समावेशी भारतीय संस्कृति
भारतीय संस्कृति सनातन मूल्यों पर आधारित हैIसनातन मूल्य शाश्वत हैंI इसीलिए, इन मूल्यों से जुड़े रहना अपरिहार्य हैI ये सर्वकालिक और सदा प्रासंगिक हैंI सर्वकल्याणकारी हैंI व्यक्तिगत से सार्वभौमिक स्तर तक व्यवस्था के सुचारु संचालनार्थ इन सनातन-शाश्वत मूल्यों से मानवता अपने को पृथक नहीं कर सकतीIहजारों वर्षों से विशुद्धतः सनातन मूल्यों से बंधी भारतीय संस्कृति किसी भी प्रकार के भेदभाव के बिना वृहद् मानव-कल्याण को समर्पित रही हैI भारतीय संस्कृति पर बारम्बार आक्रमण हुएI आक्रान्ताओं-आततायियों-धर्मान्धों, आन्तरिक व बाह्य, दोनों, ने हिन्दुस्तान के मूल सांस्कृतिक स्वरूप को छिन्न-भिन्न करने के अनेक प्रयास किएI लेकिन वे सदैव ही विफल हुएI भारतीय संस्कृति का वैभव तथा गौरव अक्षुण्ण हैI अपने मूल स्वरूप में भारतीय संस्कृति सारे संसार के लिए आज भी अनुकरणीय हैI
भारतीय संस्कृति जिन प्रमुख आधारभूत सनातन-शाश्वत मूल्यों पर आधारित है; दूसरे शब्दों में, जो सनातन-शाश्वत मूल्य हिन्दुस्तान की संस्कृति की सर्वश्रेष्ठ विशिष्टताओं के रूप में हैं, उनमें: एक ही स्रोत से उत्पन्न, अथवा प्रकट, प्राणिमात्र के प्रति सक्रिय सद्भावना रखना, स्वाभाविक मानव-समानता को स्वीकार करना, वृहद् सजातीय सहयोग और सौहार्द से, नित-नूतन करने के दृढ़ संकल्प के साथ ही समावेशी भावना रखते हुए, अनेकता में एकता के साथ विकास मार्ग पर निरन्तर आगे बढ़ना सम्मिलित हैI ये ही सनातन मूल्यभारत की संस्कृति की वे प्रमुख विशेषताएँ भी हैं; भारतीय संस्कृति की वे आधारभूत विशिष्टताएँ हैं, जिसके बल पर वह इस देश की एकता को अक्षुण्णबनाए रखने का मार्ग प्रशस्त करती हैI डॉ0 भीमरावअम्बेडकर ने न केवल भारतीय संस्कृति के इसवास्तविक तथ्य को स्वीकार किया, अपितु भारत कीसंस्कृति को अद्वितीय और महान मानते हुए हिन्दुस्तानके राष्ट्रवाद को भी इसी के दर्पण में देखाI डॉ0 अम्बेडकर ने कहा था, “इस (भारतीय) प्रायद्वीप कोछोड़कर संसार का कोई देश ऐसा नहीं है, जिसमेंइतनी सांस्कृतिक समरसता होI हम केवल भौगोलिकदृष्टि से ही सुगठित नहीं हैं, अपितु हमारी सुनिश्चितसांस्कृतिक एकता भी अविच्छिन्न और अटूट है, जो पूरेदेश में चारों दिशाओं में व्याप्त हैI“
अति कठिन समय में, जब भारत विदेशीशासनाधीन अधीन था, उस समय भी भारतीय संस्कृति नेदेश में राष्ट्रवाद की अलख जगाने और देशवासियों कोअपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष हेतु एकबद्धकरने में अतिमहत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कियाI 15अगस्त, 1947 ईसवीं को अँग्रेजी दासता से मुक्ति केउपरान्त सरदार वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में हिन्दुस्तानके एकीकरण का विशाल कार्य एक बड़ी सीमा तक, जैसा कि मेरा मानना है, देश की साझी सांस्कृतिकविरासत, जो विभिन्न रूपों में भारत की एकता औरइसकी आवश्यकता का आह्वान करती है, के कारण हीसम्भव हो सकाI इस वास्तविकता को स्वयं सरदारवल्लभभाई पटेल के एक अपील के समान उस वक्तव्यसे भली-भाँति समझा जा सकता है, जिसे उन्होंने 5जुलाई, 1947 ईसवीं को भारत की भौगोलिक-राजनीतिक एकता के महान यज्ञ को प्रारम्भ करते हुएजारी किया थाI अपने ऐतिहासिक वक्तव्य में सरदारपटेल ने कहा था कि यह देश अपनी संस्थाओं के साथयहाँ बसने वाले लोगों की गौरवशाली विरासत हैI यहएक दुर्घटना है कि कुछ (देशी) राज्यों में रहते हैं औरकुछ ब्रिटिश भारत में, लेकिन सभी समान रूप से इसकीसंस्कृति (जो विविधताओं में एकता का प्रतीक है) औरचरित्र का भाग हैंI हम सब रक्त और भावनाओं के साथबंधे हुए हैं…कोई भी हमें खण्डों में विभाजित नहीं करसकता है; हमारे मध्य कोई अगम्य अवरोध स्थापित नहींकिया जा सकता है…मैं अपने मित्रों, (देशी) राज्यों केशासकों और लोगों को आमंत्रित करता हूँ (कि वे) एकसंयुक्त प्रयास हेतु मित्रता और सहयोग की भावना केसाथ आगे आएँ…अपनी मातृभूमि (उसकी एकता, अखण्डता, पुनर्निर्माण, सुरक्षा और समृद्धि) हेतु साझीनिष्ठा से प्रत्येक की भलाई के लिए कार्य करें।
साथ ही, विचारों में तालमेल –दृष्टिकोण सामंजस्य, सहनशीलता, शुद्ध हृदयता, और प्रत्येकसर्वकल्याणकारी व अच्छे विचार को हर स्रोत से (भलेही वह बाह्य भी हो) स्वीकार करने और अपने में समाहितकरने की प्रकृति, जो उस मूल भारतीय दर्शन के केन्द्र में विद्यमान है जिसने हिन्दुस्तानी संस्कृति को अत्यधिक प्रभावित किया, इनमें सम्मिलित हैंI यही कारण है कि“वसुधैव कुटुम्बकम“ के साथ ही “सर्वे भवन्तुसुखिनः“, “सर्वँ शान्ति” तथा “लोकानुकम्पाय” जैसेसर्वकल्याणकारी उद्घोष, एवं “जियो और जीने दो”जैसी अद्वितीय कामना भारतीय संस्कृति के प्रमुख सन्देशों के रूप में प्रकट होती हैI विशेष रूप से इन्हींविशिष्टताओं के कारण भारतीय संस्कृति समस्त संसारके लिए आकर्षण का केन्द्र बनीI विश्वभर के विभिन्नभागों के लोगों ने सहिष्णु, सहनशील और समावेशीसंस्कृति के देश भारत में अपना सुरक्षित औरविकासोन्मुख भविष्य देखाI गत अनेक शताब्दियों मेंविश्व के अनेक देशों के वे मानव समूह समय-समय परभारत-भूमि पर पहुँचे, जिनके अस्तित्व पर स्वयं उनके अपने ही देशों में प्रश्नचिह्न लगा था; जिन्हें अपनी-अपनीजन्मभूमि पर उत्पीड़ित किया गया, और उन्हें गम्भीर रूपसे प्रताड़ित होना पड़ा थाI ऐसे लोग भारत जब पहुँचे, तोइस देश की संस्कृति ने उन्हें आत्मसात कर लियाI उन्हेंभारत-भूमि पर प्रेम और सम्मान मिलाI उनकीपरम्पराओं, रीतियों और मान्यताओं को पूरी सुरक्षामिलीI उन्हें भी फलने-फूलने के समान अवसर मिलेI
सनातन-शाश्वत मूल्यों पर आधारित भारतीयसंस्कृति की शक्ति अथाह हैI देश की एकता के निर्माणव राष्ट्र के विकास में, और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतकी प्रतिष्ठा स्थापित करने में इसकी भूमिकाअतिमहत्त्वपूर्ण हैI भारतीय संस्कृति अपने अनुयाइयों से इन उद्घोषों के अनुरूप, सनातन-शाश्वत मूल्यों पर अडिग रहने की अपेक्षा रखती रही हैI इन मूल्यों की रक्षा के लिए समर्पित होकर व्यवहार-संलग्नता हेतु आह्वान के साथ मार्गदर्शन देती रही हैI भारतीय संस्कृति का आज भी विशेष रूप से हिन्दुस्तानियों के लिए प्रबल कामना के साथ यही निर्देश हैI भारतीय संस्कृति के आह्वान को हमें अपने हृदयों में उतारना है, इसके मार्गदर्शन में, इसके निर्देशानुसार आगे बढ़ना है, और भारत को विश्व गुरु के रूप में प्रतिष्ठित करना हैI
*पद्म श्री और सरदार पटेल राष्ट्रीय सम्मान से अलंकृतइण्डोलॉजिस्ट डॉ0 रवीन्द्र कुमार चौधरी चरण सिंहविश्वविद्यालय, मेरठ के पूर्व कुलपति हैं; साथ हीग्लोबल पीस अन्तर्राष्ट्रीय पत्रिका के प्रधान सम्पादकभी हैं।