भारत चीन विवाद : भारत भी पीछे नही हटेगा…
पूर्वी लद्दाख के पेंगोंग त्से झील के दक्षिणी तट पर एक चीनी सैनिक को भारतीय सेना ने 8 जनवरी को धर दबोचा। बताया जा रहा है कि वह अनाधिकृत रूप से भारतीय सीमा में घुस आया था।
तत्काल उसके प्रत्यर्पण की चर्चाएं शुरू हो गईं फलस्वरूप 11 जनवरी को उसे वापस चीन को सौंप दिया गया।
उपरोक्त घटना यह बताने के लिए काफी है कि एलएसी पर तनाव में किसी तरह की कोई कमी नही आई है। सीमा का उल्लंघन लगातार जारी है और ‘डिसइंगेजमेंट’ की तमाम कोशिशों के बावजूद शून्य से कई डिग्री नीचे के तापमान पर दोनों पक्षों के हज़ारों सैनिक लगातार मोर्चा सम्हाले हुए हैं।
सीमा पर तनाव से आम नागरिकों का जीवन हुआ दुश्वार…
सर्दियों के यह तीन महीने स्थानीय लदाखियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं।
विषम तापमान के कारण इलाके के चरवाहे अपने पशुओं के लिए चारा इकट्ठा
कर के रख लिया करते थे, किंतु चारा उपजाने वाली भूमि पर इस साल सेनाएं डटी हुई हैं।
समूचे देश से उलट वह अब भी संचार के 2G माध्यम से सेवाएं लेने को अभिशप्त हैं।
लदाख के एक काउंसलर श्री कॉन्ज़ोक स्टांज़िन ने स्थानीय लोगों की ऐसी तमाम
परेशानियों के बारे में देश को बताया है। वह लदाख के चुने हुए नुमाइंदों के साथ
फिलहाल दिल्ली में हैं और वहाँ की जमीनी हकीकत और अपनी मांगों को बताने
के लिए गृह और रक्षा मंत्री समेत कई अति विशिष्ट लोगों से मिल चुके हैं।
सीमा पार चीन कर रहा है नव निर्माण…
श्री स्टांज़िन ने अंग्रेजी अखबार ‘द हिन्दू’ को दिए एक साक्षात्कार में यह खुलासा किया कि एलएसी पर चीनियों द्वारा अब भी भारी मात्रा में टेंट, बंकर समेत कई ‘इंफ्रास्ट्रक्चर’ खड़े किए जा रहे हैं। जिनको कि लदाख के आम निवासियों ने स्वयं अपनी आंखों से देखा है।
वह चुशूल, मेरक और खकटेट गॉवों का नाम भी लेते हैं जहां एलएसी के निकट न सिर्फ चीन वाहनों की लगातार आवा जाही देखी जा रही है बल्कि कई नए इंफ्रास्ट्रक्चर भी बने हैं। जानकारों की मानें तो इन जगहों में अतीत में कभी भी ऐसा नही हुआ है।
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अगर उनके दावों में सच्चाई है तो यह स्पष्ट है कि स्थिति सामान्य होने की तरफ नही बढ़ रही है।
ग्रामीणों को कहना है कि मई 2018 से ही इस पूरे इलाके में चीनी गतिविधियां बढ़नी शुरू हो गयी थीं। बहुचर्चित फिंगर एरिया में यह शर्तिया तौर पर कोई नहीं कह सकता कि कौन सी फिंगर तक कौन सी सेना गश्त लगा रही है।
भारत भी पीछे नही हटेगा…
हालांकि भारत ने कुछ इलाकों में अपनी पकड़ बेहद मजबूत कर ली है जिससे चीन पर दबाव बढ़ गया है। बीती 29-30 अगस्त की रात जब चीन की कार्रवाई को धता बताते हुए भारत ने दक्षिणी पेंगोंग इलाके की सामरिक रूप से अति महत्वपूर्ण चोटियों पर कब्जा कर लिया, तब से चीन की
बौखलाहट अधिक बढ़ गयी है। क्योंकि उसका ‘मोल्दी गैरिसन’ जैसा अति महत्वपूर्ण इलाका सीधा भारतीय सेना के ‘टारगेट’ में आ गया है। भारत इस मजबूत स्थिति को छोड़ना नही चाहेगा और चीनी सेना इसके जवाब में दुस्साहस करती रहेगी।
सरकार की चाइना कमेटी ने पिछले महीने बैठक के बाद यह कहा था कि दोनों पक्ष जमीनी स्तर पर वार्ता कर रहे हैं। यह किसी बेवजह के उकसावे को रोकने में कारगर सिद्ध होगा। किंतु वह यह नही बताते कि जमीनी स्तर पर हालात सामान्य कब होंगे?
सीडीएस रावत का लदाख दौरा
सैनिकों का सीमा पार कर जाना यह बताने के लिए काफी है कि सब कुछ सामान्य नही है।
कोर कमांडर स्तर की बातचीत के कई दौर निकल चुके है किंतु यह भी सच है कि आखिरी
समाधान कहीं न कहीं राजनैतिक वार्ता से ही निकलेगा।
राजनैतिक वार्ता के प्रयास फिलहाल तो नही दिख रहे हैं। शायद इसी वजह से सीडीएस विपिन
रावत सेना के पुख्ता बंदोबस्त को खुद ही देख रहे हैं। मंगलवार,12 जनवरी को वह स्वयं लदाख
के उन प्रभावित इलाकों का दौरा करेंगे। इस दौरे में सैनिक कार्रवाई का केंद्र बिंदु रही ‘फायर एंड
फ्यूरी’ यानी 14 वीं कोर भी शामिल है।
यह दौरा सामरिक रूप से इसलिए भी खास है क्योंकि सेनाध्यक्ष हाल ही में एलएसी के पूर्वी छोर यानी अरुणाचल का दौरा कर के आये हैं। साथ ही वायुसेना और नौसेना समेत सेना के तीनों अंग संभावित खतरे को देखते हुए आज भी हाई अलर्ट पर हैं।
(यूजीसी नेट उत्तीर्ण, इतिहास और प्रबंधन विषयों से परा स्नातक, अनुपम तिवारी भारतीय वायु सेना के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। मीडिया स्वराज समेत कई प्रिंट, विजुअल, और ऑनलाइन मीडिया चैनलों पर रक्षा विशेषज्ञ के रूप में अपनी बेबाक राय रखते हैं।