चीन षडयंत्रकारी कूटनीतिज्ञ रहा है ,वह कई फ्रंट पर युद्ध की रणनीति का प्रयोग करता रहा है
डा चन्द्रविजय चतुर्वेदी ,प्रयागराज
चीन के वर्त्तमान विवाद को ,सम्पूर्ण देश के नागरिकों को ,देश के नेतृत्व वर्ग को ,देश की सरकार ,कूटनीतिज्ञों ,राजनीतिज्ञों तथा विचारकों को हर दृष्टि से गंभीरता से लेने की आवश्यकता है। हमारी नीति शांतिपरक हो पर मज़बूरी नहीं होनी चाहिए। हम बसुधैव कुटुम्बक में विश्वास करते हैं पर चालबाजियों में ठगे जाने को तैयार नहीं हैं। राजनीति ,कूटनीति के पारस्परिक हित के तत्व यथार्थ की धरती पर अंकुरित होते हैं ,हवा में नहीं। आज देश चतुर्दिक जो संकट और विपत्तियों से जूझ रहा है देश के हर वर्ग को राष्ट्र को समर्पित होना है ,सौमनस्य भाव की अपेक्षा है आतंरिक ,राजनीतिक दावपेंच पर लाकड़ौन होना चाहिए।
हमें यह तथ्य भली प्रकार समझना होगा की चीन का आज का मुठभेड़ 2020 में हो रहा है ,न की 1962 में। यह मुठभेड़ २०२० के चीन से २०२० के भारत से है। सामान्य नागरिक से लेकर शीर्षस्थ राजनयिक तक 1962 को अपने दिमाग से निकाल देना चाहिए। बस यह ध्यान रखने की आवश्यकता है की 1962 का माओ का विस्तारवादी चीन भी दुनिया पर राज करना चाहता था और इस आकांक्षा में भारत को सबसे बड़ा बाधा समझता था। २०२० का नव साम्राज्यवादी पूंजीवादी शी जिनपिंग भी जो दुनिया भर को अपने पूंजीवादी जाल में फंसा चुका है ,दुनिया पर राज्य करना चाहता है और इसमें भारत को ही सबसे बड़ा बाधक समझता है। आज के चीन का पूंजीवादी चेहरा अन्तर्राष्ट्रीयता वादी नहीं नितांत राष्ट्रीयता वादी बन चुका है।
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कोविड -19 की महामारी के बावजूद भी पश्चिमी यूरोप के जो विदेशी निवेश चीन में हैं वह उजड़ने वाला नहीं है ,हमें इस भरम में नहीं रहना चाहिए की हम उन निवेशों को चीन से उजाड़ पायेंगें और भारत में बसा लेंगें। इन कंपनियों को जो गुलाम श्रमिक चीन में उपलब्ध है वह भारत में उपलब्ध न हो पायेगा।
हम भारतवासियों के लिए देश सर्वोपरि है ,विपत्ति की स्थिति में महामारी में देश के नागरिकों का जीवन महत्वपूर्ण है वही पडोसी देशों की छल छद्म भरी चालबाजियों से मुकाबला भी सर्वोपरि है। एक ओर हम दैवीय विपदाओं में उलझे हैं तो दूसरी ओर चीन हमें चक्रव्यूह में फ़साना चाहता है। इस स्थिति में आतंरिक शक्ति की एकजुटता ,सशक्त आत्मविश्वास ही हमारा सम्बल है। चीनी षडयंत्रो के तात्कालिक निदान की ओर भी हमें पहल करनी चाहिए और तत्काल से चीनी सामने का देशव्यापी बहिष्कार होना चाहिए। हमारी देशभक्ति देश में उत्पादित वस्तुओंके उपयोग से ही बढ़ेगी। विदेशी निवेश के लिए रेरियाने के बजाय हमें दृढ़ता से कुटीर उद्योग की और बढ़ने की आवश्यकता है। कृषि आधारित उद्योंगो से हम स्वावलम्बन की ओर अग्रसर हो सकते हैं। देश के पूंजीपतियों को भामाशाह बनने की आवश्यकता है और राजनेता को राणाप्रताप।
चीन षडयंत्रकारी कूटनीतिज्ञ रहा है ,वह कई फ्रंट पर युद्ध छेड़ने की रणनीति का प्रयोग करता रहा है। वह बिना लड़े युद्ध जीतने के फिराक में रहता है ,ऐसी स्थिति में भारत को एक- एक कदम फूंक फूंक कर रखने की आवश्यकता है।