सत्यता की अनुभूति और स्वीकृति का समय: अभी नहीं, तो कभी नहीं

वर्तमान मानव-सभ्यता के अनेकानेक जीव-जन्तु व पशु भी प्रमुख रूप से मानव द्वारा उत्पन्न की गई इसी स्थिति के कारण विलुप्त हो गए हैंI ऐसे विलुप्त हो चुके जीवों के पूरे आंकड़े जुटा पाना तो असम्भव है, लेकिन हाल के वर्षों में अन्तर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ द्वारा जारी की गई एक सूचि, जिसमें यह उल्लेख है कि पाँच हजार पाँच सौ तिरासी जीवों-पशुओं की प्रजातियाँ विलुप्त होने को हैं, स्थिति की गम्भीरता को प्रकट करती हैI यह विलुप्तता मुख्यतः मानव के परस्पर जीव-निर्भरता के सार्वभौमिक सिद्धान्त के उल्लंघन के कारण हैI पर्यावरण, प्रकृति और जलवायु आदि पर विपरीत प्रभाव डालने वाली स्थिति हैI स्वयं मानव जाति इससे सर्वाधिक प्रभावित हुई है; निरन्तर हो रही हैI