भारत चीन से तनाव खत्म करने को सैन्य से इतर विकल्पों पर प्रयास करे

कर्नल प्रमोद शर्मा

पिछले पांच-छह महीने से जारी लद्दाख सीमा पर तनातनी भारत को एक विचित्र स्थिति में ला दिया है।

भारतीय सैनिकों की अब तक बीस से ज्यादा शहादत हो चुकी है।

भारी मात्रा में सैनिकों, हथियार, साजो सामान,गोला बारूद इत्यादि का जमावड़ा बदस्तूर जारी है।

युद्ध की स्थिति से निपटने का साथ साथ सैन्य बलों और साजो सामान को ठंड से निपटने के लिए भी विशेष प्रबंध करने पड़ते है। सैनिकों के हौसले में कोई कमी नहीं है।

भारत लद्दाख के कुछ एरिया में गश्त लगाने की स्थिति में नहीं है।

हाल ही में चीन के दैनिक ग्लोबल टाइम्स ने दावा किया है कि युद्ध की स्थिति में प्रधानमंत्री द्वारा हाल ही में शुरू अटल टनल को ध्वस्त कर दिया जाएगा। इसका माकूल जवाब भी अभी देना है।

सवाल उठता है ये स्थिति क्यों पैदा हुई? भारत की चीन पर अत्यधिक राजनीतिक, आर्थिक निर्भरता और हल्की बयानबाजी स्थिति को मदद की जगह बिगाड़ रही है।

देशों के बीच युद्ध निश्चित ही आखरी विकल्प होता है। भरसक प्रयास होना चाहिए सीमा का विवाद का हल बातचीत द्वारा ही निकल जाए।

युद्ध सिर्फ सैन्य बल ही नहीं लड़ते,बल्कि युद्ध राजनीतिक, राजनयिक, खुफिया, सामाजिक, आर्थिक, और कूटनीतिक स्तर पर भी लड़ा जाता है।

इन स्तरों पर भारत को अपनी सक्रियता निश्चित रूप से बढ़ानी होगी।

भारत सरकार ने आर्मी को चीन से बात चीत के लिए आगे कर दिया है और बातचीत अभी भी आर्मी के स्तर पर ही चल रही है।

आर्मी की आड़ में राजनेता कब तक अपने को छुपा सकते हैं।

सेना के लेफ्टिनेंट जनरल और मेजर जनरल के बीच चीन से सात राउंड की बैठक हो चुकी है पर कोई ठोस नतीजा नहीं निकला है।

विदेश मंत्री स्तर की बैठक से भी कोई सहमति नहीं बनी है। दोनों तरफ की सेनाएं आमने सामने डटी हैं। ऐसी स्थिति लंबे समय तक नहीं बनी रहनी चाहिए।

भारत को आर्मी स्तर के बातचीत की जगह, राजनीतिक, राजनयिक स्तर पर समाधान खोजने का प्रयास करना होगा।

इसके बारे में राजनेताओं को व्यापक विचार करके ठोस राजनीतिक संकल्प लेना होगा जो अभी तक कहीं नजर नही आ रहा है। हल्के बयानों से बचना होगा।

भारत के सभी राजनीतिक दल, सभी नागरिक सरकार के साथ है। सरकार को ठोस नेतृत्व की आवश्यकता है।

(कर्नल प्रमोद शर्मा को आर्मी, नेवी, डीआरडीओ, ऑर्डनेन्स फैक्टरियों का लंबा अनुभव है।)

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