना ही है कि जिस पत्रकारिता पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संरक्षण का उत्तरदायित्व रहा है, वही कटघरे में खड़ा किया जा रहा है.
विगत कई वर्षों से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रश्न संविधानविदों, राजनीतिज्ञों तथा न्यायविदों के चिंतन का विषय रहा है. समय समय पर इसके अर्थ और प्रयोजन को भी विद्वजनों ने व्याख्यायित भी किया है. यह सच है कि किसी विचार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वहीं तक हो सकती है, जिससे किसी अन्य के अधिकार, स्वतंत्रता पर न तो प्रहार हों, न ही उसका हनन हों.
सामान्य रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अर्थ और प्रयोजन को परिभाषित किया जा सकता है कि- सच्चाई और साहस के साथ कल्याणकारी विचारों को सुन्दरतापूर्वक देश के, समाज के समक्ष मुखरित करना. अभिव्यक्ति में न तो निरंकुशता होनी चाहिए न ही मनमानीपन, न ही कुंठा, न अतिवादिता.
सत्य सबके लिए एक होता है. एक के लिए जो कल्याणकारी है, वह दूसरों के लिए अकल्याणकारी क्योंकर है. सौंदर्यबोध संवेदना की चेतना पर निर्भर करता है. अभिव्यक्ति का आवश्यक कारक है- संवेदनशीलता, सौमनस्यता और समन्वय. स्वतंत्रता एक उत्कृष्ट मूल्य है. इसे स्वच्छंदता और अराजकता न बनाया जाए.
आज के परिप्रेक्ष्य में, इस विपत्तिकाल में जब मानव अस्तित्व के संकट से गुजर रहा है, मानवता आर्तनाद कर रही है. तमाम नसीहतों, आदर्शों, के बावजूद भी आज आदमी जितना भयाक्रांत है, अनिश्चितता और किंकर्तव्यविमूढ़ता की स्थिति में है, उतना पहले कभी नहीं रहा होगा.
ऐसी स्थिति में मीडिया, सोशल मीडिया पर संवेदनहीन अमर्यादित बहसें, वाट्सअप पर अतिवादी अनर्गल प्रसारण, अमानवीयता की पराकाष्ठा है, जो संवेदनशीलता, सौमनस्यता, समन्वय पर ही क्रूर प्रहार कर रहे हैं – फिर क्या शेष बच पायेगा.
विपत्ति का राजनीतिकरण सारी मर्यादाओं का उल्लंघन करता जा रहा है. निरीह किंकर्तव्यविमूढ़, अन्यान्य वेदनाओं को झेलता लोक समझ नहीं पा रहा है कि उसके साथ कौन यह क्रूर मजाक कर रहा है. समय सब कुछ जानता है, वह किसी को क्षमा नहीं करता.
ऐसी स्थिति में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ और प्रयोजन है कि वेदनाओं से आहत लोक को करुणा के भाव से समाधान मिले. क्रूर मजाकों का पर्दाफाश हो. आसन्न संकट का संवेदनशीलता, सौमनस्यता, समन्वय के साथ सामर्थ्यवान हल ढूंढे.